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लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण : उत्तर प्रदेश में BJP को नुकसान

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दूसरे चरण में यूपी की 8 सीटों पर होने जा रहा है महामुकाबला। कहीं आमने-सामने तो कहीं त्रिकोणात्मक संघर्ष, कहीं कांग्रेस कर रही है महागठबंधन की मदद तो कहीं कांग्रेस के हाथ है महागठबंधन का साथ। कहने की जरूरत नहीं कि ये सभी सीटें बीजेपी ने 2014 में अपने नाम कर ली थीं। इसलिए संघर्ष इन सीटों को छीनने और बचाने का है।

दूसरे चरण में यूपी की जिन सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उन पर डालते हैं एक नज़र

नगीना, फतेहपुर-सीकरी, अमरोहा, आगरा, हाथरस, अलीगढ, बुलंदशहर, मथुरा

दूसरा चरण : नगीना लोकसभा सीट 

नगीना लोकसभा की सीट बिजनौर से टूटकर बनी है। पहली बार 2009 में समाजवादी पार्टी ने और दूसरी बार 2014 में बीजेपी ने इस सीट पर जीत हासिल की थी।

नगीना लोकसभा सीट की खासियत है इसका मुस्लिम बहुल होना। दूसरी खासियत है कि इस सीट पर दलित वोटरों की संख्या 21 फीसदी है।  नगीना लोकसभा सीट के अंतर्गत 5 विधानसभा की सीटें हैं जिनमें 3 पर बीजेपी और दो पर समाजवादी पार्टी का कब्जा है।

नूरपुर विधानसभा सीट भी इसी लोकसभा सीट में है जहां 2018 में हुए उपचनाव में समाजवादी पार्टी को जीत मिली थी। समझ सकते हैं कि महागठबंधन के लिए यह सीट बहुत मुफीद है।

मगर नगीना में कांग्रेस उम्मीदवार ओमवती देवी के लिए माहौल दिख रहा है। उनका समाजवादी अतीत और कांग्रेस का टिकट दोनों बीएसपी उम्मीदवार गिरीश चंद्र पर भारी पड़ रहा है जो 2014 में तीसरे नम्बर पर रहे थे। निश्चित रूप से मुकाबला बीजेपी से है। बीजेपी ने अपने मौजूदा सांसद डॉ यशवन्त सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है।{GFX 2 OUT}

कांटे की टक्कर में बीजेपी की उम्मीद इसी बात पर टिकी है कि महागठबंधन प्रत्याशी वोट कटुआ साबित हो और उसके लिए राह आसान हो जाए। मगर, ज़मीनी हकीक़त बता रही है कि मुसलमान वोटों का एकतरफा झुकाव यहां कांग्रेस की ओर हो चुका है और एससी वोटों में भी कांग्रेस सेंधमारी करने जा रही है। लिहाजा बीजेपी के लिए यह सीट बचाना मुश्किल होगा।

दूसरा चरण : अमरोहा लोकसभा सीट

अमरोहा में बीजेपी के अरबपति सांसद कंवर सिंह तंवर मजबूत उम्मीदवार हैं। उन्हें चुनौती मिल रही है बीएसपी के दानिश अली से, जो हाल तक जनता दल सेकुलर के महामंत्री थे और दिल्ली में पार्टी प्रमुख एवं पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के दाहिने हाथ माने जाते रहे हैं।

पहले कांग्रेस ने अमरोहा से राशिद अल्वी को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन अंदरखाने के संबंध की वजह से राशिद अल्वी पीछे हट गये। कांग्रेस ने भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा रोकने के ख्याल से सचिन चौधरी को टिकट दिया है। इस सीट पर कांटे की टक्कर है। बीएसपी को मुस्लिम वोटों के अलावा दलित वोटों पर उम्मीद है। अमरोहा में दानिश अली के लिए यह बेहतरीन मौका है जब वे बीजेपी उम्मीदवार को पटखनी दे सकते हैं।

दूसरा चरण : अलीगढ़ लोकसभा सीट

अलीगढ़ लोकसभा सीट पर बीजेपी के सतीश गौतम ने 2014 में जीत दर्ज की थी। 2019 में भी वे ताल ठोंक रहे हैं। उन्हें चुनौती देने के लिए महागठबंधन की ओर से अजित बालियान हैं तो कांग्रेस की ओर से बिजेंद्र सिंह चौधरी।

अलीगढ़ में 20 फीसदी मुस्लिम हैं जिन पर महागठबंधन और कांग्रेस दोनों की नज़र है। खास बात ये है कि यह मानते हुए कि मुस्लिम वोट उन्हें मिल जाएंगे, महागठबंधन और कांग्रेस ने जाट उम्मीदवार खड़े किए हैं। इस लोकसभा सीट पर ध्रुवीकरण सबसे निर्णायक फैक्टर हो जाता है। बीजेपी की कोशिश यही रहती है। इलाके में अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी है जिसका प्रभाव भी चुनाव में नज़र आता है। त्रिकोणीय मुकाबले में अलीगढ़ की सीट पर बीजेपी की दावेदारी मजबूत नज़र आ रही है। {GFX 4 OUT}

दूसरा चरण : बुलन्दशहर लोकसभा सीट

बुलन्दशहर सुरक्षित सीट बीजेपी का मजबूत किला है। 2014 में बीजेपी प्रत्याशी भोला सिंह यहां से 4 लाख 21 हज़ार वोटों से जीते थे।  5 साल बाद दो घटनाएं हुई हैं जो बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर रही हैं। एक एसपी-बीएसपी और रालोद का मिलकर चुनाव लड़ना और दूसरा जाट जाति के लोगों का खुलकर बीजेपी से विरोध जताना। जाहिर है अगर एसपी-बीएसपी के वोट बैंक जुड़े रहते हैं और बीजेपी से जाट वोट छिटक जाते हैं, तो मुकाबला कड़ा हो जाता है।

महागठबंधन की ओर से बीएसपी ने मेरठ के हस्तिनापुर से विधायक रहे योगेश वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस उम्मीदवार बंसी पहाड़िया खुर्जा से पूर्व विधायक रहे हैं और वे भी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं।{GFX 5 OUT} बुलन्दशहर साम्प्रदायिक और जातीय तनाव के लिए भी कुख्यात रहा है। कड़े मुकाबले में बीजेपी यह सीट बचा ले जा सकती है।

दूसरा चरण : हाथरस लोकसभा सीट

हाथरस की सीट भी बुलन्दशहर की तरह जाट और मुसलमानों के प्रभाव वाली सीट है। हाथरस लोकसभा सुरक्षित सीट ऐसी है जहां बीजेपी ने 2014 में 51 फीसदी वोट हासिल किए थे। बीजेपी उम्मीदवार राजेश कुमार दिवाकर ने बीएसपी को करीब 3 लाख वोटों से हराया था। 2009 में राष्ट्रीय लोकदल ने यहां जीत दर्ज की थी, मगर तब बीजेपी ने समर्थन दिया था। {GFX 6 IN} बीजेपी ने हाथरस में उम्मीदवार बदला है। राजवीर दिलेर बीजेपी के उम्मीदवार हैं जिनके मुकाबले राष्ट्रीय लोकदल और बीएसपी इस बार समाजवादी पार्टी उम्मीदवार रामजी लाल सुमन का समर्थन कर रहे हैं। रामजी लाल सपा के वो दिग्गज नेता हैं जो 2009 में मुरली मनोहर जोशी को इलाहाबाद में हरा चुके हैं। कांग्रेस ने भी त्रिलोकी राम को अपना उम्मीदवार बनाया है लेकिन यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी और महागठबंधन के बीच है। महागठबंधन के समीकरण के सामने हाथरस की सीट बचाना बीजेपी के लिए टेढ़ी खीर जरूर है फिर भी कांटे के मुकाबले में पलड़ा बीजेपी का ही भारी नज़र आ रहा है।

दूसरा चरण : फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट

फतेहपुर सीकरी में बीजेपी और कांग्रेस में सीधा मुकाबला है। BJP के राज कुमार चाहर और कांग्रेस के राजबब्बर आमने-सामने हैं। बीएसपी के गुड्डू पंडित इस मुकाबले को त्रिकोणात्मक जरूर बना रहे हैं लेकिन इससे फायदा कांग्रेस को होता दिख रहा है।

इस सीट पर जाट और ब्राह्मण के साथ-साथ मुस्लिम मतदाताओं का खासा प्रभाव है। उम्मीदवार भी उसी हिसाब से हैं। बीजेपी ने इस सीट पर 2014 के आम चुनाव में 44 फीसदी वोट लाने वाले उम्मीदवार चौधरी बाबूलाल को भी बदल दिया। इसकी वजह है महागठबंधन में आरएलडी का शामिल होना। बीजेपी ने जाट नेता राज कुमार चाहर को उम्मीदवार बनाकर सम्भावित नुकसान को रोकने की कोशिश की है। मगर, ख़ास बात ये है कि जाट बीजेपी से नाराज़ हैं। इसका फायदा कांग्रेस को मिलता दिख रहा है। बीएसपी ने ब्राह्मण कार्ड जरूर खेला था और गुड्डू पंडित को उम्मीदवार बनाया लेकिन कांग्रेस की ओर से मजबूत उम्मीदवार होने की वजह से वह मुख्य मुकाबले में नहीं दिख रही है।

दूसरा चरण : मथुरा लोकसभा सीट

मथुरा में हेमामालिनी की जीत पहले से थोड़ी मुश्किल जरूर है लेकिन महागठबंधन के लिए उन्हें हरा पाना टेढ़ी खीर लगता है। धार्मिक नगरी मथुरा के शहरी हिस्से में बीजेपी का प्रभाव है तो ड्रीम गर्ल हेमामालिनी का जादू भी शहर और गांव की सीमाएं तोड़ देता है। फिर भी स्थानीय लोगों में हेमामालिनी के लिए गुस्सा है। सवाल ये है कि ये गुस्सा महागठबंधन भुना पाता है या नहीं।

महागठबंधन की ओर से जाट उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। जाट वोटर इस बार भी बंटे नज़र आते हैं। विगत चुनाव में जयंत चौधरी को भी मथुरा से 3 लाख से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में नरेंद्र सिंह कितना जाट वोट जुटा पाते हैं, यह देखना महत्वपूर्ण होगा। एसपी-बीएसपी के वोट बैंक भी जरूर उनके खाते में जुड़ेंगे। मथुरा में कांग्रेस उम्मीदवार महेश पाठक कोई गम्भीर चुनौती देते नहीं दिखते। यहां मुख्य मुकाबला बीजेपी की हेमामालिनी और महागठबंधन की ओर से राष्ट्रीय लोकदल के नरेंद्र सिंह के ही बीच है।

दूसरा चरण : आगरा लोकसभा सीट

आगरा में बीजेपी को 2014 में बड़ी जीत मिली थी। बीजेपी उम्मीदवार रामशंकर कठेरिया को 54.5 फीसदी वोट मिले थे। लेकिन, इस बार एंटी इनकम्बेन्सी के चलते उन्हें यहां से टिकट न देकर इटावा से दिया गया है। महागठबंधन का मुकाबला करने के लिए बीजेपी ने एसपी सिंह बघेल को उम्मीदवार बनाया है।

आगरा लोकसभा सीट पर 37 फीसदी आबादी दलितों और मुसलमानों की है। इस बार इनकी नाराज़गी का सामना बीजेपी को करना पड़ रहा है। इसी वजह से महागठबंधन उम्मीदवार मनोज कुमार सोनी गम्भीर प्रत्याशी हो गये हैं। विगत चुनावों में एसपी-बीएसकी को 39.1 फीसदी वोट हासिल हुए थे। कांग्रेस की प्रत्याशी प्रीता हरित पूर्व आईआरएस अधिकारी हैं। वे भी बीजेपी को नुकसान पहुंचा रही हैं। लिहाजा बीजेपी अपनी यह मजबूत सीट बीएसपी के हाथों खो दे सकती है।

पहले चरण में भी महागठबंधन की स्थिति मजबूत थी, दूसरे चरण में भी ऐसा ही लग रहा है। कांटे की टक्कर में बीजेपी के हाथ से उसकी सीटें निकलती दिख रही हैं। मगर, ख़ास बात ये है कि कांग्रेस की मौजूदगी ने मुकाबले को बहुत रोचक बना दिया है। कहीं खुद कांग्रेस मुकाबले में है तो कहीं बीजेपी को हराती दिख रही है।

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