फिर चूकी कांग्रेस : हरिवंश बने उपसभापति
कांग्रेस एक बार फिर चूक गयी। रणनीति धराशायी हो गयी। बल्कि, कोई रणनीति थी ही नहीं। ऐसे में रण जीत लेने के चमत्कार पर खुद कांग्रेसियों को भी भरोसा नहीं था। राज्यसभा में डिप्टी चेयरमैन के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार बीके हरि प्रसाद की हार निश्चित थी और वही हुआ।
फिलहाल, 245 सीटों वाली राज्यसभा में एक स्थान रिक्त है। एनडीए उम्मीदवार हरिवंश को 125 वोट मिले, जबकि पराजित उम्मीदवार को 105 वोट। 14 सदस्य वोटिंग से दूर रहे। ऐसे में जादुई आंकड़ा महज 116 का रह गया था। आंकड़े एनडीए के पास भी नहीं थे। आंकड़े यूपीए के पास भी नहीं थे। ये दिलचस्प मुकाबला हो सकता था, मगर तब जब कांग्रेस कुर्बानी को तैयार होती।
कांग्रेस ने न कुर्बानी दी और न ही विपक्षी एकता के लिए कोई प्रयास किया। सत्ताधारी खेमे में सेंधमारी तो बहुत दूर की बात है। कांग्रेस के पास राज्यसभा में अपना वोट 50 था और यूपीए के पास 61. एसपी, बीएसपी, टीएमसी, लेफ्ट, टीडीपी, जेडीएस, डीएमके जैसी पार्टियों का वोट अगर कांग्रेस जुटा पाती तो कांग्रेस को 111 से लेकर 118 वोट तक हासिल हो सकते थे।
कई सदस्यों की अनुपस्थिति के बीच जादुई आंकड़ा भी 123 से नीचे होने के कारण कांग्रेस जीत की उम्मीद कर सकती थी। मगर, हुआ क्या? आम आदमी पार्टी, वाईएसआर कांग्रेस और यहां तक कि डीएमके के भी दो सांसदों ने वोटिंग का बहिष्कार किया। जो वोट निश्चित रूप से एनडीए के खिलाफ हो सकता था, उसे भी कांग्रेस बटोर नहीं सकी।
आम आदमी पार्टी की ज़िद यही थी कि राहुल गांधी एक बार अरविन्द केजरीवाल को फ़ोन कर लें। बीजेपी ने जेडीयू उम्मीदवार को खड़े करने का दांव चलकर बीजू जनता दल यानी बीजेडी के 9 बेशकीमती वोट बटोर लिए। इस तरह वह आसानी से 100 के आंकड़े पर पहुंच गयी। बाकी 25 वोटों में अन्नाद्रमुक के 13 वोट और अन्य का हाथ था।
अमर सिंह जैसे जुगाड़ु सांसद को भी बीजेपी ने अपने साथ जोड़ लिया। जो सांसद अनुपस्थित रहे, उन्हें भी रणनीति के तहत अनुपस्थित रहने के लिए राजनीतिक बिसात बिछाई गयी। कांग्रेस की जवाबी तैयारी बिल्कुल नहीं दिखी। अगर कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार उतारने के बजाए एनसीपी उम्मीदवार दिया होता, तो वह एनडीए खेमे में सेंधमारी कर सकती थी।
शिवसेना उसी आधार पर यूपीए उम्मीदवार को वोट करती जिस आधार पर कभी प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के लिए राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वोट किया था। वैसी स्थिति में बीजेडी का समर्थन भी पाया जा सकता था, जिसने जेडीयू से अच्छे संबंध के आधार पर एनडीए उम्मीदवार का समर्थन किया। इसके अलावा वाईएसआर कांग्रेस, पीडीपी जैसे संगठनों का समर्थन भी यूपीए हासिल कर सकती थी। मगर, एक तरह की बेपरवाही साफ तौर पर दिखी।
2019 से पहले विपक्ष की एकता को मजबूत करना और अपनी भूमिका को नेतृत्वकारी बनाना कांग्रेस के पुनरोद्धार की शर्त है मगर इस शर्त की अनदेखी करती कांग्रेस ने डिप्टी चेयरमैन का पद एक तरह से एनडीए को गिफ्ट कर दिया है। कांग्रेस चुनाव नतीजे आने से पहले ही चुनाव हार चुकी थी। आशंका यही है कि कहीं इस हार का दुष्परिणाम कांग्रेस को महागठबधन खड़ा करने की कोशिशों में भी ना भुगतना पड़ जाए। कहने की ज़रूरत नहीं कि ये आंशका बीजेपी के लिए शुभ है।