हिन्दी दिवस : उत्सव का समय
हिन्दी दिवस को मनाते हुए 69 साल हो गये। आगे भी इस दिवस का उत्सव जारी रहेगा। कारण ये है कि हिन्दी ने अपने आकर्षण में देश को बांध लिया है। इसकी सीमा बढ़ती ही चली जा रही है। भौगोलिक नज़रिए से भी और सामाजिक व सांस्कृतिक तौर पर भी। आज देश में हर दूसरा आदमी हिन्दी बोल रहा है। ये हिन्दी बोलने वाले ही इस भाषा की ताकत भी हैं और जान भी।
एक दौर था जब हिन्दी दिवस हिन्दी की दुर्दशा पर रोने का अवसर हुआ करता था। आदतन अब भी ऐसी आवाज़ फ़िजां में गूंजती है। मगर, अब ऐसा करने वालों पर हंसने का समय है।
विगत वर्षों में सूचना क्रान्ति और तकनीक का विकास हिन्दी के लिए वरदान साबित हुई है। हर हाथ में मोबाइल है, हर हाथ में इंटरनेट है। हिन्दी सिनेमा, संगीत, मीडिया, सोशल मीडिया, न्यू मीडिया हर रूप में हिन्दी लोगों तक पहुंच चुकी है। देश में जागरुकता के लिए औजार बन गयी है हिन्दी।
यह मिथक भी टूटा है कि हिन्दी किसी भाषा की दुश्मन है। क्षेत्रीय स्तर पर हिन्दी को लेकर जो आशंकाएं थीं उन्हें राजनीतिक दल तो दूर नहीं कर पाए, मगर तकनीकी विकास ने हिन्दी का विस्तार कर उनकी आशंकाओं को खारिज कर दिया। क्योंकि, इस दौरान क्षेत्रीय भाषाओं ने भी उतनी ही तरक्की की है।
हिन्दी अगर किसी भाषा की दुश्मन नहीं है तो हिन्दी के लिए भी कोई भाषा दुश्मन नहीं रही है। चाहे वह अंग्रेजी ही क्यों न हो। हिन्दुस्तान में निस्संदेह अंग्रेजी बोलने वालों और हिन्दी बोलने वालों का विस्तार हुआ है। मगर, अंग्रेजी इसलिए हिन्दी की दुश्मन नहीं हो सकती क्योंकि विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ उसका वो लगाव नहीं है जो हिन्दी का है।
हिन्दी हमारी संस्कृति में रची-बसी हैं। हिन्दुस्तान के धार्मिक पर्व-त्योहार, सामाजिक रीति-रिवाज, परम्पराएं, अनुष्ठान हर चीज से हिन्दी का नाता है। यह संस्कृत की उसी तरह करीब है जैसे भारत की दूसरी भाषाएं। इसलिए हिन्दी विभिन्नता में एकता का मंच बनकर उभर सकी। हिन्दी देश को जोड़ती है। यह क्षमता विस्तार पाने के बावजूद कभी अंग्रेजी में नहीं आ सकी।
कोई भाषा रोज़गार और सरकार से जुड़कर ही विकास कर पाती है। हिन्दी को ये दोनों सौभाग्य मिल सका है। आज की तारीख में ये मुमकिन नहीं कि किसी कारोबार को बगैर हिन्दी के देश के व्यापक हिस्सों तक फैलाया जा सके। रोज़गार और कारोबार से जुड़कर हिन्दी ने खुद को देश की जनता से जोड़ लिया है। सरकारी कामकाज की भाषा के तौर पर भी हिन्दी का उपयोग बढ़ा है।
न्यू मीडिया ने भी हिन्दी का खूब विकास किया है। अब जनता खुलकर हिन्दी का इस्तेमाल करने लगी हैं। ऐसा इसलिए सम्भव हुआ है कि सिर्फ लिखकर ही नहीं, बोलकर भी हिन्दी में संदेश देने की तकनीक आ चुकी है। अब ये रोना-गाना भी नहीं चलने वाला है कि हिन्दी कोई पढ़ना नहीं चाहता, इसलिए किताबें छापकर क्या करेंगे। ऑनलाइन पर ऑर्डर मौजूद होता है। और इसलिए हिन्दी में किताबें भी छापनी पड़ती हैं। प्रभावशाली हिन्दी का वक्ता अब आदर पाता है। हिन्दी अब उपेक्षा का विषय नहीं है। हिन्दी की जानकारी होना गर्व की बात है।