सोवियत संघ की तरह चीन के टुकड़े-टुकड़े?
अमेरिका और सोवियत संघ के बाद अब अमेरिका और चीन में स्पर्धा दिख रही है। वह शीत युद्ध का दौर था, यह ट्रेड वार का दौर है। दुनिया तब भी दो गुटों में बंटी थी, आज भी बंटी है। तब खेल खुल्लमखुल्ला था, आज रणनीति अलग है।
विकास के नाम पर तब भी विनाश के साजो-सामान इकट्ठे किए जा रहे थे, आज भी वही स्थिति है। बल्कि, आज अब यह गम्भीर रूप धारण करने लगा है। सवाल ये है कि इसका नतीजा क्या होने वाला है? तब परिणति सोवियत संघ के बिखर जाने के रूप में हुई थी। क्या अब चीन की बारी है?
15 गणराज्यों में बंट चुका सोवियत संघ तब दुनिया की छठी आबादी वाला देश था, मगर विघटन के वक्त उसकी जीडीपी अमेरिका की आधी भी नहीं रह गयी थी। 1991 में विघटन का शिकार हुआ सोवियत संघ अंतरिक्ष, हथियार, गोला-बारूद, सैन्य शक्ति किसी मायने में अमेरिका से कम नहीं था। मगर, यही विघटन की वजह भी बनी।
अस्त्र-शस्त्र पर बढ़ते ख़र्च ने सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था को बर्बादी की राह पर ढकेल दिया। बढ़ रहा है चीन का रक्षा बजट 2014 में अमेरिका का रक्षा बजट दुनिया के रक्षा बजट का 36 फीसदी था, तो चीन का 14 फीसदी। 2014 में अमेरिका ने रक्षा पर 578 बिलियन डॉलर खर्च किया, तो चीन ने 191 बिलियन डॉलर।
खास बात ये है कि अमेरिका का रक्षा बजट जहां लगातार कम होता गया है, वहीं चीन का बढ़ता चला जा रहा है। एक बार फिर चीन ने अपने रक्षा बजट में 10 फीसदी बढ़ोतरी की घोषणा की है। कम्युनिस्ट देशों को भी ढो रहा था सोवियत संघ सोवियत संघ दुनिया के कम्युनिस्ट राष्ट्रों की अर्थव्यवस्थाओं को भी ढो रहा था और उन नवोदित राष्ट्रों की भी इस लिए मदद कर रहा था कि कहीं वे अमेरिकी खेमे में न चल जाएं। इससे भी सोवियत संघ की हालत बिगड़ती चली गयी।
इसके अलावा अफगानिस्तान जैसे अभियानों में भी सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था चरमराती चली गयी। चीन की महत्वाकांक्षा अलग चीन भी वही कर रहा है मगर मकसद विस्तारवाद है। श्रीलंका के हम्बान्टोटा बंदरगाह को रणनीतिक नजरिए से अपने पास रखने के लिए चीन ने भारी रकम डुबो दी है। इसी तरह म्यांमार के रिफाइनरी प्रॉजेक्ट में 9.6 अरब डॉलर की पूंजी फंसी है।
मालदीव में भी चीन बड़ी रकम निवेश किया है। मगर, सबसे बड़ा निवेश जो चीन ने किया है वह है 1500 अरब डॉलर का बेल्ट एंड रोड परियोजना जिसका मकसद दक्षिण पूर्व, दक्षिण व मध्य एशिया तक व्यापार का विस्तार करना है। इस परियोजना की सफलता या असफलता चीन को बर्बाद या आबाद करने वाली है।
भ्रष्टाचार में भी सोवियत संघ की राह पर चीन भ्रष्टाचार के मामले में भी तत्कालीन सोवियत संघ से चीन लोहा ले रहा है। अगर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार में भ्रष्टाचार को नहीं रोका गया, तो अर्थव्यवस्था को गम्भीर परिणाम भुगतने होंगे। लेबर फोर्स की कमी से जूझ रहा है चीन सबसे गम्भीर बात जो देखने को मिल रही है वो ये है कि पिछले पांच दशक में पहली बार ऐसा हुआ है जब चीन को लेबर फोर्स की बढ़ोतरी के बजाए कमी का सामना करना पड़ रहा है।
यह स्थिति भी सोवियत संघ में 70 के दशक में पैदा हुई स्थिति जैसी है। तब सोवियत संघ को 1970 से 85 के बाद आर्थिक वृद्धि दर में 10 फीसदी की कमी का सामना करना पड़ा था। निर्यात घटने लगा था और कृषि व औद्योगिक उत्पादन में कमी आने लगी थी। बढ़ता रक्षा बजट, लेबर फोर्स की कमी, दुनिया में डूबने वाला निवेश ये ऐसे लक्षण हैं जो बताते हैं कि चीन भी सोवियत संघ की राह पर है।