जेल में जीत
ऐतिहासिक है सुप्रीम कोर्ट का फैसला्। पत्रकार कनौजिया की तुरंत हो रिहाई। बच गया एक नागरिक का अधिकार। ज़िन्दा है अभिव्यक्ति की आज़ादी
सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया, उसके दुरुपयोग और ऐसी घटनाओं पर सरकार की प्रतिक्रिया को लेकर एक बड़ा पैमाना तय कर दिया है। एक ट्वीट गलत हो सकता है मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप किसी को जेल में डाल दें। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तमाम दलीलें दीं, मगर वे टिकी नहीं, ढेर हो गयीं-
- अदालत में नहीं चली योगी सरकार की दलीलें
- पत्रकार का ट्वीट अपमानजनक था
- मजिस्ट्रेट रिमांड दे चुके हैं
- लिहाजा बंदी प्रत्यक्षीकरण लागू नहीं होता
- मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती देना जरूरी
- चुनौती बिना कैसे हो सकती है रिहाई?
सुप्रीम कोर्ट ने उल्टा सवाल दागा कि क्या प्रशांत कनौजिया को सलाखों के पीछे रखा जाना चाहिए? सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हम कार्रवाई को न तो रद्द कर रहे हैं, ना ही स्टे कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक और अहम बात कही- हम ट्वीट को मंजूर नहीं करते, लेकिन आज़ादी के अधिकार के हनन को भी नामंजूर करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि देश का संविधान जीने का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी देता है। याचिकाकर्ता के पति को अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता। इन अधिकारों के साथ मोलभाव नहीं हो सकता।
पत्रकार कनौजिया न गुहनगार, न बेदाग
पत्रकार प्रशांत कनौजिया न गुनहगार है, न ही बेदाग। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सिर्फ और सिर्फ एक मतलब है कि एक नागरिक के अधिकार को कोई नहीं छीन सकता। इसी निष्कर्ष के साथ पत्रकार कनौजिया की रिहाई महत्वपूर्ण है।
पत्रकार कनौजिया पर FIR
पत्रकार प्रशांत कनौजिया ने एक ट्वीट किया था और कई री-ट्वीट भी, जिसे लखनऊ में मौजूद एक पुलिसकर्मी ने प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्याथ का अपमान माना और एफआईआर दर्ज करा दी। इस तरह शिकायतकर्ता भी पुलिस और हिरासत में लेकर एक पत्रकार को जेल तक पहुंचाने वाली भी पुलिस। यहां तक कोई कानूनी रूप से गलत बात नहीं थी।
पत्रकार की गिरफ्तारी को चुनौती
मगर, जिस तरीके से पत्रकार को हिरासत में लिया गया और बिना उसे कानूनी उपचार का मौका उपलब्ध कराए जेल भेजा गया, उसे पत्रकार की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दायर कर दी। यह वो याचिका है जिसमें एक नागरिक को अवैध तरीके से हिरासत में रखे जाने को चुनौती दी जाती है।
हाईकोर्ट तय करेगा पत्रकार की गलती
पत्रकार प्रशांत कनौजिया ने ट्वीट या रीट्वीट कर क्या गलती की है इसका फैसला अब हाईकोर्ट में होगा। जाहिर है सज़ा भी उसी हिसाब से तय होगी। मगर, इस अपराध के लिए बगैर बचाव का मौका दिए जेल भेज देने की जो बड़ी गलती हुई है उसे सुप्रीम कोर्ट ने गलत ठहराया है। सवाल ये है कि क्या सबक लेगी योगी आदित्यनाथ सरकार?