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लाखों करोड़ के NPA पर रघुरामराजन का खुलासा

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एक Disclosure, एक खुलासा। रघुराम राजन का ये खुलासा माना जा रहा है। NPA को लेकर अब तक का ये बड़ा और महत्वपूर्ण खुलासा है।  यह खुलासा उस रघुराम राजन ने किया है जो रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के 23वें गवर्नर रहे हैं जिन्होंने 2013 से 2016 तक देश को अपनी सेवाएं दीं। कहा जाता है कि नोटबंदी की बात नहीं मानने की वजह से वे रिज़र्व बैंक में बने नहीं रह सके। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बारे में राय देने से उन्होंने इसलिए मना कर दिया था क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से ‘समस्या’ पैदा हो जाएगी।

अमेरिका के शिकागो में पढ़ा रहे रघुराम राजन को बड़ी भूमिका देने को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती हैं। मगर, इस बार वे अलग कारणों से चर्चा में हैं। एनपीए यानी नॉन प्रॉफिट एस्सेट। इसे हिन्दी में अनुवाद करें तो ‘डूब चुका धन’ या ‘डूब चुकी संपत्ति’ ही इसका सही अनुवाद होगा।

रघुराम राजन ने यह कह कर राजनीतिक जगत में सनसनी फैला दी है कि एनपीए में जो बढ़ोतरी हुई है उसके लिए यूपीए सरकार का 2006-08 तक का कार्यकाल सबसे ज्यादा ज़िम्मेदार है। क्या रघुराम राजन का यह रहस्योद्घाटन भारत में उनकी बड़ी भूमिका की पृष्ठ भूमि है? या कि रघुराम राजन ने वाकई कोई बड़ा खुलासा किया है।

संसद की एस्टीमेट कमेटी के प्रमुख मुरली मनोहर जोशी को भेजे नोट में रघुराम राजन ने अपनी बात रखी है। एनपीए को लेकर बीजेपी और कांग्रेस में एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने की चल रही जंग को दरअसल रघुराम राजन ने सुलगा दिया है। अब बीजेपी और अधिक स्पष्ट तरीके से कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहरा पाएगी। वहीं, कांग्रेस की ओर से एनपीए के लिए बीजेपी सरकार को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश हल्की होगी।

सबसे पहले नज़र डालते हैं कि रघुराम राजन ने कहा क्या है- एनपीए के लिए बैंकर्स दोषी आर्थिक मंदी दूसरी बड़ी वजह फैसला लेने में सरकार से देरी हुई सरकार ने लापरवाही की UPA सरकार में घोटाले बड़ी वजह सबसे ज्यादा NPA 2006-08 के दौरान एक नज़रिया ये भी हो सकता है कि रघुराम राजन नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार के उन आरोपों का जवाब दे रहे हों कि रघुराम राजन की नीतियों के कारण देश में एनपीए बढ़ा।

सम्भव है कि वे सफाई दे रहे हों कि जिम्मेदार वे नहीं, तत्कालीन सरकार और दूसरे फैक्टर्स हैं। मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में 2009 से 2014 के बीच सरकारी और निजी बैंकों ने कुल 1 लाख 22 हज़ार 753 करोड़ रुपये के लोन को बट्टा खाते में यानी एनपीए में डाला था। जबकि मोदी सरकार में सिर्फ 2018 के आंकड़े बताते हैं कि सरकारी और निजी बैंकों के बट्टा खाते में यानी एनपीए में 1.44 लाख करोड़ डाले जा चुके हैं। यह रकम यूपीए 2 सरकार के कार्यकाल यानी 5 साल के दौरान एनपीए हुई रकम से भी ज्यादा है।

अगर पीएम मोदी के चार साल के शासनकाल पर नज़र डालें तो 3 लाख 57 हज़ार 341 करोड़ रुपये को अब तक बट्टा खाते में यानी एनपीए में डाला जा चुका है। यूपीए 2 के मुकाबले यह रकम तिगुनी है।

आंकड़े कह रहे हैं बैंकों का धन डूब रहा है। सच ये है कि ये धन बैंकों का नहीं देश की जनता का है। जनता की गाढ़ी कमाई चुनिन्दा लोगों में बांट दी गयी और वे इसे डकार गये हैं। बैंक भी लाचार है और सरकारें लाचार होने के बहाने गढ़ रही हैं। उद्योगपति अपने-अपने फायदों के लिए राजनीतिक लामबंदी कर रहे हैं। आखिर कौन लेगा एऩपीए के नाम पर इस लूट की जिम्मेदारी?

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