Tue. May 14th, 2024

अब JP के भरोसे BJP

Featured Video Play Icon

कार्यकाल पूरा होने तक अमित शाह बीजेपी अध्यक्ष बने रहेंगे, मगर पार्टी ने उनकी मदद के लिए एक कार्यकारी अध्यक्ष सौंप दिया है। जेपी नड्डा इस दायित्व को निभाएंगे। 6 महीने में बीजेपी अध्यक्ष पद का चुनाव होने तक यह एक प्रयोग की तरह है। जेपी नड्डा के लिए चुनौती है कि वह इस समय का उपयोग कर दिखलाएं ताकि विधिवत अध्यक्ष बनकर पदभार सम्भालने का उन्हें मौका मिले।

कार्यकारी अध्यक्ष की चुनौतियां
विधानसभा चुनाव की तैयारी
दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखण्ड में होने वाले हैं चुनाव
सफलता से स्थापित होगा नड्डा का नेतृत्व

अगर बतौर कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा की चुनौतियों की बात करें तो उनके सामने मुख्य चुनौतियां हैं दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखण्ड समेत जम्मू-कश्मीर में भी विधानसभा चुनाव की तैयारी। इन राज्यों में मिली जीत ही जेपी नड्डा के नेतृत्व को स्थापित करेगी।
दिल्ली की चुनौती

दिल्ली में जिस तरीके से लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सभी 7 लोकसभा सीटों पर सफलता मिली है और 65 विधानसभाओं में बढ़त हासिल हुई है उसे देखते हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में जेपी नड्डा से यह उम्मीद रहेगी कि वे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंके।

एंटीइनकंबेन्सी से लड़ना होगा
महाराष्ट्र, झारखण्ड और हरियाणा में बीजेपी की सरकारें हैं। लोकसभा चुनाव में इन सूबों में बीजेपी का बेड़ा पार हो गया, लेकिन विधानसभा चुनाव में राज्य सरकारों के लिए एंटी इनकम्बेन्सी को रोकना और विपरीत माहौल को अनुकूल बनाना बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा के लिए बड़ा दायित्व है। उन्हें इस आशंका को खत्म कर दिखलाना होगा कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तरह इन राज्यों से बीजेपी की सरकार जा सकती है।

जम्मू-कश्मीर भी है बड़ी चुनौती
जम्मू-कश्मीर में स्थिति को सामान्य बनाने में गृहमंत्री अमित शाह जुटे हैं। परिसीमन का चारा उन्होंने फेंका है। वहीं आतंकियों के खिलाफ दैनिक स्तर पर कार्रवाई की जा रही है, मगर जब चुनाव होंगे तो बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा के पास यह चुनौती होगी कि वह सरकार के फैसलों को वोट में बदलकर दिखलाए। बहुत मुश्किल भी नहीं है, मगर आसान भी नहीं होगी यह कोशिश।

NDA को एकजुट रखने की चुनौती
जेपी नड्डा के लिए यह सुकून की बात है कि एनडीए सरकार में बीजेपी किसी पर निर्भर नहीं है, मगर एनडीए के घटक दलों को जोड़े रखना, समय-समय पर दिखती उनकी नाराज़गी को नियंत्रित रखना कोई आसान काम नहीं है। जेडीयू इसलिए नाराज़ है कि उसे केंद्र सरकार में समानुपातिक प्रतिनिधित्व नहीं मिला। वहीं, शिवसेना भी महाराष्ट्र में बड़ा भाई बनने का ख्वाब छोड़ने को तैयार नहीं है। ऐसे में खास तौर से महाराष्ट्र चुनाव से पहले शिवसेना को मनाए रखना और एनडीए में बनाए रखना दोनों काम चुनौतीपूर्ण रहेगा।

NDA का कुनबा बढ़ा सकते हैं नड्डा
जेपी नड्डा बीजेपी के हक में एक और काम कर सकते हैं। वे चाहें तो बीजेपी के लिए एनडीए के नये साथी की तलाश कर सकते हैं। बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस जैसी पार्टियां हैं जिन्हें वह अपने साथ जोड़ सकते हैं। अगर वे ऐसा कर सके, तो यह उनकी दूरदर्शिता होगी और कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर उनकी उपलब्धि मानी जाएगी।

दक्षिण में पैर फैलाना होगा
जेपी नड्डा से उम्मीद यह की जाती है कि वे केरल, तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में बीजेपी का प्रसार करे जहां पार्टी फैल नहीं सकी है। नड्डा के सामने त्रिपुरा और बंगाल का उदाहरण है जहां बीजेपी ने कांग्रेस और वामदलों को अलग-थलग करते हुए अपना विस्तार किया है। जेपी नड्डा से ऐसी ही उम्मीद रहेगी।
जेपी नड्डा ने 2019 में यूपी का प्रभार सम्भाला और 2014 की तरह पार्टी को 2019 में भी बड़ी सफलता दिलायी। कई मायनों में जेपी नड्डा की निगरानी में बीजेपी पहले से बेहतर प्रदर्शन किया। लगभग 50 फीसदी वोट यूपी में हासिल करना बड़ी उपलब्धि रही। सीटें कम जरूर हुईं, मगर एसपी-बीएसपी गठबंधन का मुकाबला करते हुए 62 सीटें जीत लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है। शायद इसी वजह से जेपी नड्डा को बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर पुरस्कृत किया गया है। देखना ये है कि वे पार्टी की उम्मीदों को किस मुकाम तक पहुंचा पाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *