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राजस्थान में ‘पप्पू मैजिक’!

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राजस्थान के चुनाव में कौन सा मैजिक काम करता दिख रहा है? क्या ये मोदी मैजिक है? मोदी लहर है? या कि एक नयी लहर, नया चमत्कार दिख रहा है और इसका नाम है ‘पप्पू मैजिक’।

कल तक जिस राहुल गांधी को उनके विरोधी पप्पू बताया करते थे, आज पप्पू बोलने पर वोटरों से माफी मांगनी पड़ रही है। हिन्दुत्व पर जिस आक्रामकता के सामने राहुल गांधी ‘पप्पू’ बने फिर रहे थे, अब गीता के ज्ञान के सहारे नरेंद्र मोदी से पूछ रहे हैं कि वे कैसे हिन्दू हैं। जो आक्रामकता कभी मोदी मैजिक का गुणतत्व हुआ करती थी वही आक्रामकता अब ‘पप्पू’कहे जाते रहे राहुल गांधी ने समेट ली है।

राजस्थान से गेमचेंजर बनकर निकले थे मोदी

मोदी पांच साल पहले राजस्थान से ही गेमचेंजर बनकर निकले थे…धुआंधार आक्रामक प्रचार की शैली थी…कांग्रेस टिक नहीं पायी…राजस्थान की 199 विधानसभा सीटों में 162 सीटें बीजेपी की झोली में आ गयी। बीजेपी के लिए रेगिस्तान की धरती से नरेंद्र मोदी ने पैदा कर दिखलायी थी ‘मोदी लहर’। देश भर में ‘मोदी मैजिक’ को लोगों ने माना। मगर, 2018 के इस चुनाव में नरेंद्र मोदी की यही पहचान, यही साख दांव पर है।

आखिर क्यों? वजह ये है कि गेमचेंजर ने 2018 में खुद को चेंज कर लिया है। ऐसा किसलिए? इसका जवाब 2019 के लिए बीजेपी की सुरक्षात्मक रणनीति है। अपने बेस्ट परफॉर्मर को बचा कर रखने की रणनीति। मगर, आक्रामक खिलाड़ी से सुरक्षात्मक खेल का नतीजा हमेशा उल्टा होता है। राजस्थान में भी यही दिख रहा है।

आक्रामकता नहीं, सुरक्षात्मक रणनीति

तब नरेंद्र मोदी 20 जनसभाएं की थीं, अब महज 10 पर आ टिके। राजस्थान में नरेंद्र मोदी के चुनाव प्रचार को दो हिस्सों में बांटकर देखें तो पहले दौर में उन्होंने 6 रैलियां कीं।

इनमें 25 नवंबर को अलवर, 27 नवंबर को भीलवाड़ा, कोटा और बनेश्वरधाम और 28 नवंबर को नागौर व भरतपुर में रैलियां कीं। यानी कुल 3 दिन का समय निकाला।

 जी-20 सम्मेलन के लिए अर्जेंटीना से लौटने के बाद नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार 3 दिसंबर को जोधपुर से शुरू हुआ। अगले दिन 4 दिसम्बर को सीकर,  हनुमानगढ़ और जयपुर में भी पीएम मोदी की तीन रैलियां रहीं। बस। दो दिन और। यानी कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी ने 5 दिन राजस्थान के लिए निकाले। और, यहीं पर नरेंद्र मोदी का चुनाव प्रचार ख़त्म।

आखिरी सांस तक नतीजों को बदलने का वो जज्बा, करिश्मा कर दिखाने की वो ललक इस बार नरेंद्र मोदी में दिखी ही नहीं। ऐसा लगा मानो राजस्थान में चुनाव नतीजे की ज़िम्मेदारी लेने से वे बचते नज़र आए।

2013 में सुरक्षात्मक थी कांग्रेस

2013 में यही भाव राहुल गांधी और सोनिया गांधी में नज़र आ रहा था। तब राहुल गांधी ने 5 और सोनिया ने 3 यानी कुल 8 सभाएं करके औपचारिकता का निर्वाह किया था। नतीजा सामने था अशोक गहलोत सरकार की करारी हार। पार्टी 199 में से महज 21 सीटें जीत सकी।

मगर, इस बार नरेंद्र मोदी के मुकाबले अकेले राहुल गांधी उनसे तिगुनी रैली और रोड शो लेकर मैदान में आ उतरे। जब तक नरेंद्र मोदी ने 6 रैलियां कीं, राहुल 10 रैलियां और 3 रोड शो कर चुके थे। राहुल गांधी ने राजस्थान की धरती से नरेंद्र मोदी को सबसे बड़ी चुनौती दे डाली- हिन्दुत्व की चुनौती। गीता के सहारे ज्ञान दे डाला। विगत चुनाव में नरेंद्र मोदी का सहारा यही आक्रामक हिन्दुत्व रहा था। भ्रष्टाचार का नारा भी राहुल ने नरेंद्र मोदी से छीन लिया। वहीं पेट्रोल-डीज़ल के दाम पर विगत चुनाव में नरेंद्र मोदी की जो आक्रामकता दिखी थी, उस पर भी राहुल ने कब्जा जमा लिया।

राहुल को ‘पप्पू’ बोलना बीजेपी सांसद को महंगा पड़ा

2013 और 2018 में राजस्थान का राजनीतिक तापमान बीजेपी और कांग्रेस के लिए या फिर कहें कि नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के लिए कितना बदल चुका है। इसका पता एक उदाहरण से चलता है। बांसवाड़ा में बीजेपी के सांसद देवजी भाई ने लोगों के बीच राहुल गांधी के लिए ‘पप्पू’ का संबोधन दिया। प्रतिक्रिया ऐसी रही जिस बारे में किसी ने कल्पना नहीं की होगी। बीजेपी के सांसद महोदय को अपने ही क्षेत्र में अपने ही मतदाताओं से माफी मांगनी पड़ी। चुनाव नतीजों से पहले ही राजस्थान ‘पप्पू’ को इतना ताकतवर बना देगा, किसी ने सोचा नहीं था।

विगत चुनाव में बीजेपी ने सर्वे करा-करा कर उम्मीदवारों को टिकट बांटे थे। इस बार ऐसा कोई होमवर्क नहीं दिखा। वही हुआ, जो वसुंधरा राजे चाह रही थीं। इसके उलट इस बार कांग्रेस बदल गयी। कांग्रेस ने उम्मीदवारों को चुनने में काफी मेहनत की। सचिन पायलट और अशोक गहलोत के साथ मशक्कत करने के बाद आलाकमान ने टिकट बांटे।

एंटी इनकम्बेन्सी से निबटने की कोई रणनीति लेकर बीजेपी सामने नहीं आयी। मोदी मैजिक काफी हद तक इस रणनीति पर ज़िन्दा रहने वाली थी। स्थानीय मुद्दों पर भी बीजेपी की ख़ामोशी चौंकानेवाली रही। केन्द्र और राज्य में बीजेपी की सरकार रहने के बावजूद नरेंद्र मोदी का कांग्रेस से हिसाब मांगना लोगों को चौंका रहा था।

राहुल की रैलियों में भीड़

रैलियों में भीड़ के हिसाब से देखें तो नरेंद्र मोदी की रैली में भीड़ कहीं कम नहीं रही, मगर राहुल गांधी की रैली में उमड़ी भीड़ के राजनीतिक मायने साफ दिख रहे थे। इस बार राहुल विरोधियों ने भी ऐसी कोई तस्वीर शेयर नहीं की जिसमें राहुल की रैली या रोड शो में उमड़ी भीड़ पर कोई सवाल हो।

एक तरह से देखें तो राजस्थान का चुनाव परिणाम स्पष्ट हो चुका है। राजस्थान में मोदी लहर या मोदी मैजिक अपना असर खो चुका दिखा। वहीं, एक नयी अवधारणा पैदा होती दिख रही है और वो पप्पू मैजिक। पप्पू मैजिक वो मैजिक है जो राहुल गांधी को पप्पू बोलने वालों को सबक सिखाती दिख रही है।

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