सुप्रीम कोर्ट बनाम मोदी सरकार, फिर !
सुप्रीम कोर्ट में तीन और माननीय न्यायाधीश पहुंच चुके हैं। अब 31 जजों वाली सुप्रीम कोर्ट में महज 6 पद रिक्त हैं। पहली बार ऐसा हुआ है कि तीन महिला जज एक साथ सुप्रीम कोर्ट में मौजूद रहेंगी। यानी सर्वोच्च अदालत में लगभग 12 प्रतिशत महिलाओं की मौजूदगी हो गयी है। मगर, तीन जजों के इस शपथग्रहण समारोह को जिस वजह से याद किया जाएगा वो है जस्टिस केएम जोसेफ।
आखिर क्यों जस्टिस केएम जोसेफ का सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश के तौर पर शपथ ग्रहण तारीखी हो गया है? केएम जोसेफ उत्तराखण्ड के चीफ जस्टिस रहे थे। उन्होंने उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फैसले को गलत ठहराया था। मोदी सरकार का फैसला पलट दिया था। यह एक ऐसा फैसला था जिससे मोदी सरकार की खूब किरकिरी हुई थी।
मगर, इसका केएम जोसेफ के सुप्रीम कोर्ट का जज बनने से क्या संबंध? सबंध इस मायने में है कि कोलेजियम ने पहले भी केएम जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश भेजी थी, लेकिन केन्द्र सरकार ने सिफारिश को दोबारा विचार के लिए लौटा दिया था। केन्द्र सरकार के इस कदम के पीछे कोई खास वजह सामने नहीं आयी। मगर, केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसे केन्द्र सरकार का अधिकार बताया था।
जाहिर है केन्द्र सरकार के फैसले को इस रूप में विरोधी दलों ने देखा कि यह उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फैसले को पलटने वाले आदेश की सज़ा है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच भी यह विषय चर्चा में रहा। कोलेजियम ने दोबारा नाम भेजने का फैसला किया। देश का ध्यान केन्द्र सरकार के फैसले की ओर टिका था। क्या सरकार दोबारा जस्टिस केएम जोसेफ का नाम कोलेजियम को वापस कर देगी?
अगर ऐसा होता तो निश्चित रूप से एक बार फिर वो आवाज़ बुलन्द होती जब सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर देश के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था को ख़तरे में बताया था। मगर, मोदी सरकार ने थोड़ी बुद्धिमानी दिखलायी। जस्टिस केएम जोसफ को सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर स्वीकार कर लिया, मगर वरीयता क्रम तय करते हुए जस्टिस केएम जोसफ को तकड़ी चोट पहुंचा दी।
शपथ लेने वाले तीन जजों में जस्टिस जोसफ को तीसरी वरीयता दी गयी। परम्परा के अनुसार माना जा रहा था कि जस्टिस जोसफ इन तीन जजों में सबसे सीनियर हैं। परम्परा ये रही थी कि जिस जज ने सबसे पहले किसी प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश का पद सम्भाला है वही सीनियर है। मगर, मोदी सरकार ने एक नयी परम्परा की शुरुआत कर दी।
नयी परम्परा के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में शपथ लेने वाले जज की वरीयता इस आधार पर तय होगी कि कौन सबसे पहले हाईकोर्ट में जज बना। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के रूप में जिन तीन न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है उनमें जस्टिस इंदिरा बनर्जी सबसे सीनियर हैं जिन्होंने 5 फरवरी 2002 को पहली बार हाईकोर्ट में जज के तौर पर शपथ ली थी।
जस्टिस विनीत सरन 14 फरवरी 2002 में हाईकोर्ट के जज बने जबकि जस्टिस केएम जोसफ 14 अक्टूबर 2004 को हाईकोर्ट के जज बने है। कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मोदी सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में काला दिन बताया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के जज से सरकार के फैसले का विरोध करने की भी अपील की है।
सुप्रीम कोर्ट में जज की शपथ दिलाने के लिए वरीयता कैसे तय करें, इसका आधार बदला जाना उचित है या यह राजनीतिक पक्षपात या विद्वेष के कारण है, इस पर बहस जारी रहेगी। बहस इस बात पर भी होगी कि इस घटना न्यायालय में केन्द्र सरकार का हस्तक्षेप माना जाए या नहीं। फिर भी, संतोष की बात ये है कि बिना किसी विरोध की घटना के बीच तीनों न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश के कमरे में शपथ ले ली है।