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वाजपेयी के अनछुए पहलू

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अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में भारतीय राजनीतिक क्षितिज से एक महान व्यक्तित्व का अस्त हो चुका है लेकिन वे भारतीय राजनीति में मील का पत्थर बने बने रहेंगे। कटुता की राजनीति से परे समावेशी राजनीति के प्रेरक के तौर पर उन्हें याद किया जाता रहेगा। चाहे नेता प्रतिपक्ष रहते हुए UN में भारत के प्रतिनिधित्व करने की बात हो या फिर गोपनीय तरीके से परमाणु परीक्षण कर दुनिया को चौंका देने वाला उनका व्यक्तित्व, वे दुनिया में भी याद किे जाते रहेंगे।

सदन के भीतर ब्रह्मचारी समझे जाने का जिस विनोदपूर्ण तरीके उन्होंने खंडन किया था या फिर जलेबी खाने-खिलाने जैसे जो वाकये उनसे जुड़े रहे हैं उनका भी महत्व अटल प्रेमियों में बना रहेगा। आनेवाली पीढ़ियां अटल बिहारी वाजपेयी के बहुमुखी व्यक्तित्व से अचम्भित रहेंगे।

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं रहे। यह एक औपचारिक घोषणा है। वास्तव में 14 साल हो गये उन्हें देश से बिछड़े हुए। 2004 में इंडिया शाइनिंग की हार हुई थी, बीजेपी और एनडीए की हार हुई थी। इस हार की जिम्मेदारी लेते हुए अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि यह उनकी हार है और वे इसका प्रायश्चित करेंगे।

प्रायश्चित और पश्चाताप की भावना लिए अटल बिहारी वाजपेयी के बीते 14 साल को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है। एक हिस्सा सांसद के रूप में 2004 से 2009 का है जब वे यदा-कदा ही व्हील चेयर पर दिखे। उदाहरण के तौर पर उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट डालना, यूपी विधानसभा चुनाव की एक रैली में दिखना, नागपुर में संघ के एक कार्यक्रम में मौजूद रहना- मगर, ये सभी सक्रियता 2007 की थी। बीते 14 साल का दूसरा हिस्सा 2009 के बाद का है जब एक स्ट्रोक के बाद वे बातचीत करने की स्थिति में भी नहीं रह गये और समझने-बूझने की शक्ति भी जाती रही।

2004 के आम चुनाव में हार के बाद अटल बिहारी वाजपेयी की दो प्रतिक्रियाएं अहम हैं। इनमें से एक प्रतिक्रिया उन्होंने निवर्तमान प्रधानमंत्री के तौर पर अपना अंतिम भाषण देते हुए दी थी- “मेरी पार्टी और गठबंधन हार गया, लेकिन भारत की जीत हुई है।”

आम चुनाव में पराजय के बाद लोकतंत्र की जीत तो कहते नेताओं को सुना गया है, लेकिन भारत की जीत? यह अनोखी बात थी। बात धीरे-धीरे खुली। हार के बाद जब वाजपेयी छुट्टियां मनाने शिमला गये, तो उन्होंने वहां खुलकर अपने विचार रखे। वाजपेयी ने न सिर्फ ये कहा कि गुजरात दंगे की वजह से आम चुनाव में हार हुई, बल्कि ये भी कह डाला कि वे चाहते थे कि मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर कार्रवाई करें, लेकिन संघ से जुड़े नेताओं ने ऐसा नहीं होने दिया। यह वाजपेयी की आम चुनाव में हार के बाद दूसरी प्रतिक्रिया रही।

वाजपेयी ने शिमला में यहां तक कह डाला कि जून महीने में मुम्बई में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में गुजरात के विषय पर चर्चा होगी। जाहिर है हंगामा बरप गया। तत्कालीन संघ प्रमुख सुदर्शन से लेकर तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष वेंकैया नायडू तक ने अटल बिहारी वाजपेयी पर निशाने साधे। नायडू ने कहा कि गुजरात को लेकर मुम्बई में होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में कोई चर्चा नहीं होगी, तो सुदर्शन बोले कि एमपी, छत्तीसगढ़, राजस्थान में गुजरात के कारण ही बीजेपी जीती।

अटल ने भी वेंकैया पर पलटवार किया।

(कहा गुजरात पर चर्चा जरूर होगी। हम जीत के बाद भी चर्चा करते हैं, जीत नहीं मिलने पर भी। )

बिना नाम लिए संघ प्रमुख सुदर्शन के हमले का जवाब ये कहते हुए दिया कि लोकसभा चुनाव में उन तीन राज्यों में बीजेपी को अच्छी सफलताएं मिलीं, लेकिन गुजरात में हम और अच्छा कर सकते थे।

बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। मगर, अटल बिहारी वाजपेयी अकेले पड़ चुके थे। यह बीजेपी में उनकी आखिरी छटपटाहट थी। इंडिया शाइनिंग का प्रतीक रहे अटल बिहारी वाजपेयी की शाइनिंग अपनी ही पार्टी में ख़त्म हो चुकी थी। अटल को पता था कि अब नरेंद्र मोदी और गुजरात पर आगे उनकी इच्छा मुताबिक कोई चर्चा होने वाली नहीं है। इसलिए उन्होंने इशारों-इशारों में कह डाला कि बर्फ जम गया है।

नरेंद्र मोदी को वाजपेयी की राजधर्म वाली नसीहत किसे याद नहीं है। वह ऐतिहासिक सीख आज भी सबके कानों में गूंजती है।

वाजपेयी का वह बयान भी लोगों को याद रहता है जब उन्होंने गुजरात का दौरा करने के बाद कहा था कि वे किस मुंह से विदेश में अपना मुंह दिखलाएंगे?

जाहिर है अटल बिहारी वाजपेयी को इस बात का मलाल रहा कि खुद उन्होंने नरेंद्र मोदी पर कार्रवाई नहीं करके राजधर्म का पालन नहीं किया। इसकी ही सज़ा उन्हें 2004 के चुनाव में मिली। इस सज़ा को वाजपेयी ने स्वीकार किया। इन परिस्थितियों को समझने के बाद अब वाजपेयी के उस बयान को समझा जा सकता है जिसमें उन्होंने अपनी पार्टी और गठबंधन की हार को ‘भारत की जीत’ बताया था।

 

 

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