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रोमांचक मोड़ पर कर्नाटक : विश्वासमत का सिक्सर

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  • कर्नाटक में कुमारस्वामी ने चली बड़ी चाल
  • विधानसभा में विश्वासमत का ‘सिक्सर’
  • कांग्रेस-JDS सरकार के बचाव का आखिरी दाव
  • अटका है 10 विधायकों के इस्तीफ़े पर फैसला
  • सुप्रीम कोर्ट ने दिया है ‘यथास्थिति’ का निर्देश
  • स्पीकर नहीं ले सकते इस्तीफ़े पर फैसला
  • 16 जुलाई को है SC में सुनवाई

सवाल ये है कि जब 16 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही होगी, तब क्या कर्नाटक का सियासी समीकरण बदल चुका होगा? अगर हां, तो उस ‘यथास्थिति’ का क्या होगा जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए हैं?

वास्तव में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद ही मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने विश्वासमत पेश करने का ब्रह्मास्त्र चला है। अब सबकी नज़र इस बात पर टिकी रहेगी कि क्या मंगलवार से पहले कुमारस्वामी विश्वासमत जीत पाएंगे? अगर ऐसा हो जाता है तो कर्नाटक का राजनीतिक संकट टल जाएगा, कुमारस्वामी की सरकार बची रह जाएगी। अगर ऐसा नहीं हो पाया यानी विश्वासमत हार गयी सरकार, तो निश्चित रूप से अगली कवायद नयी सरकार के लिए होगी जिसका नेतृत्व बीजेपी करेगी। चलिए इस सम्भावना को देखते हैं कि क्या कुमारस्वामी सरकार बच पाएगी?

कर्नाटक विधानसभा में 224 सदस्य हैं। स्पीकर को हटाकर संख्या हुई 223. बहुमत के लिए जरूर है 112 का आंकड़ा।

बच पाएगी कुमारस्वामी सरकार?

JDS-CONG                         116

CONG                                   78

JDS                                         37

BSP                                        01

जेडीएस-कांग्रेस सरकार के पास 116 विधायक फिलहाल हैं। इनमें कांग्रेस के 78, जेडीएस 37 और बीएसपी के 1 विधायक शामिल हैं।

दो निर्दलीय विधायक सरकार का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ जा चुके हैं। इस तरह बीजेपी के पास 105+2 = 107 विधायक हैं।

अब तक 16 विधायकों के इस्तीफे हुए हैं जिन्हें स्वीकार नहीं किया गया है। उनके पास यह अवसर है जब इस्तीफ़ों के स्वीकार होने से पहले वे एचडी कुमारस्वामी की सरकार का समर्थन करे। वहीं यह भी मौका है कि वह जिस मकसद से इस्तीफा दे रहे हैं उसके अनुरूप कुमारस्वामी सरकार का विरोध करें और इस सरकार को गिरा दें। कुमारस्वामी सरकार के लिए ये जरूरी है कि कम से कम 12 विधायक अपना मन बदलें। क्या ऐसा हो पाएगा?

कुमारस्वामी ने भी यह साफ कर दिया है कि असमंजस की स्थिति में वह सरकार नहीं चलाना चाहते। कांग्रेस में सिद्धारमैया के समर्थक 5 विधायक इस्तीफा वापस ले सकते हैं, इस बात के संकेत मिल रहे हैं। अगर बाकी विधायक भी ऐसा नहीं करते हैं तो सरकार गिरने के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार माना जाएगा। वैसे जेडीएस से भी 3 विधायकों ने इस्तीफा दे रखा है। कुमारस्वामी ने अपने मंत्रियों से इस्तीफा पहले ही ले रखा है ताकि नये विधायकों को मंत्री पद का लोभ देकर अपनी ओर किया जा सके।

सबकी नज़रें स्पीकर रमेश कुमार पर टिकी हैं। विधायकों का इस्तीफ़ा स्वीकार करने में देरी के लिए उन पर आरोप भी लग रहे हैं। इस बारे में उन्होंने सफाई भी दी है-

स्पीकर रमेश कुमार की सफाई

  • इस्तीफे के दिन विधायकों ने उनसे समय नहीं लिया था
  • राजभवन से पता चला कि कुछ विधायक आने वाले हैं
  • बीते शुक्रवार को MLA दोपहर 2 बजे पहुंचे
  • स्पीकर 1.30 बजे ही दफ्तर से निकल गये
  • सोमवार को छुट्टी पर रहे                      
  • मंगलवार को इस्तीफों की जांच की
  • 12 में से 8 इस्तीफे तय फॉर्मेट में नहीं मिले
  • विधायकों को मुलाकात कर इस्तीफा देने का निर्देश
  • 10 विधायक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गये
  • SC ने गुरुवार शाम 6 बजे तक का समय दिया
  • स्पीकर को इस्तीफा सौंपने को कहा
  • इस्तीफों पर स्पीकर को तुरंत फैसला लेने का निर्देश
  • स्पीकर ने निर्देश पर अमल में असमर्थता जतायी

स्पीकर ने यह साफ कर दिया कि इस्तीफे किस परिस्थिति में दिए गये हैं, दबाव है या नहीं, इन विधायकों से जुड़े असम्बद्धता के भी मामले हैं, इन सब बातों पर विचार किए बगैर वे तुरंत इस्तीफ़ों पर फैसला नहीं ले सकते। एक तरह से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को मानने से इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट नाराज़

पूछा- स्पीकर हमारे अधिकार को चुनौती दे रहे हैं?

मामला न्यायपालिका बनाम विधायिका में बदला

16 जुलाई तक ‘यथास्थिति’ का निर्देश

शुक्रवार को जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, तो चीफ जस्टिस रंजन गोगोई नाराज़ हो गये। उन्होंने सवाल किया कि क्या स्पीकर हमारे अधिकार को चुनौती दे रहे हैं? अब मामला न्यायपालिका बनाम विधायिका हो गया। सुप्रीम कोर्ट ने नया आदेश दे दिया कि 16 जुलाई को सुनवाई से पहले ‘यथास्थिति’ बनी रहनी चाहिए।

इस्तीफों पर फैसला नहीं लेना अगर ‘यथास्थिति’ है तो वह निश्चित रूप से बनी रह सकती है। मगर, सदन के भीतर अगर किसी कारण से स्पीकर कोई फैसला लेते हैं और उससे यथास्थिति टूटती है तो सुप्रीम कोर्ट का आदेश भी भंग होगा और उसके लिए स्पीकर को दंडित भी नहीं किया जा सकता क्योंकि सदन में कोई भी फैसला लेने को स्पीकर स्वतंत्र होते हैं।

न्यायपालिका और विधायिका की इस लड़ाई में मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को ब्रह्मास्त्र चलने का मौका जरूर मिल गया है। अब अगर सरकार के पास वाकई बहुमत है, बागी विधायकों को वे मना सकते हैं तो निश्चित रूप से कुमारस्वामी के ब्रह्मास्त्र के सामने विरोधियों की चाल ध्वस्त हो जाएगी। वहीं, अगर ऐसा नहीं है तो इस सरकार का अंत हो जाएगा।

इसके साथ ही एक ऐसी सरकार का अंत हो जाएगा जो जनादेश की भावना को तोड़ने-मरोड़ने का प्रयास रही। एक ऐसी पार्टी कांग्रेस जिसे कर्नाटक की जनता ने नकार दिया था और जिसके विरुद्ध जनादेश था, उसने एचडी कुमारस्वामी को सामने कर फिर से सत्ता हथिया ली। इस चालाकी का भी अंत हो जाएगा।

मगर, आगे जो कुछ होगा वह भी जनादेश के मुताबिक होगा या नहीं, यह कहना मुश्किल है। कुमारस्वामी के विश्वासमत हासिल करने के साहसिक फैसले का एक मतलब यह भी है कि अगर कांग्रेस उनकी सरकार बचाने में विफल रहती है तो आगे का रास्ता वह बीजेपी के साथ भी तय कर सकते हैं। वैसे में सवाल ये होगा कि बीजेपी के समर्थन से जेडीएस सरकार बनेगी या जेडीएस के समर्थन से बीजेपी की सरकार?- जनादेश को जिस हद तक सम्मान मिलेगा, सरकार का भविष्य उसी हिसाब से तय होगा। फिलहाल सबका ध्यान इस बात पर है कि कुमारस्वामी की सरकार बच पाती है या नहीं।

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