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क्या NRC ने बढ़ाई गृहयुद्ध की आशंका?

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नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़न जिसे एनआरसी कहा जा रहा है, अचानक देश का बड़ा मुद्दा बन गया है। ममता बनर्जी ने एनआरसी थोपे जाने पर देश में गृहयुद्ध जैसे हालात बन जाने की चेतावनी दी है तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने 40 लाख घुसपैठिए का एलान इस कदर किया है मानो आतंकवादियों को पकड़ लिया हो।

घुसपैठिया शब्द आते ही ‘भगाओ-भगाओ’ के नारे गूंज रहे हैं मानो इनकी मॉब लिंचिंग होने वाली हो। इस बीच शांति, संयम और राहत दो तरफ से मिलती दिख रही है। एक देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने संसद को जो भरोसा दिलाया है कि जिनके नाम एनआरसी में नहीं हैं उन्हें अपील करने और उनको सुनने की पूरी प्रक्रिया होगी। इसलिए बेवजह किसी को घबराने की जरूरत नहीं है। दूसरा भरोसा देश की सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिलाया है कि एनआरसी के ड्राफ्ट को रिपोर्ट ना समझें। इस आधार पर देश की किसी भी अथॉरिटी को किसी के साथ जबरदस्ती करने का अधिकार नहीं है।

सितम्बर तक सबकी आपत्तियां सुनी जाएंगी और उसके बाद ही कोई अंतिम रिपोर्ट बनेगी। सवाल ये है कि क्यों देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह और सुप्रीम कोर्ट तक की बात की अनदेखी की जा रही है? क्यों बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह कह रहे हैं कि जिनका नाम एनआरसी में नहीं है वो घुसपैठिए हैं? क्यों वे बार-बार घुसपैठियों की संख्या 40 लाख घोषित कर रहे हैं?

वजह ये है कि घुसपैठिए का सवाल सिर्फ असम का नहीं है, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा समेत देश भर में फैले हुए अनधिकृत घुसपैठ से जुड़ा है ये मामला। ये मसला सिर्फ 40 लाख लोगों का दिखता है। असल में इनके बहाने देश के सवा सौ करोड़ लोगों की भावनाओं को उभारने का प्रयास हो रहा है क्योंकि ऐसे लोगों को मिशन 2019 के लिए मानो एक रास्ता मिल गया है। ‘भगाओ-भगाओ’ के बहाने देश में कथित राष्ट्रवाद को ‘जगाओ-जगाओ’ का ये नारा है।

देश में रोज़गार नहीं है तो जिम्मेदार घुसपैठिए हैं, देश गरीब है तो वजह यही घुसपैठिए हैं, देश में अशान्ति है, लूट है, चोरी-डकैती-बलात्कार है तो जिम्मेदार यही घुसपैठिए हैं। देश की सारी समस्या मानो इन्हीं घुसपैठियों ने पैदा की है। घुसपैठिए खत्म समस्या खत्म। ख़बर एक और है। बांग्लादेश ने कहा है कि एनआरसी में नाम नहीं होने का मतलब ये नहीं कि वे सब बांग्लादेश के हैं। कोई बांग्ला बोलता है तो इसका मतलब ये नहीं है कि वे बांग्लादेशी हैं। बांग्लादेश के सूचना और प्रसारण मंत्री हसानुल हक इनू का दावा है कि भारत सरकार ने कभी भी प्रवासी बांग्लादेश का मुद्दा उनकी सरकार के साथ साझा नहीं किया है।

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