मौत के बाद भी जीत करूणानिधि की
चेन्नई हाईकोर्ट ने जैसे ही फैसला सुनाया कि करुणानिधि का अंतिम संस्कार मरीना बीच पर ही किया जाएगा, आंसुओं के बीच खुशी की लहर तमिलनाडु में महसूस की गयी। करुणानिधि की मृत्यु के बाद से समाधिस्थल को लेकर चला आ रहा असमंजस ख़त्म हो गया। तमिलनाडु सरकार को झुकना पड़ा।
विरोध की सभी याचिकाएं वापस हो गयीं। मरीना बीच पर दफनाए जाने के विरोध में तमिलनाडु सरकार का ये तर्क टिक नहीं सका कि करुणानिधि पूर्व मुख्यमंत्री थे, मुख्यमंत्री नहीं। यह तर्क भी काम नहीं आया कि जानकी रामचंद्रन और कामराज को भी मरीना बीच में दफनाने की जगह नहीं मिली थी।
कोई पद करुणानिधि की पहचान नहीं हो सकता। इससे बड़ा परिचय और क्या हो सकता है कि करुणानिधि देश में एक मात्र नेता रहे जो पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक देश के सभी 14 प्रधानमंत्रियों के साथ राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे। उनके साथ राजनीति में शिरकत की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अंतिम दर्शन के लिए करुणानिधि के निवास स्थान पहुंचे तो यह किसी पूर्व मुख्यमंत्री का नहीं, भारतीय राजनीति में उनके पूरे वजूद का सम्मान करने पहुंचे, जिसे कभी न मिटाया जा सकेगा, न भुलाया जा सकेगा।
करुणानिधि 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। 12 बार विधानसभा के लिए चुने गये। पहली बार 1969 में सीएम बने थे और आखिरी बार 2003 में। जनता की अदालत में कभी करुणानिधि हारे नहीं। हर व्यक्तिगत चुनाव उन्होंने जीता। तमिलनाडु सरकार ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर तमिल जनता का गुस्सा मोल लिया।
मौत वाले दिन ही देर रात तक डीएमके नेता चेन्नई हाईकोर्ट पहुंच गये थे। रात को ही तमिलनाडु सरकार से जवाब मांगा गया। सुबह 8 बजे तक का समय दिया गया। इस बीच मरीना बीच पर करुणानिधि को दफनाए जाने का विरोध करने वाले याचिकाकर्ताओं ने एक के बाद एक केस वापस ले लिया। उनका कहना था कि उनकी याचिका के मकसद को बदल दिया गया। इस बीच देशभर से आवाज़ उठने लगी कि करुणानिधि को मरीना बीच पर दफनाए जाने से रोका नहीं जाना चाहिए।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि जयललिताजी की तरह कलाइग्नर करुणानिधि भी तमिल लोगों की आवाज़ थे। उस आवाज़ को मरीना बीच पर जगह मिलनी चाहिए। लोकप्रिय फ़िल्म अभिनेता रजनीकांत ने भी ट्वीट कर अपनी भावना रखी कि तमिलनाडु सरकार से सम्मानित कलाकार को मरीना बीच पर दफनाए जाने का नम्रतापूर्वक अनुरोध करते हैं। यही उनका सबसे बड़ा सम्मान होगा।
तमिलनाडु सरकार के रुख को लेकर तमिलनाडु में आक्रोश भी बढ़ने लगा। जगह-जगह दिवंगत करुणानिधि के लिए आवाज़ उठने लगी। हिंसा की घटनाएं भी हुईं। चारों तरफ से दबाव के बीच तमिलनाडु सरकार आखिरकार अपना रुख बदलने को तैयार हो गयी। तमिलनाडु में द्रविड़ आंदोलन की अग्रिम पंक्ति के नेता रहे करुणानिधि राजनीतिक रूप से ब्राह्मणवाद के विरोधी रहे और इसीलिए उन्होंने अपने अंतिम संस्कार के लिए दाह संस्कार के बजाए दफनाए जाने का संस्कार चुन रखा था।
तमिलनाडु की सियासत में यह परम्परा डीएमके के संस्थापक नेता अन्ना दुरै डाल गये थे जिस पर जयललिता ने भी अमल किया था। 94 साल की उम्र में निधन के बाद भी कब्र की लड़ाई जीत गये करुणानिधि। इस लड़ाई में जीत की अहमियत इसलिए भी बड़ी है क्योंकि अब करुणानिधि की समाधि अपने राजनीतिक गुरु अन्नादुरैई के साथ होगी। कभी एमजी रामचंद्रन और करुणानिधि दोनों अन्नादुरुई के बाएं-दाएं हाथ हुआ करते थे। मृत्यु के बाद भी ये दोनों उनके बाएं-दाएं ही दफन मिलेंगे। फ़िल्म जगत के लिए भी ये समाधियां मक्का कहलाएंगी।