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LOKSABHA ELECTIONS 2019: बयानवीरों को सज़ा में भी मज़ा

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सुप्रीम कोर्ट ने डांटा। एक्शन में दिखा चुनाव आयोग। सुप्रीम कोर्ट ने सराहा। कहा-अपनी ताकत पहचान गया आयोग।  एक दिन में चार नेताओं को उनकी बदजुबानी के लिए चुनाव आयोग ने जो सज़ा दी है उसके कई पहलुओं में सुप्रीम पहलू यही है। मगर, किसी के दबाव में और अपनी इच्छा से किसी काम को करने में बड़ा फर्क होता है। यही वजह है कि चुनाव आयोग ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। इस भूल का नतीजा ये है कि जिसे चुनाव आयोग सज़ा कह रहा है उसे भुक्त भोगी मज़ा समझ कर मजे ले रहे हैं।

बजरंगबली के मंदिर जा पहुंचे योगी

सज़ा शुरू होते ही योगी आदित्यनाथ जा पहुंचे बजरंगबली के मंदिर। अली और बजरंग बली वाले अपने बयान की बिना बोले याद दिलाने के लिए इससे अच्छा तरीका क्या हो सकता था! यानी तू डाल डाल, मैं पात पात। योगी आदित्यनाथ चाहे जहां जाएं, उनकी मर्जी। मगर, यह तब बेमतलब नहीं रह जाता जब आपने मीडिया को अनियंत्रित छोड़ रखा हो।

चुनाव आयोग योगी आदित्यनाथ, मायावती, आज़म ख़ां, मेनका गांधी को उन बयानों के लिए सज़ा दे रहा है जो बोलकर वे चुप हो चुके हैं। मगर, 24 घंटे के न्यूज़ चैनल लगातार वही बयान दिखला रहे हैं जिसे चुनाव आयोग ने आपत्तिजनक माना है। मुंह ही बदले हैं। योगी नहीं, मायावती नहीं, आज़म खां, मेनका भी नहीं..सबके बदले बोल रहा है मीडिया।

लाख टके का सवाल

क्या भावनाएं भड़कने के लिए यह जरूरी है कि अली-बजरंगबली योगी आदित्यनाथ ही बोलें?

क्या वोटों का ध्रुवीकरण तभी होगा जब मायावती बोलेंगी?

क्या वोटरों को धमकी तभी मानी जाएगी जब ज़ुबान मेनका की होगी?

क्या स्त्री का अपमान तभी होगा जब बयान आज़म खां के होंगे?

अपने ही बयानों को बारम्बार टीवी पर देखकर, सुनकर, उस पर आती प्रतिक्रियाओं को एन्ज्वॉय कर रहे हैं बयानवीर। इसके लिए चुनाव आयोग ने बाजाप्ता उन्हें दो से तीन दिन की छुट्टी भी दे दी है।

ऐसे में सज़ा को ये बयानवीर मज़ा के तौर पर न लें, तो क्या करें। ऐसा लग रहा है मानो 2019 की परीक्षा में ये बयानवीर अपने-अपने पेपर लिख चुके हैं। समय अभी बाकी है। लिहाजा पर्यवेक्षक को तंग करने में जुटे हैं। किसी कोने से गीत का शोर, कहीं से खांसने की आवाज़, कहीं सिर्फ मुस्कुराहट, कहीं खी-खी-खी-खी…और, पर्यवेक्षक सज़ा का डर दिखाकर भी लाचार है। सब पूछ रहे हैं परीक्षा भवन में शोर का कौन ज़िम्मेदार है!

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