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अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित हो पाएगा अजहर मसूद? क्यों अलग है चीन का रुख?

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अजहर मसूद दुनिया के लिए ख़तरा है। वह अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है। उस पर प्रतिबंध लगाया जाए। दुनिया के तीन बड़े वीटो पावर से लैस देश अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने यह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पेश कर दिया है। पिछले 10 साल में ये चौथा मौका है जब इस किस्म का प्रस्ताव पेश किया गया है। सबकी नज़र इस बात पर है कि क्या 15 सदस्यों वाला सुरक्षा परिषद अजहर मसूद को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर पाएगा? क्या चीन वीटो लगाने की अपनी आदत से बाज आएगा?

सबसे पहले समझते हैं कि सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव पारित हो जाता है तो क्या होगा।

  • अजहर मसूद अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी माना जाएगा।
  • वह दुनिया के किसी हिस्से में बेरोकटोक नहीं घूम सकता।
  • दुनिया में कहीं भी उसकी संपत्ति होगी, उसे जब्त कर ली जाएगी।
  • दुनिया के किसी भी बैंक में अकाउन्ट हो, तो उसे सीज कर लिया जाएगा।
  • दुनिया में उससे संबंधित कहीं भी कोई भी गतिविधि होगी, तो उसे रोक दी जाएगी।
  • दुनिया के किसी भी भाग से उसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा
  • हर सरकार को उसे गिरफ्तार करने की अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धता दिखानी होगी
  • अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी पर कार्रवाई के लिए कोई भी देश स्वतंत्र होगा।

सुरक्षा परिषद में अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन का अजहर मसूद के ख़िलाफ़ प्रस्ताव निश्चित रूप से दुनिया में भारतीय दृष्टिकोण का परचम लहराता है, मगर चीन के साथ-साथ रूस का इस प्रस्ताव से दूर रहना भारत के लिए एक चिन्ताजनक पहलू भी है।

रूस का रुख अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका, इंग्लैंड और फ्रांस के साथ नहीं रहने का रहा है। इसलिए इसे रूस के स्वाभाविक कदम के तौर पर देखा जाना चाहिए। रूस भारतीय हितों के ख़िलाफ़ खड़ा हो, ऐसा नहीं माना जा सकता। मगर, चीन निश्चित रूप से अजहर मसूद को आतंकवादी घोषित करने के मामले में पाकिस्तान के साथ खड़ा है। चूकि पाकिस्तान का रुख भारत के ख़िलाफ़ है इसलिए चीन का रुख भी भारत के ख़िलाफ़ है।

क्या चाहता है चीन? क्यों लगाता रहा है वीटो? अजहर मसूद को क्यों है चीन का समर्थन? क्या चीन आतंकवाद का समर्थक है? क्या चीन भारत में आतंकी कार्रवाईयों का समर्थक है?

ऐसे कई सवाल हैं जो अजहर मसूद मामले में चीन के वीटो के बाद उठते रहे हैं।

चीन का कहना है कि अजहर मसूद को लेकर संबद्ध पक्ष में आम राय नहीं है। आम राय होने के बाद ही वह ऐसे किसी प्रस्ताव का समर्थन करेगा। इसका मतलब क्या है? इसका मतलब ये है कि जब तक पाकिस्तान भी अजहर मसूद को आतंकवादी नहीं मान लेता है तब तक चीन भी उसे आतंकवादी नहीं मानेगा। दूसरा मतलब ये है कि केवल भारत के कहने भर से चीन यह मानने को तैयार नहीं है कि अजहर मसूद अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी है। इसका एक और मतलब ये है कि एक देश किसी और देश के किसी व्यक्ति को उसकी मर्जी के बगैर आतंकवादी घोषित ना करे। ऐसा करने के लिए संबंधित देश को विश्वास में लेना जरूरी है।

चीन के रुख में विरोधाभास

मगर, चीन के इस रुख में विरोधाभास है। चीन यह भी कहता है कि पाकिस्तान खुद आतंकवाद से पीड़ित देश है। खुद पाकिस्तान मानता है कि उसके देश में नॉन स्टेट एक्टर सक्रिय हैं। चीन और पाकिस्तान की ये दोनों ही बातें अगर सच हैं तो जैश-ए-मोहम्मद और अजहर मसूद के वजूद को वो आतंकवाद की प्रेरणा और उसका जनक क्यों नहीं मान रहे हैं?

जैश-ए-मोहम्मद पर खुद पाकिस्तान की सरकार ने प्रतिबंध लगाया है। उस पर कार्रवाई की है। ऐसे में जैश-ए-मोहम्मद का मुखिया अजहर मसूद पर प्रतिबंध स्वत: लग जाता है। जब अजहर मसूद और उसके संगठन पर पाकिस्तान में प्रतिबंध है तो दुनिया में क्यों नहीं? चीन को किस सहमति का इंतज़ार है?

भारत में संसद पर हमला, उरी हमला, पुलवामा हमला हर हमले की जिम्मेदारी ले चुका है जैश-ए-मोहम्मद। फिर भी अजहर मसूद को आतंकवादी मानने में कैसा संकोच?

यह पाकिस्तान की दुविधा है, आंतरिक सियासत की मजबूरी है कि वह पाकिस्तान के भीतर तो जैश-ए-मोहम्मद पर प्रतिबंध लगा सकता है लेकिन ग्लोबल स्तर पर ऐसे ही किसी प्रस्ताव का समर्थन नहीं कर सकता। मगर,चीन के पास ऐसी कोई मजबूरी नहीं है।

चीन के वुहान में भारत, रूस और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक में चीन का एक अलग रुख ही सामने दिखा। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को चीन के रुख में बदलाव का श्रेय दिया जा रहा है। पुलवामा हमले और उसके बाद भारत के एयर स्ट्राइक के प्रति चीन के रुख में थोड़ी नरमी दिखी। चीन ने भारत की कार्रवाई को आत्मरक्षार्थ माना है।चीन ने यह भी माना है कि आतंकवाद के ख़िलाफ़ हर देश को प्रतिबद्ध रहना चाहिए। इससे एक उम्मीद जगती है कि चीन जैश-ए-मोहम्मद और अजहर मसूद को लेकर अपने रुख में बदलाव लाएगा। मगर, जिस तरीके से उसने पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ने वाला देश बताया है उससे ऐसी किसी उम्मीद पर एक बार फिर पानी फिरता दिख रहा है।

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