केरल में बाढ़ से हाहाकार : कब जागेंगे हम?
केरल ने सौ साल बाद ऐसी बाढ़ देखी। बाढ़ का प्रकोप तो मॉनसून आने के साथ ही 29 मई को शुरू हो गया था, लेकिन 8 अगस्त से 15 अगस्त के बीच 250 फीसदी से अधिक बारिश ने हालात बिगाड़ दिए। राज्य में 80 बांधों के दरवाजे खोलने पड़े। उसके बाद नदियों का जलस्तर बताने वाले लाल निशान खुद इसमें डूब गये।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बाढ़ प्रभावित इलाकों का हवाई सर्वेक्षण कर चुके हैं। उन्होंने केरल को 500 करोड़ रुपये की मदद करने की घोषणा की है। इसके अलावा प्रधानमंत्री राहत कोष से उन्होंने मृतकों के परिजनों को 2-2 लाख रुपये और बाढ़ पीड़ितों के लिए 50-50 हज़ार रुपये के मुआवज़े की घोषणा की है।
देश के कई राज्यों की सरकारें भी केरल को मदद के लिए आगे आयी हैं। इनमें दिल्ली, बिहार, कर्नाटक, बंगाल की सरकारें शामिल हैं। राजनीतिक दलों में कांग्रेस, आरजेडी, वामदलों ने अपने-अपने कार्यकर्ताओं को केरल में बाढ पीड़ितों की मदद करने को कहा है। केरल में आयी इस भीषण बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा क्यों नहीं घोषित किया जा रहा है, इसे लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
अगर देश के सभी राज्य और सभी राजनीतिक पार्टियां एक साथ मदद की पेशकश करतीं, तो केरल को वाकई मदद महसूस होती। टुकड़ों में बिखरकर हो रही मदद उतनी कारगर होती नहीं दिख रही। केरल में 5,645 राहत शिविर काम कर रहे हैं। इन शिविरों 7 लाख 24 हज़ार से ज्यादा लोगों ने शरण ले रखी है। अब तक 400 से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकी हैं।
बाढ़ से सबसे ज्यादा प्रभावित ज़िले हैं अलाप्पुझा, एर्नाकुलम और त्रिशुर। अभी भी जिन जगहों में भोजन या पानी के बिना लोग फंसे हुए हैं उनमें चेंगन्नूर, पांडलम, तिरुवल्ला और पथानामथिट्टा ज़िले के कई इलाके शामिल हैं। बचाव और राहत कार्य की बात करें तो मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का दावा है कि 22 हज़ार से ज्यादा लोगों की जानें बचायी गयी हैं।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बाढ़ के बाद महामारी रोकने के लिए 3,575 मेडिकल शिविर लगाए हैं। 90 प्रकार की दवाओं की पहली खेप सोमवार 20 अगस्त को केरल पहुंच चुकी है। 60 टन दवाएं भी केरल के लिए रवाना की जा चुकी हैं। इतना ही नहीं 14 लाख शुद्ध पानी की बोतलें स्पेशल ट्रेन से भेजे गये हैं। नेवी के जहाज से 8 लाख लीटर पीने का पानी पहले ही रवाना कर दिया गया है।
खाद्य और जनवितरण विभाग ने तुरंत ज़रूरतों को पूरा करने के लिए 50 हज़ार मीट्रिक टन अनाज उपलब्ध कराया है। सौ मीट्रिक टन दाल हवाई मार्ग से भेजे गये हैं। अतिरिक्त दाल रेलगाड़ी से भेजी जा रही है।
पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने केरल के लिए 9300 किलोलीटर किरासन तेल उपलब्ध कराया है। 12 हज़ार किलोलीटर अतिरिक्त तेल की भी व्यवस्था की जा रही है। केरल में बाढ़ की विभीषिका यह सवाल भी उठा रही है कि क्या हम इस बाढ़ को रोक नहीं सकते थे?
देश में जलपुरुष के नाम से मशहूर मैग्सेसे विजेता राजेन्द्र सिंह इस बाढ़ को केरल की नदियों के आंसू का बहना बताते हैं। जो नदियां सुख और समृद्धि लाने के लिए मशहूर रही हैं वही नदियां बाढ़ और सुखाड़ के लिए कुख्यात होने लगी हैं।
औद्योगिक कचरा, नदियों के किनारे बसाव, नदी का लगातार छिछला होता चला जाना, कृत्रिम बांधों का दुरुपयोग…ऐसे बहुत से कारण हैं जिनको नियंत्रित करने से ही नदियों को जीवनदायिनी बनाये रखा जा सकता है अन्यथा यह जीवन के लिए ख़तरा बनती चली जाएगी। सवाल ये है कि हम कब जागेंगे?