संशोधन से कमजोर हुई RTI
RTI यानी राइट टु इन्फॉर्मेशन एक्ट। इसे हम सूचना का अधिकार कहते हैं। 2005 के बाद से कोई भी सरकार महकमा आम नागरिक को यह कहने की स्थिति में नहीं रह गया कि यह सूचना हम आपको नहीं दे सकते। हर साल 60 लाख लोग RTI दाखिल कर रहे हैं और सूचनाएं पा रहे हैं। RTI को आज़ाद हिन्दुस्तान का सबसे सफल कानून माना जा रहा है।
आखिर आरटीआई कानून में बदला की ज़रूरत क्यों आयी? क्यों केंद्र सरकार को संशोधन लेकर आना पड़ा? इसका आधिकारिक जवाब तो यही है कि समय के साथ-साथ कानून में बदलाव की आवश्यकता होती है और इसलिए सरकार को संशोधन लाना पड़ता है।
संशोधन पेश करते हुए राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह ने जो कुछ कहा, उस पर डालते हैं नज़र
संशोधन की ज़रूरत पर बोले जितेंद्र सिंह
“शायद, तत्कालीन सरकार ने RTI अधिनियम 2005 को पारित करने की जल्दबाजी में बहुत सी चीजों को नजरअंदाज कर दिया। केंद्रीय सूचना आयुक्त को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का दर्जा दिया गया है लेकिन उनके निर्णयों को उच्च न्यायालयों में चुनौती दी जा सकती है। यह कैसे सम्भव है? इसके अलावा RTI अधिनियम ने सरकार को नियम बनाने की शक्तियां नहीं दीं। हम संशोधन के माध्यम से इन्हें ठीक रहे हैं।”
सरकार की मंशा को समझने के लिए पहले ये जानते हैं कि बदलाव क्या किए गये हैं। RTI एक्ट 2005 में दो सेक्शन में बदलाव हुए हैं। पहला है सेक्शन 13 और दूसरा है सेक्शन 16.
सेक्शन 13 में बदलाव
CIC और IC की नियुक्ति 5 साल के लिए या 65 साल की उम्र तक अब नहीं रहेगी। कार्यकाल केंद्र सरकार तय करेगी।
सेक्शन 13 में संशोधन के बाद अब CIC यानी मुख्य चुनाव आयुक्त और सूचना आयुक्त की नियुक्ति 5 साल के लिए या 65 साल की उम्र तक, जो पहले हो, के आधार पर नहीं होगी। कार्यकाल केंद्र सरकार तय करेगी।
सेक्शन 13 में बदलाव
दूसरा बदलाव ये है कि मुख्य चुनाव आयुक्त की तनख्वाह के बराबर मुख्य सूचना आयुक्त की सैलरी अब नहीं होगी। चुनाव आयुक्त के बराबर सूचना आयुक्त की सैलरी भी नहीं रहेगी। इसे भी अब केंद्र सरकार ही तय करेगी।
सेक्शन 16 में राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के लिए भी समान तरीके से बदलाव किए गये हैं।
विपक्ष का साफ कहना है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की सैलरी और कार्यकाल तय करने का अधिकार लेकर केंद्र सरकार ने RTI कानून का मकसद ही खत्म कर दिया है। केंद्र सरकार के मातहत होकर अब सूचना आयोग को काम करना होगा। कांग्रेस नेता शशि थरूर ने खुले तौर पर सवाल दागा,
शशि थरूर का पीएम मोदी पर हमला
क्या आप यह संशोधन इसलिए ला रहे हैं क्योंकि एक सूचना आयुक्त ने पीएमओ से प्रधानमंत्री की शैक्षणिक जानकारी मांग ली थी?
यह बड़ा सवाल है। यह बड़ा आरोप है। RTI एक्ट में संशोधन पर नज़र डालें तो इससे आम जनता को इस कानून के तहत जानकारी लेने के अधिकार की स्थिति में कोई फर्क नहीं आता दिख रहा है और न ही अधिकारी किसी सूचना को सार्वजनिक करने से रोक सकते हैं। मगर, व्यवहार में देखा गया है कि राजनीतिक रूप से संवेदनशील सूचनाएं जारी करने में टाल मटोल का रवैया रहा है। संशोधन के बाद इस रवैये में बढ़ोतरी होगी क्योंकि अधिकारियों के आका वही होंगे जो सैलरी देगा मतलब कि केन्द्र सरकार।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह जरूर पुराने कानून में बदलाव को रूटीन बताते हैं लेकिन जिस Office Secretary Act 1926 के स्थान पर RTI कानून 2005 लाया गया था, वह अब भी बरकरार है। ताज्जुब है कि अदालत के यह कह देने के बावजूद कि RTI के अस्तित्व में आने पर Office Secretary Act का प्रभाव यूं ही खत्म हो जाता है, पुराना कानून हटाया नहीं जा रहा है।
आश्चर्य तो इस बात पर भी होता है कि RTI कानून में संशोधन हो गया, करोड़ों लोगों के अधिकार से जुड़े इस कानून का बड़ा असर आने वाले दिनों में दिखेगा, लेकिन इस बारे में पब्लिक डोमेन में पर्याप्त चर्चा नहीं हुई। विरोधी राजनीतिक दल भी इसे मुद्दा बनाने में नाकाम रहे। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी तो इस महत्वपूर्ण मौके पर देश में मौजूद ही नहीं रहे।