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OMG! वसुंधरा कैसे हार सकती है!

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राजस्थान की झालरापाटन सीट से वसुंधरा राजे सिंधिया चुनाव हार सकती हैं। यह बात ही सनसनीखेज़ है। ऐसा कैसे हो सकता है! क्या ऐसा भी हो सकता है! सिंधिया घराने के प्रभाव वाली झालरापाटन की सीट जहां से आज भी वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं। खुद वसुंधरा पांच बार यहां से लोकसभा का चुनाव जीत चुकी हैं। लगातार विधानसभा चुनाव जीतती आ रही हैं। 2013 के चुनाव में वसुंधरा को 64 फीसदी से ज्यादा वोट मिले थे। नहीं, नहीं, नहीं। ये आंकड़े चीख-चीख कर कहते हैं कि प्रकृति अपना स्वभाव भले बदल ले, लेकिन वसुंधरा झालरापाटन से चुनाव नहीं हार सकतीं।

मगर, राजनीति इसे ही तो कहते हैं। क्या कभी किसी ने सोचा था कि इन्दिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार जाएंगी? क्या किसी ने सोचा था कि मुख्यमंत्री रहते शीला दीक्षित दिल्ली से चुनाव हार जाएंगी? राजनीति में ऐसी घटनाओं को डिबैक्ल कहते हैं।

झालरापाटन से वसुंधरा हार सकती हैं ये ख़बर ऐसे ही नहीं है। इसके मजबूत कारण जिसने इस ख़बर में दम पैदा किया है। ऐसी ही पांच ख़बरों से हम आपको रू-ब-रू कराने जा रहे हैं-

डांगी समुदाय ने मुंह मोड़ा

ख़बर है कि डांगी समुदाय ने वसुंधरा राजे के लिए इस बार मतदान नहीं किया है। डांगी समुदाय के 35 हज़ार वोटरों का वसुंधरा से बिदकना दरअसल राजनीतिक ज़मीन खिसकने के समान है। मगर, डांगी समुदाय ने वोट किसे दिया? गोवर्धन डांगी निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में आ डटे थे जिन्हें डांगी समुदाय ने ही खड़ा किया था, ऐसा बताया जा रहा है।

राजपूत वोटों का बंटवारा

दूसरी बड़ी ख़बर ये है कि राजपूत वोटों का एक तबका इस बार वसुंधरा से छिटक गया। पहले से ही राजपूत वोटर नाराज़ थे। कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर मानवेंद्र सिंह के चुनाव मैदान में आने के बाद राजपूतों को एक नया ठौर मिला। हालांकि राजनाथ सिंह जैसे कद्दावर बीजेपी नेता को राजपूतों को मनाने के काम में लगाया गया, लेकिन वे नहीं माने। राजनाथ सिंह ने स्वयं वसुंधरा के लिए वोट मांगे। झालरापाटन में राजपूत मतदाताओं की तादाद 17 हज़ार है।

ब्राह्मण वोटर भी वसुंधरा के नाम पर बंट गए

बीजेपी में ब्राह्मण चेहरा रहे घनश्याम तिवाड़ी के पार्टी छोड़ने और भारत वाहिनी पार्टी बना लेने का खामियाज़ा सीधे वसुंधरा राजे को भुगतना पड़ा है। सबसे ज्यादा नुकसान तिवाड़ी के ख़ास रहे प्रमोद शर्मा के कांग्रेस में  जाने के कारण हुआ। ब्राह्मण वोटों में भी सेंध लग गयी। झालरापाटन में ब्राह्मण वोटों की संख्या 28 हज़ार है।

गुर्जर वोट भी वसुंधरा से बिदके

झालरापाटन में गुर्जर वोटर वसुंधरा के लिए एकतरफा मतदान करते आए थे, मगर सचिन पायलट के चुनाव मैदान में सक्रिय होने के बाद इस वोट में भी सेंध लग चुकी है। इस बार गुर्जरों वोटर बंट जाने की ख़बर ने बीजेपी को, खासकर वसुंधरा को, बेचैन कर दिया है। झालरापाटन के 22 हज़ार गुर्जर वोट अगर बंट रहे हैं तो इसका सबसे बड़ा नुकसान वसुंधरा राजे को ही होता दिख रहा है।

पाटीदार वोटर भी झालरापाटन में बंटे

पाटीदार वोटरों को कांग्रेस की तरफ मोड़ने के लिए हार्दिक पटेल का पूरा इस्तेमाल किया गया। इसका फायदा जहां कांग्रेस को हुआ है वहीं झालरापाटन में वसुंधरा को इसका सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। झालरापाटन में पाटीदारों के 30 हज़ार वोटर हैं। यही वजह है कि वसुंधरा और उनके समर्थकों की सांसें अटकी हुई हैं।

मुसलमान वोटर मानवेंद्र के साथ

मुसलमान वोटरों ने कभी भी वसुंधरा राजे के लिए वोट किया हो, इसके प्रमाण नहीं मिलते। मगर, ये वोट एकमुश्त कांग्रेस उम्मीदवार मानवेंद्र के लिए पड़े हैं ऐसा बताया जा रहा है। इलाके में 45 हज़ार मुसलमान वोटर हैं। अगर मुसलमान वोटर अधिक संख्या में बूथ तक पहुंचते हैं तो नुकसान साफ तौर पर वसुंधरा को होने वाला है।

वसुंधरा परिवार को घूम-घूमकर पहली बार मांगने पड़े वोट

वसुंधरा राजे ही नहीं पूरे परिवार को इस बार घूम-घूम कर अपने लिए वोट मांगना पड़ा है। ऐसा खिसकते जनाधार को समेटने की कोशिश के तहत हुआ। यानी वसुंधरा परिवार ने पूरा ज़ोर लगाया है। मगर, जो ऊपर कारण गिनाए गये हैं उन पर ये कोशिश भारी पड़ेगी, इसकी उम्मीद काफी कम है। ऐसे में इस बड़ी ख़बर के लिए तैयार रहिए। यह ख़बर 11 दिसम्बर की सबसे बड़ी ख़बर होगी- जी हां, मुख्यमंत्री वसुंधरा की झालरापाटन से हार- इससे बड़ी ख़बर कोई और नहीं होगी। तब सबके मुंह से यही निकलेगा OMG वसुंधरा कैसे हार सकती है!

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