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कठुआ से टप्पल तक : क्या है सबक?

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कठुआ गैंगरेप व मर्डर का सच सामने आ चुका है। बच्ची 8 साल की थी। बलात्कार और हत्या के गुनहगार भी 8 ही थे। पठानकोट की विशेष अदालत ने 6 को दोषी करार दिया। एक बरी हो गया। एक पर केस तब चलेगा जब जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट यह तय कर देगी कि वह नाबालिग है या नहीं।
कठुआ गैंग रेप व मर्डर केस के गुनहगारों पर गौर कीजिए जो इस घटना की क्रूरता को बयां करती है।

  • सांझी राम उस मंदिर मुख्य पुजारी है जहां देवस्थान में बच्ची को छिपा कर, नशा देकर रखा गया और जहां सामूहिक बलात्कार की घटना को अंजाम दिया गया। सांझी राम को उम्रकैद की सज़ा दी गयी है।
  • दीपक खजूरिया और सुरेंद्र कुमार वर्मा दो स्पेशल पुलिस अफसर, जिन्हें आम तौर पर SPO कहा जाता है, दोषी पाए गये हैं। इनमें से दीपक खजूरिया को उम्रकैद की सज़ा सुनायी गयी है जबकि सुरेंद्र कुमार वर्मा को 5 साल कैद की सज़ा दी गयी है।
  • आनन्द दत्ता असिस्टेंड सब इन्स्पेक्टर और हेड कान्स्टेबल तिलक राज भी दोषी करार दिए गये हैं। इन दोनें को 5-5 साल की सज़ा सुनायी गयी है।
  • ग्राम प्रधान परवेश कुमार को भी उम्र कैद की सज़ा सुनायी गयी है।
  • ये तमाम लोग समाज के पहरेदार माने जाते हैं मगर इन्होंने ही 8 साल की बच्ची से उसका सबकुछ छीन लिया…सामूहिक बलात्कार की यातनाएं और फिर बच्ची के दुपट्टे से ही गला घोंटकर उसकी हत्या। इतना ही नहीं, सबूत मिटाने के मकसद से पत्थर से कुचलकर चेहरा विकृत कर डाला।

कठुआ गैंगरेप : क्रूरता को धर्म से जोड़ने की कोशिश
ताज्जुब की बात ये है कि इस क्रूरता को भी कुछ लोगों ने हिन्दू-मुसलमान का रंग दे दिया। कथित रूप से एक ही धर्म के लोगों को फंसाने के खिलाफ प्रदर्शन किए गये। ऐसे ही प्रदर्शन में शरीक होने पर हंगामा होने के बाद तत्कालीन PDP-BJP सरकार से दो मंत्रियों चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा को इस्तीफ़ा देना पड़ा।
कठुआ में वकील भी अलग रंग में दिखे। चार्जशीट दाखिल करने आए सीबीआई अधिकारियों का उन्होंने विरोध किया। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर निष्पक्ष सुनवाई के लिए जम्मू-कश्मीर से बाहर पठानकोट की विशेष अदालत में विशेष सुनवाई हुई। सबसे कम उम्र में सिविल जज बनकर लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराने वाले सेशन जज तेजविन्दर सिंह ने मामले की सुनवाई की। इस बीच बचाव पक्ष को अपना वकील भी बदलना पड़ा क्योंकि वह कथित तौर पर दबाव में थी।
कठुआ के घृणित, निर्मम और क्रूर मामले में फैसले के बाद पूरे देश को यह सबक मिला है कि अपराधी किसी धर्म के नहीं होते। उनकी तरफदारी नहीं की जा सकती। चाहे वह कठुआ का मामला हो या फिर अलीगढ़ के पास टप्पल का। बच्ची सिर्फ और सिर्फ पीड़ित होती है, उनकी आत्मा को सिर्फ इंसाफ ही सुकुन पहुंचा सकता है।

अलीगढ़ के टप्पल में कब मिलेगा बच्ची को इंसाफ?
अलीगढ़ के टप्पल में 3 साल की बच्ची के साथ जो दरिंदगी हुई, उसका पता 4 दिन से पुलिस नहीं लगा पा रही थी। मदद की कुत्तों ने जिन्हें हम आवारा कह देते हैं। वे बच्ची की लाश नोच रहे थे। जब दृश्य देखकर लोगों की संवेदना जागी, तो पुलिस भी पहुंची। तब पता चला यह वही बच्ची है जिसके दादा ने 40 हज़ार रुपये उधार देने का गुनाह किया था। आरोपी परिवार 10 हज़ार रुपये लौटाने में आनाकानी कर रहा था। आखिरकार बदला लेने के लिए जाहिद और असलम ने इस तरीके से बदला लिया। बच्ची का अपहरण और फिर घर लाकर उसे यातनाएं देकर मार डालना। लाश की स्थिति ऐसी कि रेप की पुष्टि होना तक मुश्किल। पुलिसिया जांच से पता लगा कि आरोपियों में एक असलम अपनी ही बेटी के साथ बलात्कार का आरोपी है। पुलिस ने अब इस मामले में चार आरोपियों को गिरफ्तार किया है। एक इंस्पेक्टर, एक सिपाही और तीन दारोगा सस्पेंड कर दिया गया है। एडीजी आनन्द कुमार के मुताबिक एसपी ग्रामीण के नेतृत्व में एसआईटी पूरे मामले की जांच कर रही है। सीओ का भी तबादला कर दिया गया है। फास्ट ट्रैक अदालत में मुकदमा चलाया जाएगा, ऐसा पुलिस महकमा कह रहा है।
चाहे कठुआ हो या अलीगढ़ यह बात महत्वपूर्ण नहीं रह जाती कि पीड़िता हिन्दू है या मुस्लिम। अलीगढ़ मामले में कुत्ते तो मरने के बाद बच्ची की लाश नोंच रहे थे, मगर इंसानियत के दुश्मन बने हैवान तो जीते-जी बच्ची की चीड़-फाड़ कर रहे थे।
कठुआ केस में त्वरित फैसले के बाद अलीगढ़ केस को भी तुरंत निपटाया जाना चाहिए ताकि अपराधियों में ख़ौफ़ पैदा हो सके कि वे जघन्य गुनाह के बाद बच नहीं सकते।
कठुआ केस में फैसले के बाद उन लोगों को भी सीख लेनी चाहिए जो यह कहकर गुनहगारों का पक्ष लेते हैं कि किसी अन्य मामले में चुप्पी क्यों थी? बच्ची से क्रूरता, निर्ममता, गैंगरेप और उसकी हत्या पर किसी भी पक्ष की चुप्पी किसी बड़े गुनाह से कम नहीं है। ऐसा कोई भी सवाल जो ऐसी किसी भी चुप्पी का साथ दे, वह भी अपने आप में बड़ा गुनाह है। क्या देश कठुआ और टप्पल जैसे मामलों से सबक लेगा? क्या ऐसे जघन्य मामलों में पूरे समाज को ही अपने बच्चों के लालन-पालन के समय सही सीख और संस्कार देने की ज़रूरत नहीं है?

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