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यूपी में सियासत : कौन है धोखेबाज?

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मायावती ने जब लखनऊ में देशभर के बीएसपी नेताओं के साथ बैठक की, तो अंदर की बात बाहर न चली जाए इसके लिए सबके मोबाइल तक रखवा लिए गये। घंटों चली इस बैठक में मायावती ने अपने भाई आनंद कुमार को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत किया, जबकि दो भतीजों आकाश आनंद और रामजी गौतम को राष्ट्रीय समन्वयक मनोनीत कर दिया। खुलकर परिवारवाद करने के बाद उन्होंने 2019 के आम चुनाव नतीजों की समीक्षा भी कर डाली। मायावती ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन को सोच समझकर उठाया गया कदम भी कहा और उसे बड़ी भूल भी करार दिया।
मायावती ने जो बड़ी बातें कीं, उस पर नज़र डालना ज़रूरी है

मायावती ने की हार समीक्षा

  • अखिलेश ने धोखा दिया
  • SP ने BSP उम्मीदवारों को हराया
  • मुसलमानों को टिकट के खिलाफ थे अखिलेश
  • मुलायम ने ताज कॉरिडोर में फंसाया
  • गठबंधन के लिए अपमान भूल गयी- मायावती
  • हार के बाद अखिलेश ने फोन तक नहीं किया
  • 10 सीटें बीएसपी अपने दम पर जीती
  • अखिलेश अपनी पत्नी को भी नहीं जिता सके
  • प्रमोशन में आरक्षण का अखिलेश ने विरोध किया था
  • दलितों ने इसलिए उन्हें वोट नहीं किया
  • अब अकेले उपचुनाव लड़ेगी BSP
  • जीतकर अपना दम-खम बताएगी

आश्चर्य की बात ये है कि अखिलेश यादव ने अब तक मायावती के विरोध में एक शब्द नहीं कहा है। वहीं, मायावती लगातार अखिलेश पर हमला किए चली जा रही हैं। ऐसा क्यों? राजनीतिक नज़रिए से देखें तो मायावती लोकसभा चुनाव के बाद मोदी विरोधी वोट पर कब्जे की सियासत में जुट गयी हैं। मुसलमानों का वोट इस लिहाज से महत्वपूर्ण है। मायावती चाहती हैं कि दलित और मुसलमानों को जोड़े रखकर वह मोदी विरोध की धुरी बन सकती हैं। जब लड़ाई मोदी विरोध की धुरी बनने की हो तो मायावती को अखिलेश की जरूरत क्यों हो। वैसे भी, अब प्रधानमंत्री बनने-बनाने का प्रश्न भी नहीं है।

मुसलमानों को टिकट पर रार

  • SP ने मुसलमानों को 4 टिकट दिए
  • 3 मुस्लिम उम्मीदवार जीते
  • BSP ने 6 मुसलमानों को टिकट दिए
  • 3 मुस्लिम उम्मीदवार की जीत हुई
  • गठबंधन के 10 में से 6 मुस्लिम प्रत्याशी जीते

मायावती का ये कहना कि सतीश मिश्र के जरिए अखिलेश ने उन्हें मुसलमानों को टिकट नहीं देने के ले संदेश दिया था, गले नहीं उतरता। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने खुद 4 मुसलमानों को टिकट दिए और उनमें से 3 जीते भी। बीएसपी ने भी 6 मुसलमानों को टिकट दिए और उनमें से भी 3 की जीत हुई। इस तरह गठबंधन ने कुल 10 मुसलमानों को टिकट दिए, जिनमें से 6 की जीत हुई। निश्चित रूप से एसपी-बीएसपी गठबंधन मुसलमानों की पसंद बना, मगर अलग-अलग चुनाव लड़ने पर मुसलमानों की पसंद एसपी होगी या बीएसपी, यह किसी को नहीं मालूम। मायावती इसे ही अपने पक्ष में सुनिश्चित करने में जुटी हैं।

क्या अखिलेश धोखेबाज हैं?

  • अखिलेश को धोखेबाज कहना तर्कसम्मत नहीं
  • अखिलेश ने मायावती से बराबरी का समझौता किया
  • मायावती के कहने पर कांग्रेस से दूरी रखी
  • मुलायम को मंच साझा करने के लिए राजी किया
  • 0 से BSP 10 सांसदों तक पहुंच गयी
  • SP की एक सीट भी बढ़ा नहीं सकी BSP
  • धोखा किसने किया? धोखेबाज कौन?

मायावती का अखिलेश को धोखेबाज कहना कहीं से तर्क सम्मत नहीं लगता। दो साल पहले तक अपने दम पर राज्य के मुख्यमंत्री रहे अखिलेश ने मायावती को बराबरी की सीट शेयरिंग में भी वरीयता दी। उनकी इच्छानुसार कांग्रेस से दूरी रखी। मुलायम सिंह तक को राजी किया कि वे मायावती के साथ मंच साझा करें। जिस बीएसपी के पास कोई लोकसभा सीट नहीं थी, उसे 10 सीटें दिलायीं। वहीं, जिस एसपी के पास 5 सीटें थीं, उसे बीएसपी एक भी अतिरिक्त सीट नहीं दिला सकी। धोखा किसने किया? धोखेबाज कौन है?

अखिलेश ने प्रमोशन में आरक्षण का विरोध किया था, इसलिए दलितों ने उन्हें वोट नहीं किया। इतना कह देने भर से क्या मायावती की ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है? यह सब जानते हुए भी मायावती ने अखिलेश के साथ गठबंधन किया था। इतना ही नहीं मुस्लिम वोट अगर बीएसपी को मिले, तो इसकी वजह ये थी कि उनके विरुद्ध एसपी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में नहीं थे।

वास्तव में मायावती ने बीजेपी के उस दावे को सच साबित कर दिखाया है जिसमें कहा जाता था कि चुनाव बाद एसपी-बीएसपी गठबंधन खत्म हो जाएगा। नरेंद्र मोदी का वह दावा सच साबित हुआ। फिर भी इस सवाल का जवाब शायद उपचुनावों में ही मिले कि धोखा किसने किसके साथ किया?

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