नए विदेश मंत्री एस जयशंकर : मोदी का मास्टर स्ट्रोक!
पद्मश्री सुब्रहमण्यम जयशंकर…भारत के नये विदेशमंत्री। राजनीति में ऐसी एंट्री बिरले ही मिलती है। कभी मनमोहन सिंह को मिली थी जब पीवी नरसिम्हाराव ने उन्हें वित्तमंत्री बनाया था। चाहे मनमोहन हों या एस जयशंकर- दोनों में कोई भी न लोकसभा के सदस्य थे, न राज्यसभा के जब पहली बार इन्होंने मंत्री पद की शपथ ली।
देश के विदेश सचिव रहे जयशंकर
मोदी सरकार में जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहे जयशंकर की यह प्रतिभा ही है कि खुद राजनीति ने चलकर उनके घर का दरवाजा खटखटाया। चीन के साथ डोकलाम गतिरोध के वक्त एस जयशंकर के योगदान को देश याद करता है। डोकलाम गतिरोध को हल करने में उनकी बड़ी भूमिका रही थी।
नमो सरकार में जयशंकर
- 1977 में IFS में शामिल हुए जयशंकर
- अमेरिका, चीन, चेक गणराज्य में राजदूत रहे
- सिंगापुर में उच्चायुक्त के रूप में काम किया
- अमेरिका के साथ परमाणु करार में बड़ी भूमिका
- 7 भाषाओं के जानकार हैं एस जयशंकर
एस जयशंकर 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे। अमेरिका, चीन और चेक गणराज्य में वे भारत के राजदूत रहे। वहीं सिंगापुर में उच्चायुक्त के रूप में उन्होंने काम किया। 2007 में भारत और अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु करार के वक्त भी एस जयशंकर की केंद्रीय भूमिका रही थी। जयशंकर की एक बड़ी खासियत है कि वे चीनी समेत 7 भाषाओं के जानकार हैं।
दिल्ली में पले-बढ़े हैं जयशंकर
- एअरफोर्स स्कूल में पढ़ाई
- सेंट स्टीफेंस कॉलेज से स्नातक
- JNU से पॉलिटिकल साइंस में MA
- JNU से ही M.Phil. Ph.D. भी
कम लोगों को पता होगा कि एस जयशंकर का जन्म दिल्ली में हुआ। उनके पिता स्व. के सुब्रहमण्यम देश के प्रमुख रणनीति विश्लेषक थे। जयशंकर की शिक्षा एअरफोर्स स्कूल और सेंट स्टीफेंस कॉलेज और JNU में हुई। JNU से पॉलिटिकल साइंस से M.A. किया। फिर वहीं से M.Phil. और Ph.D. भी।
एस जयशंकर को 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वे विदेश मंत्री बनने से पहले तक टाटा समूह के ग्लोबल कॉरपोरेट मामलों के अध्यक्ष भी रहे।
माना जा रहा है कि अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वार को देखते हुए एस जयशंकर का अनुभव देश के काम आने वाला है। नरेंद्र मोदी ने उन्हें देश का विदेशमंत्री बनाया है तो इसमें उनकी दूरदर्शिता निहित है।