कौन हैं कर्नाटक के गुनहगार?
कर्नाटक में संकट क्यों? यही वो बुनियादी सवाल है जो बाकी सवालों का जवाब है। यहां विधायक मेढक की तरह उछलते हैं और उनकी हर उछल-कूद सत्ताधारी दल में ख़ौफ़ और विपक्ष में उम्मीद पैदा करता रहा है।
शहर से बाहर होटलों में शरण लेना, मोबाइल स्विच ऑफ रखना, फिर भी किसी गोपनीय मोबाइल से सम्पर्क बनाए रखना, एक-दूसरे की फोन टैपिंग, हॉर्स ट्रेडिंग, दौलत का खेल और भी बहुत कुछ अब रूटीन हो गयी हैं। अब तक कांग्रेस-जेडीएस सरकार चली है मगर कभी लगा नहीं कि यह चलेगी। इस बार भी स्थिति वही है।
कर्नाटक का संकट समझना हो तो विधानसभा चुनाव के नतीजे पर गौर करना होगा। जनादेश कांग्रेस के ख़िलाफ़ आया था। सत्ताधारी दल कांग्रेस और मुख्यमंत्री रहे सिद्धारमैया सत्ता से बाहर हो गए।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018
कुल सीट 225
बीजेपी 105
कांग्रेस 80
जेडीएस 37
बीएसपी 01
केपीजेपी 01
निर्दलीय 01
त्रिशंकु सदन बनी। बीजेपी 105 सीट लेकर सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, तो कांग्रेस 80 सीटें जीतने में कामयाब रहा। जेडीएस को 37 सीटें मिलीं। बीएसपी को 1, कर्नाटक प्रज्ञावंथा जनता पार्टी (KPJP) को 1 और निर्दलीय को 1 सीट मिली।
जनादेश अपने खिलाफ देखकर और बीजेपी को सत्ता के करीब देखकर कांग्रेस ने एकतरफा बिना शर्त जेडीएस सरकार को समर्थन देने की घोषणा कर दी। जेडीएस का कांग्रेस से समर्थन लेना या कांग्रेस का जेडीएस को समर्थन देना यानी दोनों दलों की मिली जुली सरकार वास्तव में जनादेश के विरुद्ध थी।
बीजेपी ने एक गलत का विरोध करने के लिए राजनीतिक रूप से बिल्कुल गलत तरीका अख्तियार किया। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के साथ स्पष्ट संख्या बल होने के बावजूद राज्यपाल वजुभाई वाला ने सबसे बड़े दल बीजेपी के नेता वी.एस येदियुरप्पा को शपथ दिला दी। सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया। फैसला तो नहीं बदला, लेकिन सदन में बहुमत साबित करने के लिए वक्त सीमित कर दिया। येदियुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाए। बीजेपी की यह बड़ी पराजय थी। इस दौरान खरीद-फरोख्त के आरोपों से भी पार्टी को दो-चार होना पड़ा।
JDS सरकार की सारथी है कांग्रेस
- कांग्रेस में धड़े ही धड़े
- सिद्धारमैया की CM कुर्सी छिनी
- जी परमेश्वर को Dy CM कुर्सी मिली
- सिद्धारमैया को समय बदलने का इंतज़ार
- जी परमेश्वर हैं सिद्धारमैया की राह में बाधा
- खुलकर खेल होना है बाकी
अब जेडीएस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार की सारथी बन बैठी कांग्रेस। मगर, कांग्रेस तो कांग्रेस है। इसमें एक धड़े नहीं होते, धड़े ही धड़े होते हैं। सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री कुर्सी छिन जाने का मलाल है तो जी परमेश्वर के लिए डिप्टी सीएम बन जाने की खुशी। सिद्धारमैया खुशफहमी पाले बैठे हैं कि एक दिन जरूर आएगा जब नेतृत्व परिवर्तन की मांग होगी और उन्हें उनकी कुर्सी दोबारा मिल जाएगी। वहीं डिप्टी सीएम जी परमेश्वर की चाहत है कि अगर वे डिप्टी सीएम नहीं रहे तो चाहे सरकार क्यों न गिर जाए, सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार नहीं बनने देंगे। हालांकि अभी यह खेल खुलकर खेला जाना बाकी है।
येदियुरप्पा बहुमत साबित नहीं कर पाने के बावजूद हार मानने को तैयार नहीं हैं। संकट की हर घड़ी को वे अपने लिए मौका बनाने की कोशिशों में जुटे रहते हैं। इस बार भी वे विक्ट्री का चिन्ह बनाकर कुमारस्वामी सरकार के गिरने का इंतज़ार कर रहे हैं और इसे गिराने की कोशिशों में भी लगे हैं।
ऐसा नहीं है कि कर्नाटक में राजनीतिक अस्थिरता का अंत नहीं हो सकता। हो सकता है लेकिन इसके लिए कम से कम दो राजनीतिक घोषणाएं करनी होगी-
कर्नाटक में स्थिर सरकार की दो शर्तें
- कांग्रेस यह स्पष्ट कर दे कि वह इस कार्यकाल में सरकार का नेतृत्व नहीं करेगी
- बीजेपी यह साफ कर दे कि उसके पास बहुमत नहीं है इसलिए वह भी सरकार नहीं बनाएगी
एक बार जब वैकल्पिक सरकार बनने की सम्भावना नहीं बचेगी, तो मेढकों को भी पता होगा कि उछलने-कूदने से उन्हें उसी डगरे में गिरना है जहां बैठे हैं। यही कर्नाटक के राजनीतिक हित में है। कर्नाटक को एक राजनीतिक स्थिरता चाहिए। चाहे काग्रेस हो या बीजेपी दोनों को यह बात सुनिश्चित करनी चाहिए। हकीकत में दोनों एक-दूसरे की ओर टोपी ट्रांसफर कर रही हैं।