पंजा का शिकंजा : यूपी में कांग्रेस ही कांग्रेस
यूपी में कांग्रेस ही कांग्रेस है। किसी सीट पर कांग्रेस बीजेपी को हरा रही है, तो कहीं कांग्रेस महागठबंधन को जिता रही है। ऐसा करते-करते कांग्रेस अपने लिए भी कहीं न कहीं गोल बना रही है।
मेरठ का संग्राम
मेरठ में महागठबंधन के उम्मीदवार हैं हाजी याकूब कुरैशी। वह बीएसपी से हैं। वोटों का ध्रुवीकरण तय है इसलिए दलित-मुस्लिम समीकरण पर बीएसपी और महागठबंधन की नज़र है।
बीजेपी के सांसद राजेन्द्र अग्रवाल से कड़ा मुकाबला है। अब इस मुकाबले में कांग्रेस कैसे अपनी अहमियत बनाती? मगर, कांग्रेस ने मौका ढूंढ़ लिया।
वैश्य उम्मीदवार के ख़िलाफ़ वैश्य उम्मीदवार की चाल कांग्रेस ने चल दी। हरेंद्र अग्रवाल को चुनाव मैदान में उतार दिया। वे पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी बाबू के परिवार से हैं। अच्छी पैठ है। लीजिए एक बार फिर मेरठ में ज़िन्दा होती दिखने लगी है कांग्रेस।
कैराना में कांग्रेस, मुसीबत में बीजेपी
कैराना किसे नहीं याद है। उपचुनाव में महागठबंधन की उम्मीदवार आरएलडी के चुनाव चिन्ह पर लड़ी थीं। अब वह समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार हैं।
तब जाट समुदाय ने अजित-जयंत के सम्मान की खातिर तबस्सुम के लिए वोट किया था। मगर, इस बार तैयार नहीं हैं।
कांग्रेस ने मौका देखकर चौका ज़ड़ा। कद्दावर जाट नेता हरेंद्र मलिक को चुनाव मैदान में उतार दिया। अगर कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया होता, तो बीजेपी उम्मीदवार प्रदीप चौधरी की सम्भावना बहुत मजबूत होती।
ऐसा इस तथ्य के बावजूद होता कि मृगांका का टिकट कटने से बीजेपी कार्यकर्ताओं में भारी नाराज़गी है। मगर, अब जाट वोटों पर सेंधमारी करके कांग्रेस ने बीजेपी को तगड़ी चोट पहुंचायी है।
गौतमबुद्धनगर में कांग्रेस का राजपूत कार्ड
गौतमबुद्ध नगर में बीजेपी के कद्दावर नेता महेश शर्मा चुनाव मैदान में हैं। एंटी इनकम्बेन्सी से परेशान हैं। इसलिए सीट बदलना चाह रहे थे, मगर मंशा अधूरी रही। राजपूत वोटर इस लोकसभा सीट पर बीजेपी के साथ रहे हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में बीजेपी के तीन विधायक राजपूत हैं।
कांग्रेस ने इसी वोट पर सेंधमारी करने के लिए अरविन्द चौहान पर दांव खेला है।
महागठबंधन ने यहा से सतबीर नागर को चुनाव मैदान में उतारा है। निश्चित रूप से कांग्रेस उम्मीदवार की वजह से महेश शर्मा के लिए जीत मुश्किल होगी और महागठबंधन उम्मीदवार को इसका फायदा मिलेगा।
गाज़ियाबाद में कांग्रेस की ‘पंडिताई’
गाज़ियाबाद में बीजेपी के कद्दावर उम्मीदवार वीके सिंह चुनाव मैदान में हैं। 5 लाख से ज्यादा वोटों से उन्होंने पिछला चुनाव जीता था। मगर, बीजेपी के स्थानीय नेता ही उसके विरोध में हैं।
समाजवादी पार्टी ने सुरेश कुमार मुन्नी की जगह पूर्व विधायक सुरेश बंसल को टिकट दिया है और महागठबंधन के उम्मीदवार इस बार कड़ी टक्कर देने जा रहे हैं।
ऐसे में कांग्रेस ने ब्राह्मण उम्मीदवार डॉली शर्मा को चुनाव मैदान में उतारकर बीजेपी के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी की ठानी है। बीजेपी को नुकसान पहुंचाकर कांग्रेस निश्चित रूप से महागठबंधन की राह आसान करती दिख रही है।
फतेहपुर कांग्रेस की बल्ले-बल्ले!
बीएसपी ने पहले से घोषित प्रत्याशी राजवीर उपाध्याय का टिकट काटकर भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू शर्मा को उम्मीदवार बनाया है। मगर, यह ब्राह्मण कार्ड इस बार बीएसपी को भारी पड़ सकता है। वजह ये है कि ब्राह्मण वोटों पर राजवीर की मजबूत पकड़ रही है और उनकी पत्नी 2009 में यहां से सांसद रह चुकी हैं। भितरघात का डर बना हुआ है।
यह एक तरह से कांग्रेस की मदद करने जैसा है। कांग्रेस के दिग्गज उम्मीदवार राजबब्बर चाहे जहां से चुनाव लड़ें, हारने के बावजूद उन्हें मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं। ऐसे में बीएसपी के भीतर असंतोष का फायदा सीधे तौर पर राजबब्बर को मिलेगा।
बीजेपी के सांसद बाबूलाल मजबूत उम्मीदवार हैं। 2014 में उन्हें 44 फीसदी वोट मिले थे लेकिन इस बार उनकी ही पार्टी में उनका विरोध हो रहा है। फतेहपुर में जाट, राजपूत और मुसलमान वोट अहमियत रखते हैं। महागठबंधन और कांग्रेस के साथ बीजेपी त्रिकोणीय मुकाबला में संघर्ष करती दिख रही है।