Mon. Dec 23rd, 2024

महंगाई पर ‘भारत बंद’ : काँग्रेस के तेवर तल्ख़

Featured Video Play Icon

10 सितम्बर को भारत बन्द। इस आयोजन के मतलब बड़े हैं। वो कांग्रेस भारत बन्द कराती दिखी, जिसकी सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा बंद के आयोजन हुए। इस बंद से राहुल गांधी के नेतृत्व में वास्तव में कांग्रेस पहली बार विपक्षी पार्टी का तेवर दिखाती दिखी। 21 दल कांग्रेस के साथ भारत बंद में एकजुट रहे। जो तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी बंद के साथ खड़ी नहीं दिख रही थी, कांग्रेस ने उन्हें भी मना लिया। राहुल गांधी के साथ मार्च में या मंच पर इन पार्टियों के नुमाइंदे भी नज़र आए।

मुद्दा बड़ा था। आम आदमी से जुड़ा था। महंगाई मुद्दे पर बीजेपी सरकार के खिलाफ बंद का आयोजन हो, यही बड़ी पहल थी। इस आयोजन से जुड़ी सफलता जिस हद तक दिखी है उसने इस पहल की भी अहमियत बढ़ा दी है। 2019 के आम चुनाव से पहले कांग्रेस की ओर से इस पहल भारत बंद की अहमियत इस लिहाज से भी ज्यादा है कि आने वाले दिनों में ये तेवर और भी तल्ख़ होंगे। भारत बंद का असर जिस तरीके से गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में देखा गया है वह बीजेपी के लिए बेचैन करने वाला है।

कर्नाटक, केरल, आन्ध्र प्रदेश में भी कांग्रेस ने अपना पूरा दमखम दिखाया है। हिमाचल, उत्तराखण्ड जैसे राज्यों में भी बंद प्रभावशाली रहा। बिहार, यूपी में भी भारत बंद का मिला-जुला असर देखने को मिला। देश के बाकी हिस्से भी बता रहे हैं कि भारत बंद कहीं से भी नज़रअंदाज करने वाली घटना नहीं रही। महंगाई पर ये गुस्सा है। जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद सम्भाला था उस समय 26 मई 2014 को क्रूड ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमत 106.85 डॉलर प्रति बैरल थी। आज 2018 में यही क़ीमत 68.36 डॉलर प्रति बैरल हो गयी है। यानी 38.49 डॉलर प्रति बैरल सस्ता हो चुका है क्रूड ऑयल।

अगर पेट्रोल की कीमत की बात करें तो जब नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद सम्भाला था तब पेट्रोल की कीमत थी 71.41 रुपये प्रति लीटर, जबकि आज यह 80 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच चुका है। वैसे यह फर्क 8.59 रुपये प्रति लीटर मात्र है। मगर ये फर्क इसलिए बड़ा है क्योंकि मोदी सरकार में क्रूड ऑयल के दाम 60 डॉलर प्रति बैरल तक गिरने के बावजूद कभी पेट्रोल-डीजल के दाम उस हिसाब से नहीं घटे। सवाल ये है कि जो सरकार जनता की हो उसे पेट्रोल से 200 फीसदी और डीजल से 400 फीसदी तक मुनाफाखोरी करने का क्या अधिकार है?

यह सवाल महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि रिफाइन पेट्रोल-डीजल का भारत निर्यातक देश है और आप ताज्जुब करेंगे कि जिस दर पर भारत के लोग पेट्रोल-डीजल खरीद रहे हैं उससे आधी से भी कम कीमत पर इसका निर्यात किया जा रहा है। औसतन 35 रुपये प्रति लीटर की दर से पेट्रोल-डीजल का निर्यात जारी है। कांग्रेस का कहना है कि मनमोहन सरकार के समय में जब पेट्रोल की कीमत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 160 डॉलर प्रति बैरल छू गयी थी तब भी इतना महंगा पेट्रोल नहीं बेचा गया।

महंगाई और खासकर इसकी वजह पेट्रोल-डीजल की कीमत ने जनता को झकझोर कर रख दिया है। भारत बंद के दौरान इसका असर दिखा है। कैलाश मानसरोवर से लौटने के बाद राहुल गांधी की ये पहली बड़ी राजनीतिक पहल रही। इसमें वे दो तरीके से सफल दिखे- एक भारत बंद का आयोजन और दूसरा इस आयोजन में 20 से ज्यादा दलों का मिला साथ। मोदी सरकार के पांचवें साल में ऐसा दिख रहा है कि देश को विपक्ष मिल गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *