Triple Talaq : क्या 2019 में बनेगा क़ानून?
तीन तलाक पर 2017 में जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था तो ऐसा लगा था मानो मुस्लिम महिलाओं के दिन फिरने वाले हैं, मगर इस पर ऐसी राजनीति हुई कि यह अब तक दो बार लोकसभा से पारित हो चुका है, अध्यादेश भी बन चुका है फिर भी इसके आसार नहीं के बराबर हैं कि राज्यसभा से भी पारित होकर यह कानून की शक्ल ले सके।
विरोध को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने ताजा मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण बिल में तीन बदलाव किए थे। इससे काफी हद तक तीन तलाक के दुरुपयोग की आशंका कम हो जाती है-
तीन तलाक में तीन संशोधन
पहला संशोधन
- अब कोई भी केस दर्ज नहीं करा सकता। संज्ञान लेकर पुलिस को मामला दर्ज कराने का हक नहीं।
- केवल पीड़िता और सगे रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकते हैं।
दूसरा संशोधन
- अब बिना वारंट के गिरफ्तारी नहीं हो सकती।
- मजिस्ट्रेट को ज़मानत देने का अधिकार होगा।
तीसरा संशोधन
- अब समझौते की गुंजाइश भी बनायी गयी है।
- मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते का विकल्प खुला रहेगा।
मगर, कांग्रेस समेत विरोधी राजनीतिक दल इससे ख़ुश नहीं दिखे। इनका कहना है कि दीवानी मामले में आपराधिक दंड बिल्कुल नहीं होना चाहिए। मुख्य चिंता यही रही कि तीन तलाक का कसूरवार होने पर पति जेल में चला जाएगा, तो परिवार का क्या होगा? असदुद्दीन ओवैसी ने तो इसे मुस्लिम मर्दों के ख़िलाफ़ बता डाला।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 अगस्त 2017 को तीन बार तलाक बोलकर तलाक देने की व्यवस्था को असंवैधानिक करार दिया था। इसे तलाक-ए-बिद्दत कहा जाता है। यह फैसला 5 जजों की पीठ 3-2 से सुनाया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण बातें कही थीं-
सुप्रीम कोर्ट के फैसले में दो मुख्य बातें :
- एक ट्रिपल तलाक पर्सनल लॉ का हिस्सा नहीं है
- दूसरा, लॉ कमीशन सरकार को सुझाव दे
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद यह परम्परा रुकी नहीं। फैसले के बाद भी 100 से अधिक मामले तीन तलाक के सामने आ चुके हैं। इसमें यूपी टॉप रहा। उत्तर प्रदेश में तीन तलाक के कुछेक मामलों पर नज़र डालें तो
तलाक है या मजाक?
- शाहजहांपुर में दूसरी शादी करने के लिए ट्रिपल तलाक दिए गये
- बरेली में ज्यादा मीठी चाय बनाने पर तीन तलाक हुआ
- देर से सोकर उठने पर रामपुर में तीन बार तलाक कह दिया गया
- गाज़ियाबाद में देर से चाय बनाना पत्नी को महंगा पड़ा
- गाज़ियाबाद में ही सब्ज़ी पसंद नहीं आयी तो तीन तलाक हो गया
- महोबा में बीवी की गलती सिर्फ इतनी थी कि रोटी जल गयी
यानी तीन तलाक नहीं, मजाक हो गया। मुस्लिम महिलाओं की स्थिति इन उदाहरणों में समझी जा सकती है।
केंद्र सरकार ने सितम्बर 2018 में अध्यादेश लाकर तीन तलाक को कानून का हिस्सा बना दिया। बाद में 15 दिसम्बर 2018 को केंद्रीय कैबिनेट ने तीन तलाक के प्रावधान वाले बिल को मंजूरी दे दी। इसे लोकसभा में भी पेश किया गया। फिर केंद्रीय कैबिनेट ने इस बिल में संशोधनों को भी मंजूरी दी। हालांकि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कानून मंत्रालय ने तीन तलाक पर राज्य सरकारों के पास बिल का ड्राफ्ट भेजकर उनकी राय मांगी। यूपी, एमपी, झारखण्ड समेत 8 राज्यों ने ड्राफ्ट बिल पर सरकार का समर्थन किया। अब यह बिल लोकसभा में एक बार फिर पास हो चुका है।
तीन तलाक का क़ानून : क्या बदला?
तीन तलाक के कानून बन जाने पर अब
- तीन तलाक गैरकानूनी और अवैध
- दोषी पति को तीन साल तक का कारावास
- पीड़िता को मिलेगा गुजारा भत्ता
- मजिस्ट्रेट इस मुद्दे पर निर्णय लेंगे
- जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा
सत्ताधारी बीजेपी तीन तलाक के गुनहगारों को सज़ा दिलाने पर अड़ी हुई है। उसका कहना है कि जब दहेज के गुनहगार जेल जा सकते हैं तो तीन तलाक के क्यों नहीं? एक तरह से देखें तो तीन तलाक के बहाने पूरा मामला हिन्दू-मुस्लिम भावनाओं का सहलाने-भड़काने का बन चुका है। दो पक्ष बन चुके हैं जो एक-दूसरे के ख़िलाफ़ इस मुद्दे का इस्तेमाल कर रहे हैं। मुस्लिम महिलाओँ को हक दिलाने का सवाल गया तेल लेने।