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‘चमकी’ से मरते बच्चे : बेफिक्र नीतीश सरकार

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चमकी बुखार से देश बेचैन है। बिहार का मुजफ्फरपुर इस बीमारी का केन्द्र है। बिहार में अब तक इस बीमारी से डेढ़ सौ से ज्यादा बच्चे अपनी जान गंवा चुके हैं। मगर, नये मरीजों का अस्पताल आना आना कम नहीं हो रहा है। सिर्फ मुजफ्फरपुर में 470 बच्चे अब भी अस्पताल में मौत से लड़ रहे हैं।

जब चमकी बुखार का कहर शबाब पर था, तब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में डटे हुए थे। नीति आयोग की बैठक के बादद राष्ट्रपति से मुलाकात के लिए दो अतिरिक्त दिन यानी कुल चार दिन दिल्ली में बैठे रहे। प्रधान सचिव भी उनके साथ बने रहे।

केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री हर्षवर्धन को जरूरत महसूस हुई कि वे बिहार के मुजफ्फरपुर का दौरा करें, लेकिन नीतीश कुमार की प्राथमिकता में यह नहीं दिखा। खुद हर्षवर्धन कितने गम्भीर थे उसका पता इस बात से चल जाता है कि उन्होंने इस बीमारी से लड़ने के लिए एक साल के भीतर 100 बिस्तरों वाला अस्पताल बनाने की वही घोषणा दोहरा दी जो उन्होंने 2014 में की थी।

केंद्रीय स्वास्थ्यमंत्री ही क्यों, केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे भी चमकी पर चर्चा करते हुए ऊंघते नज़र आए। हालांकि बाद में उन्होंने सफाई दी कि वे चिन्तन कर रहे थे। बिहार के स्वास्थ्यमंत्री मंगल पांडे ने तो संवेदनहीनता की पराकाष्ठा ही पार कर दी। जब ‘चमकी’ का जायजा लिया जा रहा था तब उन्होंने वहां मौजूद अधिकारियों से पूछ डाला- कितने विकेट गिरे? उत्तर मिला- चार। मतलब ये कि बच्चों की बीमारी से अधिक फिक्र उन्हें भारत-पाकिस्तान मैच का अपडेट जानने की थी।

चमकी बुखार हर साल मुजफ्फरपुर में कहर बरपाता है अगर इसके आंकड़ों पर नज़र डालें तो

चमकी’ से हुई मौत : अब तक

2009         95

2010         24

2011         197

2012         275

2013         143

2014         355

2015         35

2016         04

2017         11

2018         7

2019         144 (18 जून तक)

आश्चर्य की बात ये है कि चमकी बुखार से निपटने के लिए न तो कोई दीर्घकालिक नीति सामने आ सकी और न ही आपातकालीन उपाय ही किए गये। मुजफ्फरपुर के जिन दो अस्पतालों में बच्चे हैं उनमें एक एसकेएमसीएच है और दूसरा है केजरीवाल अस्पताल। ये दोनों अस्पताल बच्चों के लिए स्पेशल नहीं हैं। सच ये है कि सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में मुजफ्फरपुर में हैं ही नहीं।

एक ही बेड पर तीन-तीन बच्चे और जमीन पर बच्चों को रखकर इलाज किया जा रहा है। ग्लूकोज जैसी चीजों की भी कमी है। अस्पताल में न AC सही है न पंखे। गंदगी भी पसरी हुई दिख जाएगी। ऐसी नारकीय हालात में बच्चों की मौत से बेखबर है नीतीश सरकार। इस स्थिति पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी केंद्र और राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की है।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ सरकार ही बेख़बर है बल्कि विपक्ष के नेता भी नज़र नहीं आ रहे हैं। तेजस्वी यादव, जीतन राम मांझी समेत तमाम नेता मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत के वक्त गायब हैं। ऐसा तब है जब मरने वाले 90 फीसदी बच्चे महादलित समुदाय से हैं। खुद महादलितों के नेता होने का दावा करने वाले केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान भी घटनास्थल पर नहीं पहुंचे हैं।

क्या होता है ‘चमकी’

‘चमकी’ लाइलाज बीमारी है। जब डॉक्टर इस बीमारी को नहीं समझ पाए। वे इसे एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिन्ड्रॉम यानी AES बता रहे हैं। इस रोग की जड़ कहां है यानी क्यों यह बीमारी हो रही है इसका पता नहीं चल पाया है। अब तक जो जानकारी डॉक्टर दे रहे हैं उसके मुताबिक

क्यों होता है ‘चमकी’

वायरस से होता है ‘चमकी’

रोग का वाहक मच्छर होता है

बच्चों में 4 से 14 दिन में लक्षण दिखते हैं

मच्छरों से बचाव और टीकाकरण इलाज है

चमकी’ के लक्षण 

चमकी बुखार के लक्षणों पर गौर करें तो मरीजों में दिमाग में बुखार, सिरदर्द, एंठन, उल्टी और बेहोशी देखी जाती है। शरीर कमजोर हो जाता है। कुछ बच्चों की गर्दन में जकड़न आ जाती है। लकवा भी मार सकता है। बच्चे को रोशनी से डर लगता है। शरीर में सुगर लेवल कम हो जाता है।

चमकी बुखार : क्या करें, क्या ना करें

लगातार बच्चे को पानी देते रहें

चीनी किसी न किसी रूप में दें

लिक्विड फूड देना सबसे बेहतर

खाली पेट, अधपका या कच्चा लीची न खिलाएं

बच्चे को गर्म कपड़े में न लपेटें

गर्दन झुकाकर न रखें

चमकी बुखार की वजह को लेकर कोई पुख्ता दावा सामने नहीं आया है। कोई इसे लीची से पैदा होने वाली बीमारी बताता है तो कई लोग इस दलील को मानने को तैयार नहीं हैं क्योंकि मरने वाले दुधमुहें भी हैं जो लीची नहीं खा सकते। भीषण गर्मी और गंदगी को भी इसकी वजह बताया जा रहा है। कुपोषण सबसे बड़ा कारण हो सकता है। ऐसे में चमकी से बचने का एकमात्र उपाय अहतियात है। गरीब अपना वातावरण कैसे बदलें, खान-पान में किस तरह बदलाव करें- यह बड़ा सवाल है क्योंकि इसके बिना वे मौत से नहीं लड़ सकते।

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