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SP-BSP की काट नहीं ढूंढ़ी, तो ख़तरे में है BJP का Mission 2019

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उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अगर कोई एक बात साफ है तो वो है बुआ-बबुआ का मिलकर चुनाव लड़ना। बुआ यानी बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती और बबुआ यानी समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव।

अगर दोनों साथ लड़ते हैं तो क्या चुनाव नतीजे होंगे, इसे लेकर पूरे देश में कौतूहल है। इसकी वजह यही है कि उत्तर प्रदेश देश में सबसे अधिक सीटों वाला प्रदेश है।

UP ने बीजेपी को सत्ता में पहुंचाया

यहां 80 में 71 सीटें बीजेपी ने जीती थी और उसे अपने दम पर बहुमत दिलाने में इसी प्रदेश की सबसे बड़ी भूमिका रही थी। अगर बुआ-बबुआ गठबंधन ने अपना असर दिखाया, तो बीजेपी का रुतबा न सिर्फ यूपी में घट जाएगा, बल्कि उसे अपने दम पर बहुमत भी नहीं मिलेगा।

क्या यूपी बीजेपी से अपने दम पर बहुमत वाला रुतबा छीनने जा रही है? एसपी-बीएसपी या बुआ-बबुआ गठबंधन का यही मकसद है। अगर 2014 के आम चुनाव की बात करें तो तब पूरे देश में मोदी लहर चली थी।

यूपी में बीजेपी को 42.63 प्रतिशत वोट मिले थे। पार्टी को 71 सीटों पर कुल 3 करोड़ 31 लाख 18 हज़ार 854 वोट मिले थे। यह वोट यूपी विधानसभा चुनाव में थोड़ा और बढ़ा।

बीजेपी को विधासभा चुनाव में 3 करोड़ 44 लाख 3 हज़ार 299 वोट मिले। पार्टी ने यूपी विधानसभा में 384 सीटों पर चुनाव लड़ा और 312 सीटों पर भारी जीत दर्ज की। वोट प्रतिशत रहा 39.67 फीसदी।

बुआ-बबुआ के वोट बीजेपी के बराबर

पिछले लोकसभा चुनाव में सभी पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ी थीं। अगर समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को उस चुनाव में मिले वोटों के प्रतिशत को जोड़ा जाए, तो एसपी के 22.35 प्रतिशत और बीएसपी के 19.77 प्रतिशत वोट मिलकर 42.12 प्रतिशत होते हैं। यानी बुआ-बबुआ मिलकर वोट प्रतिशत के मामले में बीजेपी को मिले वोट के तकरीबन बराबर हो जाते हैं।

विधानसभा चुनाव में बुआ-बबुआ को 4.38 फीसदी की बढ़त

अगर विधानसभा चुनाव की बात करें तो इस चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था। समाजवादी पार्टी ने 311 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 47 सीटें जीती थीं और कांग्रेस ने 114 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए महज 7 सीटें जीती थीं। एसपी को 21.82 फीसदी और कांग्रेस को 6.25 फीसदी वोट मिले थे। यानी एसपी-कांग्रेस गठबंधन को 28.07 फीसदी वोट मिले।

वहीं बहुजन समाज पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा था। उसने 403 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 19 सीटों पर जीत हासिल की। उसे 22.23 प्रतिशत वोट मिले। अगर एसपी और बीएसपी के वोटों को जोड़कर देखें तो यह 44.05 प्रतिशत हो जाता है।

SP-BSP को मिले 44.05 फीसदी

अगर बीजेपी को यूपी विधानसभा चुनाव में मिले वोटों पर नज़र डालें तो पार्टी ने 384 सीटों पर चुनाव लड़कर 312 सीटों पर जीत हासिल की। उसे 39.67 प्रतिशत वोट मिले। एसपी और बीएसपी को मिले 44.05 फीसदी वोटों से यह 4.38 फीसदी कम है।

4.38 फीसदी बढ़त से ही उत्साहित हैं बुआ-बबुआ

यही वो 4.38 फीसदी वोट हैं जिसे लेकर बुआ-बबुआ उत्साहित हैं। यह बढ़त छोटी नहीं है। इसके अलावा एसपी और बीएसपी कांग्रेस के साथ सीमित तालमेल की भी सम्भावनाएं देख रही हैं। इसका मतलब ये है कि अगर कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं भी होता है तब भी गैर बीजेपी गठबंधन को इसका फायदा मिलेगा।

 कांग्रेस के वोट बैंक एसपी-बीएसपी के लिए ‘जोड़न’

कांग्रेस के वोट बैंक पर नज़र डालें तो यह 6.25 फीसदी से लेकर 7.53 फीसदी तक रह गया है। कांग्रेस उम्मीद कर सकती है विगत लोकसभा चुनाव के मुकाबले उसके वोट प्रतिशत 7.53 में थोड़ी बहुत ही सही, मगर बढ़ोतरी जरूर होगी। ऐसे में बुआ-बबुआ के गठबंधन को विगत विधानसभा चुनाव में जो 4.53 फीसदी वोटों की बढ़त बीजेपी पर है, उसमें थोड़ा इजाफ़ा होने की उम्मीद की जा सकती है। मगर, ट्रेंड ये भी देखा गया है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के वोट तो बढ़ते हैं लेकिन क्षेत्रीय दलों के नहीं। ऐसे में बीजेपी बनाम बुआ-बबुआ की लड़ाई और भी रोचक होने वाली है।

उपचुनाव के नतीजों ने एसपी-बीएसपी को दिया मंत्र

एसपी-बीएसपी के लिए उम्मीद की किरण गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव नतीजों से फूटती है। यहां बीजेपी के मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री उम्मीदवारों की सीट खाली करने की वजह से उपचुनाव हुए थे और दोनों ही सीटें ऐसी थीं जहां बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट विगत लोकसभा चुनाव में मिले थे। इसके बावजूद एसपी-बीएसपी गठबंधन ने बीजेपी को आसानी से पटखनी दे दी। तब बीजेपी की ओर से कहा गया कि वे इस चौंकाने वाले गठबंधन के लिए तैयार नहीं थे। मगर, कैराना उपचुनाव में बीजेपी तैयार थी फिर भी एसपी-बीएसपी ने कांग्रेस और आरएलडी को अपने साथ जोड़कर बीजेपी को बिल्कुल निहत्था कर दिया। कैराना में भी गोरखपुर और फूलपुर की तरह ही बीजेपी की हार हुई।

राजनीति में 2+2= 4 नहीं हुआ करता

यह सच है कि राजनीति में 2+2= 4 हमेशा नहीं हुआ करता। इसका मतलब ये है कि दो पार्टियां अगर एक साथ मिल जाएं तो यह जरूरी नहीं है कि दोनों के वोट भी एकजुट हो जाएं। मगर, कम से कम ये तो निश्चित रहता है कि नतीजे इकलौते परफॉर्मेंस से बेहतर होते हैं। अगर इस हिसाब से भी देखें तो बीजेपी का प्रदर्शन 2014 की तरह 2019 में नहीं हो सकता। बीजेपी को एसपी-बीएसपी गठजोड़ की काट ढूंढ़नी होगी। इस तैयारी में बीजेपी लगी हुई है। सम्भव है कि देश में अनारक्षित वर्ग के गरीबों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का सिक्सर लगाकर बीजेपी ने अपने वोट बैंक को बढ़ाने की जिस तरीके से कोशिश की है, उस कोशिश में वह यूपी में एक और सिक्सर लगाए। यह सिक्सर आरक्षण के भीतर आरक्षण का हो सकता है।

बीजेपी एक और छक्के जड़ने की तैयारी में

ऐसा नहीं हो सकता कि कैराना की तरह बीजेपी हाथ पर हाथ रखकर बैठी रहे। बीजेपी ने पिछड़े वर्ग को सशक्त, गरीब और बहुत गरीब में बांटने की सियासत ठान ली है। ऐसा करके वे एसपी-बीएसपी खेमे और उस गठबंधन को कमजोर करने की चाल चलने वाली है। अगर बीजेपी ऐसा नहीं करती है यानी बुआ-बबुआ गठजोड़ की काट नहीं निकालती है तो यह भी निश्चित है कि बीजेपी का मिशन 2019 ही ख़तरे में पड़ जाएगा। यूपी में बुआ-बबुआ गठजोड़ की यही अहमियत है।

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