3 तलाक को तड़ाक तड़ाक तड़ाक
तीन तलाक के विधेयक को 19 महीने में 3 बार लोकसभा को पारित करना पड़ा, केंद्र सरकार को 3 बार अध्यादेश लेकर आना पड़ा, मगर अब 3 तलाक पर सारे भ्रम, सारी बाधाएं दूर हो चुकी हैं। राज्यसभा ने इसे पारित कर दिया है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से 3 तलाक की कुप्रथा अब अतीत बन चुकी है। इसके साथ ही 21 सदी में मुस्लिम महिलाओं के साथ अमानवीय इस कुप्रथा का अंत हो गया है। सत्तारूढ़ बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को इस कानून का पूरा श्रेय जाता है।
मुश्किल था राज्यसभा में बिल पास होना
राज्यसभा
कुल संख्या 245
रिक्त सीट 4
वास्तविक संख्या 241
बहुमत 121
NDA 113
राज्यसभा में तीन तलाक के बिल का पारित होना मुश्किल लग रहा था। 245 सदस्यों वाली राज्यसभा में 241 सदस्य हैं। बहुमत के लिए 121 मतों की आवश्यकता थी। मगर, एनडीए के पास कुल मत 113 थे।
JDU के 6, TRS 6 और AIADMK के 11 सदस्यों ने सदन का बहिष्कार किया। मतलब ये कि घोषित तौर पर तीन तलाक का विरोध किया, मगर वास्तव में सदन के भीतर इस बिल को पारित कराने में केंद्र सरकार की मदद की। अब 23 सदस्यों को अगर 241 में घटा दें तो सदन की प्रभावी ताकत हो गयी 218. अब बीजेपी को तीन तलाक का बिल पारित कराने के लिए जरूरत थी 110.
JDU और AIADMK वोटिंग से दूर
NDA के पास रह गये 96 सदस्य
दिल्ली अब भी दूर थी। यानी तीन तलाक का पारित हो पाना मुश्किल लग रहा था।
मदद को आई SP-BSP
ऐसे में मदद करने को तैयार दिखीं एसपी (16) और बीएसपी (4).
SP-BSP ने ह्विप जारी नहीं किया
इन्होंने व्हिप जारी नहीं किया ताकि उनके सांसद क्रॉस वोटिंग कर सकें या फिर सदन से गैर हाज़िर रह सकें।
कांग्रेस से भी एक सदस्य तोड़ा
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद संजय सिंह का इस्तीफ़ा भी इसी वक्त आ गया।
राज्यसभा में 3 तलाक रोकने का कानून
विधेयक के पक्ष में 99 मत
विधेयक के विरोध में 84 मत
183 सदस्यों ने वोट डाले
35 सदस्य गैरहाजिर रहे
जब तीन तलाक पर वोटों का नतीजा सामने आया तो तीन तलाक रोकने के हक में 99 मत दिखे, जबकि विरोध में 84. इसका मतलब ये है कि 183 सदस्यों ने ही वोटिंग में हिस्सा लिया, जबकि 218 सदस्यों को वोट करना चाहिए था। मतलब ये कि 35 सदस्य अनुपस्थित रहे।
तीन तलाक बिल को पास कराने में इन 35 सदस्यों की अनुपस्थिति का बड़ा योगदान रहा। कांग्रेस के 4 सदस्य अनुपस्थित रहे, तो आरजेडी से मीसा भारती गैरहाजिर रहीं। टीएमसी से 2 सदस्य सदन में नहीं आए, तो एनसीपी से भी 3 सदस्य गैरहाजिर रहे। वहीं, मतदान से दूर रहकर जेडीयू, अन्नाद्रमुक और टीआरएस ने सरकार की मदद की और अपने प्रतीकात्मक विरोध को आगे बढ़ाया।
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में अपने खंडित जनादेश में तीन तलाक के प्रैक्टिस को गैर इस्लामिक बताया था और यह मानने से इनकार कर दिया था कि तीन तलाक इस्लाम का अभिन्न अंग है। इस आदेश का सम्मान हुआ है, ऐसा तीन तलाक कानून बन जाने के बाद कहा जा सकता है।
वहीं सुप्रीम कोर्ट के उसी आदेश में चीफ जस्टिस जेएस केहर और जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की प्रमुखता को चिन्हित किया था और कहा था कि इस प्रथा को संवैधानिक संरक्षण है और यह न्यायिक विवेचना से परे है। फिलहाल यह सोच पराजित हुई है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर तीन तलाक की कुप्रथा के मिट जाने को ऐतिहासिक बताया है और मुस्लिम महिलाओं को बधाई दी है। वहीं उन्होंने महिला सशक्तिकरण की बात कहते हुए तुष्टिकरण करने वालों को पापी भी बताया है।
महत्वूपर्ण बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले और केंद्र सरकार के अध्यादेशों के बावजूद तीन तलाक की कुप्रथा जारी रही थी। 500 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। मगर, अब तीन साल की सज़ा के प्रावधान के बाद उम्मीद की जा रही है कि ऐसे पतियों को 3 तलाक का सिला ज़रूर मिलेगा।