क्या हिन्दू अल्पसंख्यक हैं?
अल्पसंख्यक किसे कहें? क्या सिख पंजाब में अल्पसंख्यक हैं? क्या मुसलमान जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक हैं? क्या ईसाई अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम जैसे राज्यों में अल्पसंख्यक हैं?
देश के उन 7 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश में हिन्दुओं को क्यों नहीं अल्पसंख्यक कहा जाए, जहां उनकी आबादी मुट्ठीभर है? ये राज्य हैं
HEADER जहां हिन्दू ‘अल्पसंख्यक’ हैं
पंजाब, जम्मू-कश्मीर, असम, मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ केंद्र शासित प्रदेश लक्ष्यद्वीप।
हिन्दुओं के संत समाज की ओर से यही मांग उठायी जा रही है। इस मांग पर गौर करने से पहले एक नज़र इन राज्यों में हिन्दुओं की हिस्सेदारी पर भी डालना जरूरी है-
7 राज्य व लक्षद्वीप में क्या है हिन्दुओं की भागीदारी?
राज्य 2011(%में) 2001(%में) अंतर (%में)
मिजोरम 2.75 3.55 -0.8
जम्मू-कश्मीर 28.44 29.63 -1.19
नगालैंड 8.75 —-
मेघालय 11.53 —–
मणिपुर 41.39 46.01 -4.62
अरुणाचल 29.04 34.60 -5.56
पंजाब 38.49 19.89 +18.6
लक्षद्वीप 2.77 3.66 -0.89
देश में अल्पसंख्यक की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। यह मान लिया गया है कि राष्ट्रीय स्तर पर धार्मिक आधार पर जिनकी तादाद कम है उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया जाए। 1993 तक देश में मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध, पारसी अल्पसंख्यक थे। 2014 में जैन को भी इस वर्ग में शामिल कर दिया गया।
अल्पसंख्यकों की भागीदारी पर नज़र डालें तो
Header देश में अल्पसंख्यकों की तादाद
अल्पसंख्यक जनसंख्या (करोड़ में)
मुसलमान 17.22
ईसाई 2.78
सिख 2.08
बौद्ध 0.84
जैन 0.45
अन्य 0.79
कोई समूह अल्पसंख्यक है या नहीं, इसका फैसला राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के हाथ में है। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2019 में आयोग को अल्पसंख्यक की परिभाषा तय करने के साथ-साथ इसका आधार बताने को कहा था।
सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर जनसंख्या के आधार पर अल्पसंख्यक तय किए जाएंगे? या कि राज्य स्तर पर यह काम किया जाएगा? ऐसा भी सम्भव है कि दोनों स्तर पर अल्पसंख्यक को अलग-अलग तय कर दिया जाए। हालांकि सम्भव तो यह भी है कि अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की सोच को ही खारिज कर दिया जाए, जैसा कि बीजेपी के एक खेमे से मांग की जा रही है।
अल्पसंख्यकों पर बात करते समय अक्सर मुसलमान सवाल उठाते हैं कि तुष्टिकरण के सिवा उन्हें मिला ही क्या? अगर मिला होता तो सच्चर समिति की रिपोर्ट के आधार पर मुसलमान दलितों से भी पिछड़े न होते। वहीं, सवाल ये भी उठता है कि अगर ऐसा है तो अल्पसंख्यक दर्जे को बनाए रखने का क्या मतलब रह जाता है। बीजेपी इस सवाल को भी उठा रही है।
दोनों सवालों को उठाने के अपने-अपने मायने मतलब हैं। मगर, सबसे अहम बात ये है कि किसी से अल्पसंख्यक का दर्जा छीनने या किसी को अल्पसंख्यक के दर्जे से उपकृत करने जैसी कोई बात नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा होता है तो आपसी भाईचारगी को चोट आएगी। समाज में मतभेद की खाई बढ़ेगी। मगर, किसी ज्वलंत सवाल से मुंह फेर देने से भी खाई कभी घटती नहीं है। लिहाजा संविधानसम्मत तरीके से इस सवाल का हल खोजा जाना चाहिए कि क्या उन राज्यों में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मिलना चाहिए जहां उनकी संख्या बहुत कम है?