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झारखण्ड : चमत्कार भरोसे राम-लखन

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झारखण्ड में दांव पर BJP की साख

झारखण्ड में बीजेपी की साख दांव पर है। सत्ता में वापसी की राह मुश्किल दिख रही है।

20 दिसम्बर को आखिरी दौर के मतदान के बाद जब 23 दिसम्बर को नतीजे आएंगे, तो देश की नज़र इसी बात पर टिकी होगी झारखण्ड में क्या होगा?

लोकसभा चुनाव के बाद हरियाणा में किसी तरह बीजेपी ने सरकार बना ली। महाराष्ट्र में एनडीए को गठबंधन मिलने के बावजूद बीजेपी सत्ता से दूर हो गयी।

झारखण्ड में सत्ता से बाहर होगी BJP?

क्या झारखण्ड में भी बीजेपी सत्ता से बाहर हो जाएगी?

झारखण्ड में बीजेपी सरकार और बीजेपी की बागडोर रघुवर दास और लक्ष्मण गिलुवा ने सम्भाल रखी है। एक मुख्यमंत्री हैं तो दूसरे बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष।

रघुवर दास यानी झारखण्ड में बीजेपी के राम…जमशेदपुर पूर्व में 25 साल से विधायक हैं तो सिंहभूम से सांसद रहे लक्ष्मण गिलुवा लोकसभा चुनाव हार जाने के बाद दूसरी बार विधायक बनने की जुगत में हैं। बीजेपी के ये दोनों कर्णधार मुश्किल में हैं।

चमत्कार भरोसे रघुवर दास

अगर रघुवर दास जीतते हैं तो यह चमत्कार ही होगा। ऐसा इसलिए कि 25 साल से विधायक रहे रघुवर के लिए लगातार परिस्थितियां विपरीत होती चली गयीं।

रघुवर को सरयू ने दी चुनौती

जमशेदपुर पूर्व में रघुवर दास को चुनौती खुद उनकी कैबिनेट के सदस्य रहे सरयू राय ने दी। 7 दिसम्बर को मतदान के दिन तक वे मंत्री भी थे और बीजेपी के सदस्य भी।

NDA के दल रघुवर के खिलाफ

एनडीए के घटक दलों ने सरयू राय को समर्थन देकर रघुवर को मुश्किल में डाल दिया, तो शशिकान्त दुबे सरीखे बीजेपी सांसद भी खुलकर सरयू राय से नजदीकी दिखाते रहे। भितरघात ने रघुवर की मुश्किलें बढ़ा दीं।

JDU, LJP, AJSU सरयू राय के साथ

सरयू राय को समर्थन देने वालों में जेडीयू, लोकजनशक्ति पार्टी और आजसू सभी रहे।

UPA के दल भी रहे सरयू के साथ

मजे की बात ये है कि यूपीए के घटक दलों ने भी कांग्रेस के गौरव वल्लभ के बजाए सरयू राय का ही समर्थन किया। इनमें जेएमएम का समर्थन उल्लेखनीय है।

CPI, CPM भी सरयू के साथ हुए

रघुवर दास को हराने का माहौल कुछ ऐसा बना कि सीपीआई और सीपीएम ने भी आरएसएस से जुड़े रहने के बावजूद सरयू राय को खुला समर्थन देने का एलान कर दिया।

सरयू ने दी कड़ी चुनौती

86 बस्तियों का मसला उठाया

पानी-बिजली भी बना मुद्दा

रघुवर से 25 साल का मांगा हिसाब

सरयू राय ने भी चुनाव मैदान में उतरते ही रघुवर दास से 86 बस्तियों को वैध करने का मसला उठा दिया जिसे हर चुनाव में रघुवर भुनाते हुए राजनीति में आगे बढ़े हैं। चुनाव प्रचार के दौरान जमशेदपुर पूर्व में मौजूद ऐसी बस्तियों में बिजली-पानी नहीं रहने का मुद्दा भी गरम हो गया। 25 साल में रघुवर ने किया क्या? यह सवाल लोगों की ज़ुबान पर आ गया।

वैसे जमशेदपुर पूर्व की सीट बीजेपी से छीनना किसी के लिए आसान काम नहीं है। यह सीट 80 के दशक से बीजेपी के पास है। पिछला आठ चुनाव बीजेपी यहां हारी नहीं है। बीजेपी को विपक्ष हराए, ऐसा सामर्थ्य दिखता नहीं। मगर, बीजेपी को बीजेपी के ही बागी ने चुनौती दी है। अगर रघुवर हारते हैं तो वे अपने साथी से चुनाव हारेंगे जिन्हें बीजेपी के भीतर उनके व्यवहार और अहंकार से खार खाए बैठे कार्यकर्ताओं और समर्थकों का समर्थन मिला है।

कांग्रेस ने गौरव वल्लभ को जरूर चुनाव मैदान में उतारा। अच्छी छवि और नया चेहरा होने के बावजूद कांग्रेस पूरे दमखम के साथ नहीं उतर सकी। इसकी वजह भी रघुवर को हर हाल में हराने की रणनीति मानी जा रही है। कांग्रेस भी सरयू राय की मजबूत स्थिति को देखते हुए दम लगाने में आक्रामक नहीं दिखी। गौरव वल्लभ ने अपना पूरा जोर जरूर लगाया, लेकिन इससे मुकाबला त्रिकोणीय हो जाए, यही उनके लिए उपलब्धि रहेगी।

चक्रधरपुर में बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा ने अपने लिए विधानसभा का टिकट तो जुगाड़ लिया, लेकिन उनके लिए जीत कोई आसान काम नहीं है। चक्रधरपुर में 47 फीसदी से ज्यादा आबादी आदिवासियों की है और लक्ष्मण गिलुवा सीएनटी एक्ट के मुद्दे पर अलोकप्रिय हो गये। यही लोकसभा में उनकी हार की वजह रही। लोकसभा चुनाव में बीजेपी की लहर के बावजूद गिलुवा अपनी सीट नहीं बचा पाए। यह नाराज़गी अभी कम नहीं हुई है। गिलुवा ने 2009 में महज 290 वोटों से चक्रधरपुर विधानसभा चुनाव जीता था। अब परिस्थिति बदल चुकी है।

लक्ष्मण गिलुवा के मुकाबले जेएमएम ने सुखराम उरांव को टिकट दिया है। उन्हें निवर्तमान विधायक शशिभूषण सामद का टिकट काटकर जेएमएम ने मौका दिया गया। सामद ने इस बार जेवीएम से ताल ठोंकी है।

रघुवर दास हों या लक्ष्मण गिलुवा- इन दोनों नेताओं के लिए मुश्किल अपने ही लोगों ने खड़ी की है। ये नेता एंटी इनकम्बेन्सी के प्रतीक बन गये हैं। यहां तक कि आरएसएस ने भी खुलकर इन दोनों नेताओं के लिए काम करने से खुद को रोक लिया। जमशेदपुर पूर्व में आरएसएस के लोग सरयू राय के लिए वोट मांगते देखे गये।

कोल्हान में हैं 14 सीटें

BJP                         5

JMM                      7

OTHER                                  2

अगर झारखण्ड में बीजेपी के ये राम-लखन हार जाते हैं तो कोल्हान की 14 सीटों पर भी इसका असर देखने को मिलेगा। अभी इनमें से 5 सीटें बीजेपी के पास हैं जबकि जेएमएम के पास 7 सीटें हैं। जुगसलाई की सीट आजसू के पास है और तो जगन्नाथपुर पर गीता कोड़ा का कब्जा रहा हैं।

कोल्हान की जो सीटें बीजेपी के पास हैं उनमें शामिल हैं जमशेदपुर पूर्व, जमशेदपुर पश्चिम, बहरागोड़ा, घाटशिला, पोटका और ईचागढ़।

कोल्हान में मतदान हो चुका है। संकेत ऐसे हैं कि बीजेपी को एक से दो सीट पर भी जीत मिलती नहीं दिख रही है। अगर सफाया हो जाए तो आश्चर्य नहीं होगा। अगर ऐसा होता है तो 81 सदस्यों वाली विधानसभा में 42 सीटें का मैजिक फिगर हासिल कर पाना असम्भव हो जाएगा।

 

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