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दूसरा चरण : बिहार में 5 में 4 सीटें महागठबंधन को!

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बिहार में लोकसभा चुनाव का दूसरा चरण। 5 सीटों पर महागठबंधन VS NDA. 3 सीटें जीत सकती है कांग्रेस। बांका में RJD की जीत लगभग तय। भागलपुर में कांटे का मुकाबला।

दूसरे चरण में बिहार की जिन 5 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं उन सब पर एनडीए की ओर से जेडीयू के उम्मीदवार हैं। कह सकते हैं कि दूसरे चरण में बीजेपी का एक भी उम्मीदवार बिहार में चुनाव मैदान में नहीं है। वहीं महागठबंधन की ओर से दूसरे चरण में कांग्रेस नेतृत्व करती दिख रही है जो तीन सीटों पर चुनाव लड़ रही है जबकि आरजेडी की किस्मत दो चुनावी सीटों से जुड़ी है।

सबसे पहले उन तीन सीटों की बात करते हैं जहां महागठबंधन की ओर से कांग्रेस का मुकाबला एनडीए के जेडीयू प्रत्याशी से है। ये तीन सीटें हैं- पूर्णिया, कटिहार और किशनगंज।

पूर्णिया की सीट पर जेडीयू के संतोष कुशवाहा सांसद हैं और अपनी सीट बचाने के लिए चुनाव मैदान में हैं। इस बार उनके हक में ये बात है कि बीजेपी समर्थन में खड़ी है। मगर, उनके लिए चिन्ता की बात ये है कि बीजेपी से दो बार सांसद रहे उदय सिंह उर्फ पप्पू सिंह पाला बदलकर महागठबंधन से चुनौती दे रहे हैं। वे कांग्रेस के प्रत्याशी हैं।

पूर्णिया में 60 फीसदी हिन्दू हैं तो 40 फीसदी मुसलमान। 17.5 लाख से ज्यादा मतदाताओं में SC-ST-OBC  वोटर 5 लाख हैं तो यादव वोटर 1.5 लाख, ब्राह्मण 1.25 लाख और राजपूत भी 1.25 लाख हैं।

इस चुनाव में मुसलमान वोटों की गोलबंदी स्पष्ट रूप से एनडीए के विरोध में है इसलिए जेडीयू को परम्परागत रूप से मिलते रहे एकमुश्त मुस्लिम वोट नहीं मिलने जा रहे हैं। कांग्रेस प्रत्याशी पप्पू सिंह के लिए सुनहरा मौका है। उसे आरजेडी की वजह से यादव वोट तो मिलेंगे ही, राजपूत उम्मीदवार होने का फायदा भी मिलेगा। पिछड़े व दलित वोटों मे भी बंटवारा होना तय है। इसके अलावा पप्पू सिंह के बीजेपी में लम्बे समय तक रहने का फायदा भी कांग्रेस को मिलेगा, ये तय है।

कटिहार में तारिक की लहर

कटिहार में तारिक अनवर इस बार कांग्रेस की सीट से महागठबंधन उम्मीदवार हैं। पिछले चुनाव में एनसीपी के टिकट पर उन्होंने मोदी लहर में भी 44.1 फीसदी वोट हासिल किया था। बीजेपी को 32.37 फीसदी वोट मिले थे और जेडीयू को 10.3 फीसदी वोट। बीजेपी-जेडीयू की मिलीजुली शक्ति भी तारिक अनवर से कमजोर रही है। 2019 में तारिक अनवर ने महागठबंधन को थामकर अपनी स्थिति और भी मजबूत बना ली है। बीजेपी ने तालमेल में यह सीट जेडीयू को देकर एक तरह से पहले ही हार मान ली है। एनडीए की ओर से बिहार सरकार में पूर्व मंत्री रहे दुलाल चंद्र गोस्वामी जेडीयू उम्मीदवार हैं।

कटिहार में वोटों के गणित को समझें तो यहां 40 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं तो हिन्दुओं में 11 फीसदी यादव, 35 फीसदी पिछड़ा व अति पिछड़ा, 5 फीसदी सवर्ण व 9 फीसदी अन्य जातियां हैं।

कटिहार में एमवाय का समीकरण अकेले कांग्रेस उम्मीदवार तारिक अनवर को बेहद मजबूत बना देता है। इसके अलावा तारिक अनवर की छवि उदार मुस्लिम नेता की रही है। इसलिए उन्हें हर वर्ग का वोट मिलता है।

किशनगंज है कांग्रेस का किला

किशनगंज की सीट फिलहाल कांग्रेस के पास है। कांग्रेस ने यह सीट बीजेपी और जेडीय को हराकर जीती थी। कांग्रेस को मिले वोट बीजेपी-जेडीयू को मिलाकर मिले वोटों से अधिक रहे थे। कांग्रेस की यह परम्परागत सीट रही है। कांग्रेस ने यहां दो बार जीत की हैट्रिक बनायी है।

किशनगंज में 70 फीसदी मुसलमान वोटर हैं। कांग्रेस ने डॉ मोहम्मद जावेद को उम्मीदवार बनाया है तो जेडीयू ने सैय्यद महमूद अशरफ को मौका दिया है। 14 प्रत्याशियों में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और जेडीयी यानी महागठबंधन और एनडीए के बीच ही माना जा रहा है।

ऐसा माना जा रहा है कि कांग्रेस प्रत्याशी को यह जीत एक बार फिर अपने नाम कर लेने में अधिक दिक्कत नहीं होनी चाहिए। अपने बूते इस सीट को अपने नाम करने वाली कांग्रेस के साथ इस बार महागठबंधन का साथ भी तो है।

भागलपुर में कांटे का मुकाबला

भागलपुर में न मुख्य मुकाबले में कांग्रेस है न ही बीजेपी। बीजेपी के कद्दावर नेता शाहनवाज़ हुसैन महज 10 हज़ार वोटों से विगत चुनाव में आरजेडी के बुलो मंडल से हारे थे। इस बार बुलो मंडल महागठबंधन के उम्मीदवार हैं और शाहनवाज़ हुसैन को खुद बीजेपी ने बेटिकट कर दिया है और एनडीए उम्मीदवार के तौर पर जेडीयू के अजय मंडल का समर्थन कर रही है। मुकाबला सीधा है, कड़ा है मगर जीत-हार समझना इतना मुश्किल भी नहीं।

भागलपुर में वोटों का गणित समझना अधिक जरूरी है। यहां मुसलमान वोटर 4.22 लाख हैं तो यादव वोटरों की तादाद 2.5 से 3.5 लाख है, गंगोता समाज जिनसे दोनों मंडल प्रत्याशी हैं की संख्या 1.5 से 2.5 लाख है। अगड़ी और बनिया 5.5 लाख हैं जिस पर एनडीए का दावा है, वहीं कोइरी-कुर्मी वोटर 1.5 लाख हैं तो धानुक 1.5 लाख, पासवान वोटरों की तादाद 1.25 लाख है। दलित और महादलित 2.25 लाख हैं।

एनडीए को सवर्ण, बनिया, पासवान, कोइरी-कुर्मी, गंगोता समाज के वोटरों के साथ-साथ दलित और महादलित वोटों का भरोसा है, तो महागठबंधन भी मुसलमान और यादव वोटरों के अलावा गंगोता समाज, कोइरी-कुर्मी और दलित व महादलित वोट की उम्मीद कर रहा है। वजह साफ है कि महागठबंधन के साथ जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता खड़े हैं। कुलमिलाकर मुकाबला दिलचस्प हो गया है।

बांका की सीट कद्दावर आरजेडी नेता जय प्रकाश नारायण यादव के पास है और वे एक बार फिर महागठबंधन की ओर से उम्मीदवार हैं। उनके मुकाबले जेडीयू के गिरधारी यादव खड़े हैं। बीजेपी ने अपना उम्मीदवार नहीं दिया है। बीजेपी से बगावत कर पुतुल कुमारी निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं।

विगत चुनाव में कांटे के मुकाबले में पुतुल कुमारी बतौर बीजेपी उम्मीदवार आरजेडी के जय प्रकाश नारायण यादव से 10 हज़ार से भी कम वोटों से हार गयी थीं। इस बार त्रिकोणात्मक संघर्ष देखने को मिल रहा है। मगर, इससे महागठबंधन उम्मीदवार की स्थिति बहुत मजबूत हो गयी है। माना जा रहा है कि अगर यह सीट बीजेपी लड़ती तो तगड़ी टक्कर होती। मगर, अब ये साफ लग रहा है कि बांका की सीट एकतरफा हो गयी है।

दूसरे चरण में बिहार की 5 सीटों पर महागठबंधन का पलड़ा भारी है। महागठबंधन इनमें से 4 सीटें जीतती दिख रही है जबकि 5वीं सीट पर भी कांटे का मुकाबला है और वह सीट भी जेडीयू जीत ले ऐसा दावे से नहीं कहा जा सकता। वास्तव में एनडीए के लिए जेडीयू कमजोर कड़ी बनकर उभरा है और इसकी वजह है राष्ट्रीय स्तर पर मुसलमानों का एनडीए से मोहभंग होना।

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