केरल में बाढ़ : क्या ग़लत है ठुकराना विदेशी मदद?
केरल में बाढ़ पीड़ितों को राहत और पुनर्वास के लिए कई मित्र देशों ने मदद की पेशकश की है। सबसे बड़ी मदद का प्रस्ताव यूएई से आया है। 700 करोड़ की मदद के प्रस्ताव को भारत ने पूरी विनम्रता के साथ ठुकरा दिया है। इसके अलावा कतर और मालदीव की ओर से 50-50 हज़ार डॉलर यानी करीब 35-35 करोड़ रुपये की मदद के प्रस्ताव भी आये हैं।
ये मदद भी स्वीकार नहीं किए जा सकते थे। क्या है वजह? क्यों नहीं हम स्वीकार कर रहे हैं विदेश से मदद? इसका उत्तर समझने के लिए हमें कुछेक और स्थितियों पर गौर करना होगा। जब बिहार में, उड़ीसा या तमिलनाडु में बाढ़ आती है तब विदेशी मदद इतनी उदार क्यों नहीं रहा करती? मदद की भावना, मानवता क्या क्षेत्र बदलने से बदल जाया करती हैं? ये सच है कि केरल के करीब 30 लाख लोग यूएई में रहते हैं।
केरल से कतर और मालदीव का भी संबंध गहरा है। इस सम्बन्ध का सम्मान करते हुए हम व्यक्तिगत योगदानों को स्वीकार कर रहे हैं। एनजीओ के माध्यम से दिए जा रहे योगदानों को भारतीय मूल के लोगों के लिए नियमानुसार टैक्स फ्री भी कर रहे हैं। भारत ने विदेश से मदद की ज़रूरत फिलहाल नहीं समझी है।
हालांकि यह चिन्ता का विषय वर्तमान केन्द्र सरकार के लिए जरूर है कि जितनी मदद की पेशकश उसने केरल में की है, उससे ज्यादा की पेशकश अकेले यूएई कर बैठा है। इससे दो सवाल खड़े होते हैं- पहला सवाल क्या संदेश ये है कि केरल में भारत सरकार दिल खोलकर मदद नहीं कर रही है? दूसरा सवाल अगर ये सच है तो क्या इसके पीछे केरल के प्रति कोई दुर्भावना है? इन सवालों को अगर आगे बढ़ने से रोकना है तो विदेशी मदद ठुकराने के साथ-साथ इस मदद के पीछे की चिन्ता जो वाजिब हो भी सकती है और नहीं भी, उसे संज्ञान में लेना होगा।
केरल की जनता में ये संदेश नहीं जाना चाहिए कि हम विदेश से मदद भी नहीं ले रहे हैं और उनकी मदद भी नहीं करना चाहते। भारत सरकार के लिए मुश्किल ये भी है कि केरल में बाढ़ को ‘राष्ट्रीय आपदा’ नहीं माना गया है। ‘राष्ट्रीय आपदा’ मानने का मतलब होता कि केरल सरकार स्थिति से निपटने में अक्षम है इसलिए भारत सरकार अपनी पूरी क्षमता और दमखम के साथ हाजिर है।
अभी जब हमने खुद अपनी क्षमता और संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया है, तो किस मुंह से हम विदेश से मदद स्वीकार करेंगे? उत्तराखण्ड में विनाशकारी प्राकृतिक विपदा आई थी तब भी यूपीए सरकार ने विदेशी मदद से इनकार किया था। बद्रीनाथ, केदारनाथ जैसे धार्मिक स्थल पर अपने बूते पुनरोद्धार का संकल्प भारत सरकार ने लिया था और इस संकल्प को पूरा कर दिखलाया। केरल में बाढ़ के बीच भारतीय सेना ने शानदार बचाव और राहत कार्य कर दिखलाया है। फौरी जरूरत यही थी।
अब प्रदेश में बिजली की वापसी, इंटरनेट, फोन आदि को सामान्य बनाना चुनौती है। बाढ़ से जमा हुए पानी की निकासी कैसे हो, महामारी से कैसे निपटा जाए, दवाएं और पीने का पानी की कमी ना होने पाए। इन सब चीजों के लिए डॉलर से ज्यादा दिल और इच्छाशक्ति चाहिए। भारत के लोगों के पास इसकी कमी नहीं है।
निश्चित तौर पर केरल को दोबारा पहले जैसा बनाने में डॉलर की भूमिका होगी, मगर इसके लिए विदेशी मदद की आवश्यकता जरूरी हो, ऐसा नहीं है। केरल में 27 फीसदी मुस्लिम आबादी है। इसका मतलब ये है कि 63 फीसदी हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन हैं। इसलिए यह मान लेना कि धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव किया जा रहा है यह गलत है। केरल में भारत सरकार पूरी संजीदगी के साथ राहत, बचाव और पुनर्वास का काम कर रही है।