“मोदी, इंदिरा दोनों तानाशाह”: बोल गए कुलदीप नय्यर
कुलदीप नैय्यर और अटल बिहारी वाजपेयी एक ही उम्र के थे। दोनों 1924 में जन्मे। कुलदीप नैय्यर का जन्म 14 अगस्त को हुआ था और वाजपेयी का 25 दिसम्बर को। जन्म में चार महीने का फासला था और मौत में महज एक हफ्ते का फर्क। दोनों ने देश के लिए कलम थामे। एक को कलम ने राजनीति की राह पकड़ा दी, तो दूसरे को वास्तविक अर्थ में कलम ने अपना सिपाही बना लिया।
पाकिस्तान के सियालकोट में जन्मे कुलदीप नैय्यर ने लाहौर यूनिवर्सिटी से लॉ और दर्शनशास्त्र से एमए करने के बाद अमेरिका से पत्रकारिता की पढ़ाई की। फिर पत्रकारिता में ऐसे रचे-बसे कि खुद पत्रकारिता का पर्याय बन गये। पत्रकारिता में उनके नाम से दिया जाने वाला अवार्ड है- कुलदीप नैय्यर पत्रकारिता अवार्ड।
बंटवारे के बाद कुलदीप नैय्यर ने हिन्दुस्तान में रहने का फैसला किया। उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की रिपोर्टिंग भी की। कुलदीप नैय्यर ने ऊर्दू में पत्रकारिता शुरू की, मगर जल्द ही वे अंग्रेजी और हिन्दी समेत विभिन्न भारतीय भाषाओं में छपने लगे। 25 साल तक कुलदीप नैय्यर ‘द टाइम्स’, लंदन के रिपोर्टर रहे। यूएनआई, पीआईबी, द स्टेट्समैन और इंडियन एक्सप्रेस में उन्होंने लम्बे समय तक काम किया। इसके अलावा वे 80 से अधिक समाचार पत्रों के लिए 14 भाषाओं में कॉलम लिखते रहे।
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के प्रेस सलाहकार रहे कुलदीप नैय्यर ताशकंद में भी मौजूद थे जहां रहस्यमय परिस्थितियों लाल बहादुर शास्त्री की मौत हुई थी। मगर, कभी उन परिस्थितियों से कुलदीप नैय्यर ने पर्दा नहीं हटाया। कुलदीप नैय्यर को गैर कांग्रेसवाद का समर्थक माना जाता है, मगर सही मायने में वे ऐसे वादों से बहुत ऊपर थे।
अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र की रक्षा ही उनके जीवन का मकसद रहा। इसकी राह में जो कोई भी आया, कुलदीप नैय्यर उनके खिलाफ हो गये। इन्दिरा गांधी के शासनकाल में कुलदीप नैय्यर सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले पत्रकार थे। आपातकाल का उन्होंने पुरजोर विरोध किया।
कुलदीप नैय्यर ने खुलकर ये बात रखी थी कि आरएसएस के सदस्य रहे लोगों को उच्च पद नहीं दिए जाएं। इसके लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से उन्होंने कानून बनाने का भी आग्रह किया था। अन्ना आंदोलन के दौरान कुलदीप नैय्यर ने अनशन का विरोध किया था। खुद अन्ना ने भी यह माना था कि वे अनशन नहीं करना चाहते थे।
कुलदीप नैय्यर ने नरेन्द्र मोदी सरकार की भी आलोचना की। उन्होंने इन्दिरा गांधी के जमाने की इमर्जेंसी से वर्तमान समय की तुलना करते हुए इसे अधिक ख़तरनाक बताया। कुलदीप ने कहा था कि मोदी कैबिनेट में मंत्री की कोई हैसियत नहीं। कुलदीप नैयर ने कई किताबें लिखीं। इनमें ‘बिटवीन द लाइन्स’, ‘डिस्टेण्ट नेवर : ए टेल ऑफ द सब कॉनण्टीनेण्ट’, ‘इण्डिया आफ्टर नेहरू’, ‘वाल एट वाघा, इण्डिया पाकिस्तान रिलेशनशिप’, ‘इण्डिया हाउस’, ‘स्कूप’ ‘द डे लुक्स ओल्ड’ शामिल हैं।
1990 में नैय्यर इंग्लैंड में उच्चायुक्त बने। 1996 में उन्होंने यूएन में भारत का प्रतिनिधित्व किया। 1997 में राज्यसभा में मनोनीत किए गये। कुलदीप नैय्यर को पत्रकारिता में उनके अतुलनीय योगदान के लिए 2015 में रामनाथ गोयनका स्मृति पुरस्कार दिया गया। लम्बे समय तक बीमार रहने के बाद 22-23 अगस्त की दरम्यानी रात करीब साढ़े बारह बजे उन्होंने दुनिया छोड़ दी।