मध्यप्रदेश : कांटे की टक्कर में कांग्रेस आगे
मध्यप्रदेश में वोटिंग का ट्रेंड समझना हो, तो अतीत में झांकना जरूरी है। ये वो प्रदेश है जहां जनता कांग्रेस को लगातार 10 साल तक सत्ता में रखती है और यही जनता बीजेपी को 15 साल तक शासन करने का मौका देती है। यानी बदलाव होता भी है। और, नहीं भी होता है। यह निर्भर करता है जनता के मूड पर। जनता अपना मूड मतदान के तेवर से बता देती है। अगर मतदान अधिक हो, तो बदलाव होता है। अगर मतदान कमोबेश वही रहे, तो इसका मतलब होता है कि जनता बदलाव के मूड में नहीं है।
4.36% वोट बढ़ने पर 1990 में उखड़ गयी थी कांग्रेस सरकार
राम मंदिर आंदोलन के समय बीजेपी 1990 में सत्ता में आयी थी। तब कांग्रेस की सरकार उखड़ गयी। अगर वोटिंग ट्रेंड में इसे समझें तो ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि विगत विधानसभा चुनाव के मुकाबले तब 4.36 फीसदी वोट बढ़ गये थे। सुंदरलाल पटवा की ताजपोशी हुई।
1993 में 6.03% अधिक वोटिंग
अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद जब चार सरकारें बर्खास्त हुई थीं तो मध्यप्रदेश उनमें से एक था। 1993 में मध्यप्रदेश के लोगों ने बम्पर मतदान किया। 6.03 प्रतिशत अधिक मतदान। मूड बदलाव का था। कांग्रेस ने वापसी की। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बने।
1998 में वोट प्रतिशत लगभग एक समान
5 साल बाद 1998 में जब चुनाव हुए तो मतदान का प्रतिशत 1993 के मुकाबले जस का तस था। 60.22 फीसदी। इसका मतलब ये निकला कि जनता को बदलाव में कोई रुचि नहीं है। दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस दोबारा सत्ता में लौटी।
वोटिंग प्रतिशत में 7.03 फीसदी का इज़ाफ़ा
2003 में वोटिंग प्रतिशत में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा देखने को मिला। 7.03 प्रतिशत वोट अधिक पड़े। नतीजा बदलाव। दिग्विजय सिंह की सरकार उखड़ गयी। उमा भारती के रूप में प्रदेश को पहली साध्वी मुख्यमंत्री मिलीं।
2% वोट बढ़ने से बेअसर रहे शिवराज
2008 में मतदान का प्रतिशत 69.28 फीसदी रहा था। करीब दो फीसदी वोट बढ़े थे। मगर, इसमें सत्ता परिवर्तन का मूड नहीं था। बीजेपी दोबारा सत्ता में आयी।
2.79 फीसदी वोट से भी नहीं बदली शिवराज की सत्ता
2013 में 2.79 फीसदी मतदान बढ़ा और कुल 72.07 फीसदी वोटरों ने वोट डाले। वोटों में यह बढ़ोतरी भी सत्ता परिवर्तन के ख्याल से मामूली रही। शिवराज सिंह सत्ता में बने रहे।
2018 में 2.78 फीसदी वोटों की बढ़ोतरी
2018 में मतदाताओं ने 74.85 फीसदी वोट डाले हैं। पिछले चुनाव के मुकाबले यह 2.78 फीसदी अधिक है। अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि इसका क्या मतलब निकाला जाए? चूकि मतदान प्रतिशत में यही इज़ाफ़ा 2013 में भी हुआ था और तब बीजेपी की ताकत बढ़ी थी। ऐसे में यह मतलब निकालना कि इस बार बीजेपी को नुकसान होगा, एकतरफा होगा।
मध्यप्रदेश में 52 ज़िले हैं। वोटिंग के रुझान को समझने के ख्याल से यहां वे 30 ज़िले महत्वपूर्ण हैं जहां 75 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ हैं। इनमें शामिल हैं
श्योपुर, शिवपुरी, गुना, शहडोल, उमरिया, डिंडोरी, मंडला, बालाघाट, सिवनी, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल, हरदा, होशंगाबाद, विदिशा, रायसेन, सीहोर, राजगढ़, आगर-मालवा, शाजापुर, देवास, खंडवा, बुरहानपुर, खरगोन, बड़वानी, झाबुआ, धार, उज्जैन, रतलाम, मंदसौर और नीमच।
इन 30 ज़िलों में भी वे 11 ज़िले अहम हैं जहां 4 फीसदी से ज्यादा मतदान का प्रतिशत बढ़ा है। ये इसलिए अहम हैं क्योंकि मध्यप्रदेश में जब कभी भी सत्ता परिवर्तन होता आया है तब वोटों का प्रतिशत 4 फीसदी से ज्यादा रहा है।
बम्पर वोटिंग वाले 11 ज़िले जहां हैं 47 सीटें
जिले सीटें 2013 2018 BJP CONG
(वोटिंग) (वोटिंग) जीत जीत
इंदौर 9 70.61% 75% 8 1
रतलाम 5 77.98% 82% 5 0
धार 7 71. 95% 75% 5 2
झाबुआ 3 69.04% 72% 2 0
अलीराजपुर 2 55.77% 63% 2 0
नीमच 3 78.04% 82% 3 0
श्योपुर 2 74.43% 78% 1 1
ग्वालियर 6 60.93% 64% 4 2
पन्ना 3 68.35% 72% 2 1
अनूपपुर 3 71.02% 74% 1 2
रायसेन 4 71.50% 75% 4 0
कुल 47 37 9
अगर इन 11 ज़िलों की 47 सीटों पर नज़र डालें, तो बीजेपी के पास 37 सीटें हैं जबकि कांग्रेस के पास 9. वोटों के प्रतिशत के आधार पर अगर यहां बदलाव को मानें, तो बीजेपी को इन 11 ज़िलों में 28 सीटों का नुकसान निर्णायक हो सकता है।
मालवा-निमाड़ तय करेगी किसका होगा मध्यप्रदेश
जिले सीटें 2013 2018 BJP CONG
(वोटिंग) (वोटिंग) जीत जीत
इंदौर 9 70.61% 75% 8 1
रतलाम 5 77.98% 82% 5 0
धार 7 71. 95% 75% 5 2
झाबुआ 3 69.04% 72% 2 0
अलीराजपुर 2 55.77% 63% 2 0
नीमच 3 78.04% 82% 3 0
अधिक वोटिंग वाले इन 11 ज़िलों में भी 6 ज़िले मालवा-निमाड़ के हैं। ये वो इलाका है जहां किसान सबसे ज्यादा शिवराज सरकार से नाराज़ रहे हैं। इनमें इंदौर, रतलाम, धार, झाबुआ, अलीराजपुर और नीमच शामिल हैं। यहां 29 विधानसभा सीटें हैं। इनमें 25 सीटें बीजेपी के पास है। कांग्रेस के पास महज 3 सीटें हैं। अगर यहां बम्पर वोटिंग का बुरा असर बीजेपी को झेलना पड़ा, तो सत्ता में वापसी की राह वाकई मुश्किल हो जाएगी। वैसे भी, इतिहास रहा है कि जो मालवा-निमाड़ में बढ़त लेता है, सत्ता उसी की होती है।
श्योपुर-ग्वालियर के संकेत समझना भी जरूरी
जिले सीटें 2013 2018 BJP CONG
(वोटिंग) (वोटिंग) जीत जीत
श्योपुर 2 74.43% 78% 1 1
ग्वालियर 6 60.93% 64% 4 2
संकेत श्योपुर और ग्वालियर से भी लेते हैं जहां ज्योतिरादित्य सिंधिया फैक्टर के साथ-साथ सपाक्स, और दलित फैक्टर भी अहम हैं। यहां की 6 सीटों में से 4 को बचा पाना बीजेपी के लिए मुश्किल दिख रहा है कि क्योंकि बम्पर वोटिंग ऐसा ही संकेत दे रही है।
जिले सीटें 2013 2018 BJP CONG
(वोटिंग) (वोटिंग) जीत जीत
पन्ना 3 68.35% 72% 2 1
अनूपपुर 3 71.02% 74% 1 2
रायसेन 4 71.50% 75% 4 0
पन्ना में 3 सीटें हैं जिनमें बीजेपी के पास 2 और कांग्रेस के पास एक सीट है। अनूपपुर में भी तीन सीटें हैं जिनमें बीजेपी के पास एक और कांग्रेस के पास 2 सीटें हैं। रायसेन में चार की सभी चार सीटें बीजेपी के पास हैं। यहां 10 में से 7 सीटों को बचाना बीजेपी के लिए जरूरी होगा, जो वोटों के ट्रेंड के हिसाब से मुश्किल दिख रहा है।
एक और फैक्टर है जिसका ज़िक्र करना ज़रूरी है। वह है महिलाओं की वोटिंग का ट्रेंड। इस बार महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले 1.98 फीसदी अधिक वोट डाले हैं। यह नया फैक्टर है। अगर मामा के रूप में मशहूर रहे शिवराज सिंह को महिलाओं ने ये वोट डाले हैं, तो निश्चित रूप से वे सुरक्षित हो जाएंगे। मगर, अभी दावे से ये कहना मुश्किल है क्योंकि मध्यप्रदेश वो प्रदेश है जहां महिलाओं के प्रति अपराध के मामले में यह दुनिया में यह कुख्यात हो चुका है।
अगर सभी फैक्टर को जोड़कर देखें तो मध्यप्रदेश में बदलाव और यथास्थिति रखने वाले वोटरों में गजब की स्पर्धा है। क्षेत्रवार समीकरण ही कांटे की टक्कर में बीजेपी और कांग्रेस में से किसी एक को लीड दिलाएगी। फिलहाल शिवराज के लिए राह थोड़ी मुश्किल और कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण दिख रही है।