रवीश को अवार्ड : पत्रकारिता को सम्मान
रवीश कुमार भारतीय पत्रकारिता के प्रतीकों में एक बन चुके हैं। एक ऐसा प्रतीक जो उस आवाज़ को बुलन्द करता है जिसे हुक्मरान नजरअंदाज करते हैं। मैग्सेसे अवार्ड ने वास्तव में रवीश कुमार को सम्मानित करने का फैसला कर खुद का सम्मान बढ़ाया है।
रवीश कुमार ऐसी 52वीं शख्सियत हैं जिन्हें मैग्सेसे अवार्ड मिला है। पत्रकारिता, साहित्या और क्रिएटिव आर्ट्स के मिले जुले वर्ग में मैग्सेसे अवार्ड पाने वाले नाम तो और भी हैं मगर विशुद्ध पत्रकारिता में पी साईंनाथ के बाद दूसरी हस्ती हैं रवीश कुमार, जिन्हें मैग्सेसे अवार्ड मिलने से पत्रकारिता सम्मानित हुई है।
2019 में 5 हस्तियों को रमन मैग्सेसे
एशियाई नोबल के रूप में विश्वविख्यात रमन मैग्सेसे अवार्ड 2019 में 5 हस्तियों को दिया गया है। इनमें भारत के रवीश कुमार के अलावा थाईलैंड की अंगखाना लीलापजीत, फिलीपींस के रेमुंडो पुजांते केययाब, म्यांमार के को स्वे विन और दक्षिण कोरिया के किम जोंग की शामिल हैं। इनमें को स्वे विन भी पत्रकार हैं। रमन मैग्सेसे पुरस्कार जिन क्षेत्रों में विशेष योगदान के लिए दिए जाते हैं उनमें शामिल हैं।
इन क्षेत्रों में दिए जाते हैं रमन मैग्सेसे
सरकारी सेवाएं, सार्वजनिक सेवाएं, सामुदायिक नेतृत्व, पत्रकारिता, साहित्य और रचनात्मक संचार, कला, शांति और अंतर्राष्ट्रीय समझ, इमर्जेंट लीडरशिप।
1996 से एनडीटीवी से जुड़े रहे रवीश कुमार पहले पाठकों की चिट्ठियां छांटने का काम किया करते थे। फिर रिपोर्टिंग की दुनिया में वे आकर्षित हुए। यहां उन्होंने जनसरोकार से रिपोर्टिंग को जोड़कर पत्रकारिता को एक नयी ऊंचाई प्रदान की। अपनी भी नयी पहचान बनायी। ‘रवीश की रिपोर्ट’ जाना पहचाना कार्यक्रम बन गया।
रवीश कुमार ने फिर एंकरिंग की ओर कदम बढ़ाया। यहां आकर उन्होंने ऐसे पैर जमाए मानो अंगद के पांव हों। भाषा, शैली, प्रस्तुति, सोच हर क्षेत्र में उन्होंने प्रयोग किए और ये प्रयोग बेहद सफल रहे। लोगों को उनकी बेबाकी, सरल-सहज स्वभाव और उसी अंदाज में उनके पैनल में बैठी हस्तियों से बातचीत लोगों को बेहद पसंद आयी। धीरे-धीरे रवीश कुमार का प्राइम टाइम वाकई न्यूज़ की दुनिया का प्राइम टाइम बन गया।
विषय का चुनाव है रवीश की खासियत
- आलोचना और प्रशंसा दोनो हैं विषय का चुनाव
- लोगों से सरोकार रखते हैं ये विषय
- हुक्मरानों को परेशान करते हैं ये विषय
- ‘बागी पत्रकार’ भी कहा जाता है रवीश को
- सत्ता से टक्कर, ट्रोल होने वाला पत्रकार
रवीश कुमार की पत्रकारिता की आलोचना और प्रशंसा दोनों है उनकी ओर से विषय का चुनाव। निश्चित रूप से ये विषय ऐसे होते हैं जो आम लोगों से सरोकार रखते हैं, मगर यही विषय हुक्मरानों को परेशान भी करता है। यही कारण है कि रवीश को बागी पत्रकार भी माना जाता है। सत्ता से टक्कर लेने वाला पत्रकार, ट्विटर पर ट्रोल होने वाला पत्रकार, सोशल मीडिया में विरोध की आवाज़ बनकर मौजूद रहने वाला पत्रकार।
आपको आश्चर्य होगा कि टीवी की दुनिया में इतना चर्चित पत्रकार खुद अपने घर टीवी नहीं रखता। बीते कुछ सालों में जबसे यह महसूस किया जाने लगा है कि टीवी एंकर केवल विपक्ष से सवाल पूछता है और सत्ता से सवाल पूछने की हिम्मत खोता जा रहा है, एक नयी ज़रूरत महसूस की गयी। इसका अहसास कराया रवीश कुमार ने। उन्होंने आम चुनाव के समय मतदाताओं को अपने-अपने टीवी सेट से दूर रहने की हिदायत दी थी। एक ऐसा पत्रकार जो खुद दर्शकों को अपने से दूर कर रहा था।
रवीश कुमार को गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, रामनाथ गोयनका अवार्ड, सर्वश्रेष्ठ पत्रकार का रेड इंक अवार्ड, कुलदीप नैयर पत्रकारिता अवार्ड समेत कई पुरस्कार पहले भी मिल चुके हैं मगर रमन मैग्सेसे अवार्ड की बात ही निराली है। इसने उनकी पत्रकारिता को दुनिया के स्तर पर चर्चा में ला दिया है।
रवीश कुमार लेखक भी हैं, ब्लॉगर भी। इश्क में शहर होना, देखते रहिए, फ्री वॉयस जैसी पुस्तकें लिखी हैं। रचनात्मकता रवीश कुमार में कूट-कूट कर भरी है। वे प्रयोगवादी हैं। मगर, सबकी बुनियाद में है जनता का सरोकार। यही बात उन्हें भीड़ से अलग कर देती है।