Mon. Dec 23rd, 2024

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

Featured Video Play Icon

यही आज देश में सबसे बड़ा सवाल है। प्रदर्शनकारी भी यही सवाल कर रहे हैं और प्रदर्शन को शांत करने की अपील करने वाले सत्ताधारी भी यही पूछ रहे हैं।

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

NRC मतलब नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन। देश में 1955 में नागरिकों का हिसाब-किताब रखने के लिए यह बनी थी। असम में यह संशोधित हुई है। 19 लाख लोग इस रजिस्टर में जगह नहीं पा सके हैं। 5 लाख 40 हज़ार हिन्दू बांग्लादेशी हैं…करीब इतनी ही संख्या में मुसलमान बांग्लादेशी भी। बाकी वे लोग हैं जिन्होंने आवेदन ही नहीं किया। असम समझौते को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में यह NRC संशोधित हुई। सवाल फिर दोहराते हैं

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

असम इस चक्कर में इसलिए पड़ा क्योंकि वहां की डेमोग्राफी बदल रही थी, संस्कृति पर कथित तौर पर ख़तरा पैदा हो गया था। 80 के दशक में 6 साल तक ख़ूनी संघर्ष हुआ। सवाल यह भी है कि NRC लागू हो जाने के बाद भी वहां हिंसा की घटनाएं क्यों हुईं या हो रही है?

असम में हिंसा की वजह?

असम में 25 मार्च 1971 के बाद 31 दिसम्बर 1985 तक आए शरणार्थियों को स्वीकार कर लेने का समझौता हुआ था। मगर, केंद्र सरकार के CAA यानी सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के बाद कट ऑफ डेट बढ़कर 31 दिसम्बर 2014 हो गयी है। ऐसे में असम के लोगों को आशंका है कि उनके यहां विदेशी प्रवासियों की तादाद बहुत बढ़ जाएगी और उनके आंदोलन का मकसद खत्म हो जाएगा। ये लोग हिन्दू और मुसलमान के बजाए बंगाली प्रवासियों का विरोध कर रहे हैं।

पूर्वोत्तर के बाकी राज्यों नगालैंड, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर में भी इसका विरोध हुआ है जबकि इन राज्यों के बड़े हिस्से में सीएए लागू नहीं हो रहा है। छठी अनुसूची में शामिल इन राज्यों की संस्कृति की रक्षा के लिए अलग से कानून बने हुए हैं। इसे Inner Line के नाम से जाना जाता है। सवाल दोहराने की जरूरत है

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

बीजेपी और केंद्र सरकार के मंत्री कह रहे हैं कि CAA का विरोध क्यों? यह सिर्फ उन शरणार्थियों के लिए है जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक रूप से प्रताड़ित हैं। इन देशों के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को नागरिकता देने का यह कानून है।

सत्ताधारी दल कह रहा है कि जब CAA में भारत के हिन्दू या मुसलमानों की नागरिकता के बारे में एक शब्द लिखा नहीं गया है तो नागरिकता जाने का ख़तरा बताकर प्रदर्शन करना देश को गुमराह करने जैसा है।

देश में हिंसा क्यों?

अब सवाल ये है कि देश भर की 23 बड़ी यूनिवर्सिटी में हुआ प्रदर्शन हो या फिर 53 शहरों में अलग-अलग हुए प्रदर्शन…इनमें शामिल लोग यह बात क्यों नहीं समझ पा रहे हैं…क्या ये समझना नहीं चाहते? क्या हैं प्रदर्शन के पीछे इनके तर्क?

देश में हिंसा क्यों?

पहला तर्क- नागरिकता धर्म के आधार पर क्यों?

दूसरा तर्क- मुसलमानों के साथ भेदभाव क्यों?

मगर, ये दो तर्क तो सिर्फ CAA से जुड़े हैं। सवाल वही है….

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

जब CAA आया तो असम के 19 लाख घुसपैठियों में बांग्लादेशी हिन्दू नागरिकता के पात्र हो गये और मुसलमान बांग्लादेशी घुसपैठिए।

जब संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने घोषणा की-

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

“NRC पूरे देश में लागू होकर रहेगा” 

तो सवाल उठा कि क्या असम की ही तरह केवल मुसलमानों को ही घुसपैठिया साबित किया जाएगा? प्रदर्शनकारियों को यही प्रश्न चिन्ता बन कचोटे जा रही है।

चिन्ता यह भी है कि घुसपैठिए तो कागजात मजबूत करके बैठे होंगे, किसी न किसी रैकेट के जरिए देश में घुसे होंगे, लेकिन उन लोगों का क्या होगा जो गरीब हैं, जिनके पास कागजात नहीं हैं लेकिन पीढ़ियों से देश में रह रहे हैं। वे एक बार अगर NRC से बाहर हो गये तो घुसपैठिया घोषित हो जाएंगे।

सवाल यह भी है कि यह

बड़ा सवाल

डर सिर्फ मुसलमानों पर क्यों थोपा जा रहा है?

अब इस चिंता का समाधान होने तक यह सवाल प्रदर्शनकारियों के लिए क्या बेमानी नहीं हो जाता-

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

न्यूज़ एजेंसी एएनआई को केंद्र सरकार ने फैक्ट्स शीट जारी की है। इसमें यह कहा गया है कि NRC देश में लागू करने की घोषणा अभी नहीं हुई है। मगर, ये नहीं कहा गया है कि यह घोषणा आगे नहीं होगी।

अगर सरकार यह घोषणा कर दे कि अमित शाह ने जो कहा था कि पूरे देश में NRC लागू होकर रहेगी, वह गलत थी। ऐसा नहीं होगा, तो केंद्र सरकार का यह सवाल जायज हो जाता है कि

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

वास्तव में बहुत अच्छा होता अगर न सरकार और न जनता इस चक्कर में पड़ती। दोनों मिलकर एक ही बात कहते-

क्यों पड़ें NRC के चक्कर में?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *