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यूपी में कांग्रेस : इन सीटों पर मुमकिन है जीत

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उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ वाली स्थिति है। नहीं, नहीं। कांग्रेस के लिए ‘मरो या मारो’ वाली स्थिति है। राहुल गांधी के मन में भले ही आदर हो मायावती-अखिलेश दोनों के लिए, मगर चुनाव में लड़ाई होगी तो लड़ना ही होगा। मुकाबला करना ही होगा। कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह की भाषा वही है- एसपी-बीएसपी ने वही किया जो बीजेपी चाहती थी।

क्या चाहती थी बीजेपी?- कांग्रेस कमजोर हो, अकेली हो, असहाय हो। उसे किसी का साथ न मिले। एसपी-बीएसपी गठबंधन होने से ऐसा मुमकिन हो गया। मगर, लाख टके का सवाल ये है कि कांग्रेस 2019 में यूपी के लोकसभा चुनाव में क्या रणनीति बनाए कि बीजेपी और एसपी-बीएसपी दोनों के रहते बड़ी ताकत बनकर पार्टी उभरे। कुछेक रणनीतियां ऐसी हो सकती हैं-

UP में कांग्रेस : क्या हो रणनीति

  • कम सीटों पर फोकस करे कांग्रेस
  • कुछ सीटों पर स्टार उम्मीदवार दे
  • बड़ी संख्या में दलित उम्मीदवार दे

सबसे पहले उन सीटों पर नज़र डालते हैं जहां कांग्रेस के जीतने की सम्भावना सबसे ज्यादा है।

जहां जीत सकती है कांग्रेस

सहारनपुर : सहारनपुर वह सीट है जहां कांग्रेस जीत का परचम लहरा सकती है। 2014 में कांग्रेस को यहां 34 फीसदी वोट मिले थे और पार्टी दूसरे नम्बर पर रही थी। तब इमरान मसूद उम्मीदवार थे जो अब पार्टी छोड़ चुके हैं लेकिन उनका भाई कांग्रेस का झंडाबरदार है और इलाके में प्रभावशाली भी। इतना ही नहीं, इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दो विधायक भी हैं।

बाराबंकी : पीएल पुनिया की सीट बाराबंकी भी दोबारा कांग्रेस पाने के लिए मेहनत कर सकती है जहां विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था।

कानपुर : कानपुर में श्री प्रकाश जायसवाल भी कांग्रेस के लिए जीतने वाले उम्मीदवार बन सकते हैं। इसकी वजह ये है  बीजेपी इस बार मुरली मनोहर जोशी को टिकट नहीं देने जा रही है।

कुशीनगर : कुशीनगर में आरपीएन सिंह कांग्रेस को जीत दिलाने वाले उम्मीदवार हैं। पिछला चुनाव महज 90 हजार के अंतर से हारे थे। वे दूसरे नम्बर पर रहे।

प्रतापगढ़ : प्रतापगढ़ की सीट भी कांग्रेस जीत सकती है। यह कांग्रेस का गढ़ रही है जिसे 2014 में पार्टी ने खो दिया था।

ये सीटें ऐसी हैं जहां 2014 जैसे मुश्किल समय मे भी कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था। जरूरत सिर्फ रणनीति बनाने की है। अगर रणनीति बनाकर कांग्रेस कुछेक सीटों पर फोकस करे और छोटी पार्टियों के साथ तालमेल करे, तो अपने प्रदर्शन को सुधार सकती है और आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस खुद को स्थापित कर सकती है।

80 सीटों पर चुनाव लड़े कांग्रेस या न लड़े, पर फोकस उसकी 25 सीटों से ज्यादा पर ना हो। कौन सी हो सकती है वो 25 सीटें? इसका चयन कर लिया जाए। इनमें 2009 में जीती गयी सभी 21 सीटें सबसे पहले हो।

2009 में जहां कांग्रेस की हुई थी जीत

मुरादाबाद, बरेली, खेरी, धौराहा, उन्नाव, रायबरेली, अमेठी, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फर्रुखाबाद, कानपुर, अकबरपुर, झांसी, बाराबंकी, फैजाबाद, बहराईच, श्रावस्ती, गोंडा, डुमरियागंज, महाराजगंज, कुशीनगर

इनके अलावा विगत 2014 के आम चुनाव में जहां काग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया था, उन सीटों पर जीत के लिए भी कांग्रेस कोशिश कर सकती है। इनमें गाजियाबाद, लखनऊ, सहारनपुर जैसी सीटें भी शामिल हैं।

कांग्रेस को एक बात तय करनी होगी कि उसे यूपी में अपना प्रदर्शन सुधारना है। चाहे यह बीजेपी से लड़कर हो या फिर एसपी-बीएसपी गठबंधन से। अगर एसपी-बीएसपी गठबंधन के प्रति नरमी बरतेगी कांग्रेस, तो राजनीति इतनी क्रूर होती है कि यही गठबंधन आने वाले दिनों में कांग्रेस से ही बदला लेती नज़र आएगी।

गाज़ियाबाद जैसी सीटों पर जहां राजनाथ सिंह और जनरल वीके सिंह बीजेपी की ओर से जीतते रहे हैं, वहां कांग्रेस राजबब्बर जैसा कोई और स्टार चेहरा उतार सकती है। राजबब्बर को आगरा या मुरादाबाद या रामपुर में कांग्रेस आजमा कर एक सीट अपने लिए सुरक्षित कर सकती है। अजहरूद्दीन को भी मुरादाबाद के बजाए किसी और सीट से मौका दिया जा सकता है।

कांग्रेस वैसी सीटों पर दलित और मुस्लिम चेहरा चुनाव में आजमा सकती है जहां दूसरे या तीसरे नम्बर पर पार्टी रही थी मगर ऐसे चेहरे से चुनावी परिदृश्य वह बदल सकती है। इसके लिए उसे छोटे दलों से तालमेल करने से भी परहेज नहीं करना चाहिए। कहने का अर्थ ये है कि कांग्रेस के बारे में यह सोच लेना कि उत्तर प्रदेश में यह सिर्फ दो सीटों वाली पार्टी है, सही नहीं होगा। कांग्रेस चुनौती देने की स्थिति में है।

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