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JNU में देश विरोधी नारेबाजी, गुनहगारों को मिलेगी सज़ा?

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जेएनयू यानी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में 9 फरवरी 2016 का ये नज़ारा है। इसने देश को झकझोर दिया था। कश्मीर से आए युवक भी काले चेहरे लपेटकर इस नारेबाजी में शामिल थे। ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ जैसे नारे ने तो देशवासियों के दिलों के टुकड़े कर दिए थे।

अब 3 साल बाद आरोप पत्र दायर कर दिए गये हैं। 1200 पेज, 90 गवाह और उन गवाहों में 30 प्रत्यक्षदर्शी। इन प्रत्यक्षदर्शियों में भी जेएनयू के कुछ स्टाफ और सुरक्षाकर्मी। पुलिस ने आरोप पत्र में 2016 की घटना को सुनियोजित साजिश का नतीजा बताया है।

जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, अनिर्बन भट्टाचार्य, सैयद उमर खालिद समेत कई छात्रों पर राजद्रोह का मुकदमा चलेगा। अन्य छात्रों के नाम हैं अकीब हुसैन, बशरत अली, मुजीब हुसैन गट्टू, उमेर गुल, मुनीब हुसैन गटटू, रईस रसूल और खालिद बशीर भट।

इन छात्रों पर राजद्रोह, मारपीट, गैरकानूनी मजमे में शामिल होना, दंगा-फसाद-बलवा करना और आपराधिक साजिश रचने के आरोप हैं।  ऐसे में इन पर आईपीसी की जो धाराएं चलेंगी उनमें शामिल हैं-124ए, 323, 465, 471, 143, 147, 149 और 120बी

उमर खालिद के खिलाफ दो धाराएं अतिरिक्त लगायी गयी हैं। ये धाराएं हैं 465 और 471. जो फर्जी साइन करने और सबूत नष्ट करने से संबंधित धाराएं हैं।

खास बात ये है कि कन्हैया, उमर खालिद, अनिर्बन जेएनयू के छात्र थे। मुजीब हुसैन गुट्टू व एक अन्य कश्मीरी भी जेएनयू स्टूडेंट थे। मगर, इनके अलावा जिनके नाम आरोप पत्र में हैं वे जेएनयू के नहीं थे और कश्मीर के रहने वाले बताए गये हैं। इन्होंने अपने चेहरे मास्क से ढंके हुए थे ताकि इनकी पहचान न हो पाए।

कन्हैया कुमार ने अपनी पहली प्रतिक्रिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दिल्ली पुलिस का आभार जताया है कि तीन साल बाद चुनाव के मौके पर ये आरोप पत्र दायर हुए हैं। पी चिदम्बरम ने भी राजद्रोह के आरोप पर आश्चर्य जताया है।

इसमें संदेह नहीं कि तब देश विरोधी नारों के बाद आहत देश की भावनाओं का वज्र कन्हैया कुमार पर फोड़ा गया था। कन्हैया कुमार सीपीआई से संबद्ध छात्र ऑल इंडिया स्टूडेन्ट्स फेडरेशन यानी एआईएसएफ से जुड़े है। हालांकि कन्हैया कुमार और उनकी ओर से सीपीआई ने हमेशा ही देशविरोधी नारेबाजी से खुद को अलग बताया है, मगर इसमें संदेह नहीं कि आयोजन और आयोजकों के वे साथ थे।

आयोजन के संबंध में जो सवाल खड़े होते हैं उनमें अफजल गुरू की याद में समारोह करना, इसे ज्यूडिशियरी मर्डर बताना बड़ा सवाल है। संविधान में आस्था रखने वाले लोग कभी इस बात को बर्दाश्त नहीं कर सकते कि कोई अफजल गुरू की फांसी को नाजायज ठहराए। अगर इस बात की इजाजत दी जाएगी तो इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह की फांसी को भी इसी तरह गलत ठहराया जाने लगेगा। या फिर राजीव गांधी के हत्यारों की सज़ा के प्रति भी हमदर्दी जाहिर की जाने लगेगी।

जिन लोगों ने देश विरोधी नारे लगाए, उन पर आरोप साबित करने की चुनौती पुलिस के सामने है। अक्सर घटनाएं बड़ी तभी होती हैं जब उसमें राजनीतिक स्वार्थ जुड़ जाता है। जेएनयू कैम्पस की घटना भी बड़ी होती चली गयी। यह घटना अभी और बड़ी होने वाली है। चुनाव का वक्त है। लिहाजा इसे भुनाने की भी कोशिश होगी। चुनौती दोनों के लिए है। कन्हैया के लिए चुनौती है कि वह खुद को निर्दोष साबित करे और पुलिस के लिए चुनौती है कि वह दोषी को सज़ा दिलवाए। देश इंतज़ार कर रहा है कि जेएनयू कैम्पस की घटनाएं दोहरायी न जाएं, इसके लिए गुनहगार को सज़ा ज़रूर मिलनी चाहिए।

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