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आम लोगों के लिए होगा आम बजट?

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आम बजट सिर्फ रकम का नियोजन नहीं होता,  नीतियों का आईना होता है। आम बजट मतलब आम जनता के लिए बजट। जनता के प्रति उत्तरदायी सरकार इसे तैयार करती है। आने वाले साल के लिए यह बजट बनता है। अगर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन आम बजट 2019 पेश कर रही हैं तो इसका मतलब ये है कि यह 2018-19 के वित्तीय वर्ष का बजट है।

आम बजट का मतलब

  • कितना होगा ख़र्च
  • कैसे जुटाई जाएगी रकम
  • सबका लेखा-जोखा ही है बजट

देश के समग्र विकास के लिए रक्षा-सुरक्षा, उद्योग-कृषि, स्वास्थ्य, परिवहन व अन्यान्य मद पर कितना ख़र्च अगले वर्ष किया जाने वाला है। इसके लिए रकम कैसे जुटायी जाएगी,  इसका लेखा-जोखा ही बजट कहलाता है।  मोदी सरकार 2 में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण से आम जनता को कई उम्मीदें हैं इन उम्मीदों पर नज़र डालें तो

निर्मला बजट से है उम्मीद

  • सस्ते घर का सपना पूरा हो सकता है
  • आयकर में राहत मिल सकती है
  • खेती सस्ती होने की उम्मीद
  • बीमा कवर का दायरा बढ़ सकता है
  • आयुष्मान योजना उदार हो सकती है
  • लघु उद्योगों को राहत मिल सकती है
  • शिक्षा पर खर्च बढ़ाया जा सकता है
  • रक्षा खर्च में भी बढ़ोतरी के पूरे आसार हैं

आप भी बनाते हैं परिवार का बजट

आम बजट को आप अपने परिवार के बजट से भी जोड़ सकते हैं। जब एक वेतनभोगी कर्मचारी को सैलरी मिलती है तो वह आने वाले महीने का बजट तैयार करता है तो वह स्कूल फीस, राशन, मेडिकल, शॉपिंग, आऊटिंग, रेन्ट, फ्यूएल व अनान्य खर्चों का हिसाब लगाता है। उसके हिसाब से जीने की कोशिश करता है।

क्या होता है परिवार में घाटे का बजट

  • उधार लेने पड़े तो बजट घाटे का
  • आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैय्या
  • बचत से बनता है भविष्य
  • और पैसे कमाने की उम्मीद
  • संकट में काम आने की उम्मीद

अगर पैसे उधार लेने पड़े, तो बजट घाटे का हुआ। यानी आमदनी अठन्नी खर्चा रुपय्या जैसी स्थिति हुई। अगर बचत हुई, तो उसे अगले बजट में इस्तेमाल के लिए या फिर परिवार की पूंजी के तौर पर जमा किया जाने लगता है ताकि भविष्य में उस पैसे से और पैसे बनाए जा सकें या फिर ये किसी संकट की घड़ी में काम आए।जब देश का वित्तमंत्री देश की जनता के लिए बजट बनाता है तो उसमें एक-दो अतिरिक्त बातें भी जुड़ जाती हैं-

  • आम बजट सुनिश्चित करता है
  • देश का आर्थिक विकास हो
  • रोजगार का सृजन हो
  • आर्थिक विकास की गति रुकने न पाए
  • पूंजी निवेश आकर्षित होता रहे
  • उधार का ब्याज लौटाया जाता रहे
  • बुनियादी विकास की संरचना मजबूत हो

जैसे, देश का आर्थिक विकास हो, रोजगार का सृजन हो, आर्थिक विकास की गति रुकने न पाए और इसके लिए पूंजी निवेश आकर्षित होता रहे। इसी तरह जो उधार लिए गये हैं, उनका ब्याज लौटाया जाता रहे। बुनियादी विकास के लिए जरूरी संरचना का मजबूती से विकास हो, यह विकास की गाड़ी आगे बढ़ाने के लिए जरूरी है। तभी हम रोज़गार, कारोबार का भविष्य उज्जवल बना सकते हैं। इन सब चीजों के लिए मोटी रकम की जरूरत पड़ती है। कैसे आएगी ये रकम?

बजट के लिए रकम आने के 3 तरीके

  • आंतरिक संसाधन- टैक्स आदि बढ़ाकर
  • विनिवेश- सार्वजनिक उपक्रम की परिसंपत्तियां बेचकर
  • उधार – IMF, विश्वबैंक जैसी संस्थाओं से उधार लेकर

इसके लिए तीन तरीके हैं- एक आंतरिक संसाधनों से पैसे इकट्ठे हों यानी टैक्स आदि बढ़ाकर, दूसरा विनिवेश करके यानी जो सार्वजनिक क्षेत्र में निवेश है उसकी परिसम्पत्तियों को बेचकर और तीसरा है आईएमएफ, विश्वबैंक जैसी संस्थाओं से उधार मांग कर, जिस बारे में कोई बात निश्चित तरीके से नहीं कही जा सकती कि उधार मिल ही जाएगा।

होता है घाटे का बजट

जब आर्थिक विकास के लिए जरूरी निवेश को सुनिश्चित कर लिया जाता है और बजट तैयार किया जाता है तो मोटा निवेश बजट को नकारात्मक बना देता है। यानी आमदनी से अधिक ख़र्च दिखने लगता है। इसे घाटे का बजट कहते हैं। आम आदमी घाटे के बजट से डर जाता है लेकिन देश नहीं डरता। वह देश के विकास पर ख़र्च करने के लिए यह स्थिति पैदा करता है। एक देश ऐसी सोच से नहीं चलता कि वह आम आदमी की तरह जितना है उतने में ही गुजारा कर ले। वह बड़े बदलाव की ओर कदम बढ़ाता है। जो देश ऐसा नहीं कर पाते, वह वास्तव में गुजारा करने की स्थिति भी खो देते हैं। यानी विकास की गाड़ी भी उल्टी चलती है और बजट घाटा भी नियंत्रण में नहीं होता।

बजट पर बंटे हुए हैं अर्थशास्त्री

बजट को लेकर अर्थशास्त्री दुनिया में बंटे हुए हैं। एक खेमा है जो बजट को लोककल्याणकारी बनाए रखने पर ज़ोर देता है। दूसरा खेमा है जो बजट को बाज़ारवादी बनाए रखने की ज़रूरत बताता है। राजनीतिक दलों की सोच का आधार भी यही होता है कि वह बजट को किस नज़रिए से देखती है- उसे लोककल्याणकारी बजट चाहिए या कि बाज़ारवादी।

समझें क्या होता है लोककल्याणकारी बजट

  • कृषि के नजरिए से लोककल्याणकारी बजट
  • कृषि से सिर्फ किसान का पेट नहीं भरता
  • दुनिया का पेट भरते हैं किसान
  • खेती चौपट होने से देश रहता है भूखा
  • किसानों की खुशहाली है लोककल्याणकारी सोच

लोकल्याणकारी बजट को समझना हो, तो कृषि के प्रति सरकार के नज़रिये को समझें। कृषि उत्पादन से सिर्फ किसान का पेट नहीं भरता। किसान दुनिया का पेट भरते हैं। अगर किसी साल खेती चौपट हो जाए, तो किसान तो भूखे रहेंगे ही, देश भी भूखा रहेगा। ऐसे में किसान ज़िन्दा रहे, वह खुशहाल रहे- यह सोच लोककल्याणकारी है क्योंकि ऐसा रहना समस्त लोक के कल्याण के लिए जरूरी है।

इसके लिए चाहे हमें बजट में किसानों के ऋण को माफ करने की व्यवस्था करनी पड़े या फिर अतिरिक्त ऋण देने की ही व्यवस्था क्यों न करनी पड़े, मगर हम करेंगे। वहीं बाज़ारवादी सोच कहती है कि किसानों को उतनी ही मदद की जाए ताकि अगले साल वह दोबारा खेती करने के लायक रहे। कर्ज दो, मगर सूद भी वसूलो। कोई ऋण माफी नहीं।

डॉलर का भी होता है बजट पर असर

अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में एक अहम बात होती है विदेशी मुद्रा और खासकर डॉलर। चूकि हमें सारे कर्ज के सूद डॉलर में लौटाने होते हैं इसलिए हमारे पास डॉलर होने चाहिए। इसके अलावा पेट्रोल खरीदने के लिए भी डॉलर चाहिए। इसलिए डॉलर की कमी ना रहे, इसे ध्यान में रखकर भी बजट नीति तैयार की जाती है। इम्पोर्ट पर टैक्स लगाया जाता है ताकि डॉलर बचे। एक्सपोर्ट को बढ़ावा दिया जाता है ताकि डॉलर आए।

जब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण बजट पेश करेंगी तो अर्थव्यवस्था में तेजी आने के सारे उपाय उसमें निहित होंगे। इसी उम्मीद में देश कर रहा है मोदी सरकार 2 के आम बजट का इंतज़ार।

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