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2019 आम चुनाव : वादा VS वादाख़िलाफ़ी

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2019 के आम चुनाव में जनता के लिए मुद्दा क्या है? यह वह सवाल है जो रोज पूछा जाता है और जवाब नहीं मिलता। जितने मुंह उतनी बातें सामने आती हैं। सत्ताधारी दल वादाखिलाफी को मुद्दा मानने को तैयार नहीं हैं तो विपक्ष इसे ही मुद्दा बताता है। वहीं वादे को मुद्दा बताते वक्त बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही होड़ करती दिखती है। ये पार्टियां कहती दिखती है सच्चा है मेरा वादा, झूठा तेरा वादा….
2014 से यह चुनाव इसी मायने में अलग है। 2014 में मुद्दे थे- कालाधन की वापसी, 2 करोड़ सालाना रोज़गार, हर अकाउन्ट में 15 लाख, GDP की दर 10% सालाना करना, भ्रष्टाचार पर अंकुश, किसानों को लागत का डेढ़ गुणा दाम दिलाना, राम मंदिर का निर्माण, धारा 370 हटाना
इन्हीं मुद्दों पर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने अभूतपूर्व बहुमत हासिल किया था, वहीं यूपीए सरकार इन मुद्दों के सामने निरुत्तर होकर धराशायी हो गयी थी। चंद और मुद्दों पर नज़र डालते हैं जहां यूपीए सरकार निरुत्तर
रही थी, बेबस रही थी भ्रष्टाचार, महंगाई,किसानों की परेशानी, बेरोज़गारी
कहने का अर्थ ये है कि 2014 में कुछ मुद्दे अच्छे दिन का वादा कर रहे थे, तो कुछ मुद्दे 10 साल के यूपीए के शासनकाल से उनकी वादाखिलाफ़ी का जवाब मांग रहे थे बताओ भ्रष्टाचार क्यों हुआ?, क्यों नहीं घटी महंगाई?, क्यों परेशान हैं किसान?, बेरोज़गार क्या करें?
2014 की ही तरह 2019 में भी मुद्दा वही है वादा और वादाखिलाफ़ी। बस खेल खिलाड़ी बदल गये हैं। वादा करने वाली पार्टी बीजेपी न होकर कांग्रेस हो गयी है और वादाखिलाफी का आरोप भी यूपीए सरकार से बदलकर एनडीए सरकार या मोदी सरकार के लिए हो गया है।
2019 में मुद्दा है वादाख़िलाफ़ी : 45 साल में ऐसी बेरोज़गारी कभी न थी, GDP 7.3 फीसदी के औसत पर, धरा रह गया 10% GDP का चुनावी वादा, विदेश से कालाधन लाने का वादा भी अधूरा, भ्रष्टाचार के मामले नहीं दिखे, जांच एजेंसियों पर ही सरकार का कब्जा दिखा, अधूरा रहा राम मंदिर निर्माण का वादा, धारा 370 पर भी सुस्त रही बीजेपी, 45 साल में ऐसी बेरोज़गारी कभी न थी, जीडीपी 5 साल में औसतन 7.3 फीसदी बनी हुई है जो यूपीए के 10 साल में भी इतनी ही थी। 10 फीसदी जीडीपी का नरेंद्र मोदी का चुनावी वादा धरा रह गया। विदेश से कालाधन वापस लाने का वादा सरकार पूरा नहीं कर सकी। भ्रष्टाचार के मामले तो सामने नहीं आए, लेकिन भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसियां ही सरकार के पॉकेट में चली गयीं जिनका इस्तेमाल विरोधियों को डराने धमकाने के लिए किया जाने लगा। राम मंदिर का वादा भी अदालत के भरोसे छोड़ दिया गया और कभी धारा 370 हटाने के लिए बीजेपी अधीर नहीं दिखी।
कांग्रेस इन्हीं मुद्दों को बीजेपी और नरेंद्र मोदी की वादाखिलाफ़ी बताते हुए चुनाव मैदान में है और वोट मांग रही है। कांग्रेस ने नारा दे रखा है हम निभाएंगे। वहीं बीजेपी अब 2019 में नयी पैकेजिंग लेकर सामने है। वह राष्ट्रीय सुरक्षा देने, आतंकवाद से मुकाबला करने, मजबूत आर्थिक विकास का आधार तय करने के साथ-साथ धारा 370 और 35 ए हटाने जैसे वादे कर रही है।
कांग्रेस ने भी ‘गरीबी पर वार, 72 हज़ार’ के रूप में गरीबों की न्यूनतम आय सुनिश्चित करने का वादा कर डाला है। इसकी बुनियाद बीजेपी की उसी कथित वादाखिलाफी में है जिसमें हर अकाउन्ट में कथित रूप से 15 लाख रुपये देने का वादा किया गया था।
क्षेत्रीय दलों ने भी अपने-अपने हिसाब से वादा कर रखा है। कोई 95 फीसदी आरक्षण देना चाहता है तो कोई आबादी के हिसाब से आरक्षण, कोई सेना में अहिर रेजीमेंट बनाने की बात करता है तो कोई कुछ और।
लड़ाई वादा और वादाखिलाफ़ी में है। मुद्दा भी यही है। जो मतदाता उम्मीद में मतदान करेंगे वे या तो दोबारा मोदी सरकार के लिए वोट करेंगे या फिर कांग्रेस के ‘गरीबी पर वार 72 हज़ार’ पर भरोसा जताएंगे। मगर, जो मतदाता वादाखिलाफ़ी पर वोट करेंगे उनमें से ज्यादातर कांग्रेस या क्षेत्रीय दलों के लिए मतदान करेंगे। तो, तैयार हो जाइए वादा और वादाख़िलाफ़ी के नतीजे जानने के लिए। बस सच हर अपडेट के साथ हमेशा हाज़िर है।

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