क्या ख़तरे में है हिन्दुस्तान का लोकतंत्र?
सुप्रीम कोर्ट भी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से चिन्तित है। जस्टिस चंद्रचूड़ की चिन्ता पर हम गौर करते हैं
“ये बहुत दुर्भाग्य की बात है। ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया जा रहा है। जो दूसरों के अधिकार को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, उनका मुंह बंद करना चाहते हैं। ये लोकतंत्र के लिए बहुत ख़तरनाक है।”
सुप्रीम कोर्ट जिस चिन्ता की ओर ध्यान दिला रहा है वो है माहौल। अभिव्यक्ति की आज़ादी सिर्फ ये नहीं होती कि आपको बोलने की आज़ादी है। यह आज़ादी माहौल में होती है। दहशत के माहौल में यह आज़ादी गुम हो जाती है। वहीं, लोकतांत्रिक माहौल में यह आज़ादी परवान चढ़ने लगती है।
लोकतंत्र में दक्षिणपंथ और वामपंथ के विचार समेत सभी विचारों के लिए जगह होनी चाहिए। हिंसा का स्थान बिल्कुल नहीं होना चाहिए। और, अगर कोई हिंसा हो, तो वह विरोधी विचारों को दबाने का बहाना नहीं बनना चाहिए। बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को बिल्कुल सही बताते हैं। वह कांग्रेस पर बरसते हैं कि वरवरा राव को कांग्रेस शासन काल में भी गिरफ्तार किया गया था। इसलिए अगर तब वे नक्सली थे, तो अब कांग्रेस उन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता न बताएं। हालांकि संबित पात्रा ये भूल रहे हैं कि वरवरा राव पर तब लगे सभी 20 आरोप बेबुनियाद साबित हुए थे।
कांग्रेस को वरवरा राव के पक्ष में बोलने की नैतिकता न हो, ये बात तो मानी जा सकती है लेकिन इससे वरवरा राव को दोबारा जेल में डालने को सही कैसे ठहराया जा सकता है? राहुल गांधी से ये हक कैसे छीना जा सकता है कि वे अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए अपनी आवाज़ बुलन्द करें।
सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की चिन्ता के बीच लोकतंत्र के स्वास्थ्य की चिन्ता जाहिर है देश की जनता को सता रही है।