Modi Interview : 2019 में मंदिर निर्माण होगा मुद्दा?
ख़बर वो नहीं है कि राम मंदिर पर प्रधानमंत्री ने क्या कहा है। ख़बर ये है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने क्या समझा है या क्या समझाना चाहा है। ख़बर इन दोनों के बयानों को मिलाकर है जिसमें राम मंदिर का ज़िक्र भी होता रहे और इस मुद्दे को फुटबॉल की तरह जब चाहे, जिस रूप में चाहे उछाल कर खेला भी जाता रहे।
हम आपको एक साथ दो प्रतिक्रियाएं दिखा रहे हैं
राम मंदिर निर्माण
PM मोदी
“कानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाने दीजिए। इस प्रक्रिया की समाप्ति के बाद सरकार के तौर पर जो भी जिम्मेदारी होगी, उसके लिए हम तैयार हैं।”
RSS
इस सरकार के कार्यकाल में सरकार वह वादा पूर्ण करें। ऐसी भारत की जनता की अपेक्षा है। – दत्तात्रेय होसबले, सह सरकार्यवाह (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ)
प्रधानमंत्री के बयान का साफ मतलब है कि उनके ही कार्यकाल में राम मंदिर का निर्माण हो, इस पर उनका जोर नहीं है। उनका ज़ोर है सुप्रीम कोर्ट के फैसले के इंतज़ार करने पर। मगर, आरएसएस को मोदी कार्यकाल में ही चाहिए राम मंदिर।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भांप लिया है कि राम मंदिर निर्माण के मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतरे, तो उनकी पराजय निश्चित है। हाल में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान में हुए चुनाव के दौरान राम मंदिर और हिन्दुत्व का मुद्दा जिस तरह से पिटा है उसका असर नरेंद्र मोदी पर साफ-साफ दिख रहा है। जब हिन्दी हॉर्ट लैंड में यह मुद्दा नहीं चला, तो पूरे देश में कैसे चलेगा?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर निर्माण से पीछे हट गये हैं, ऐसा बोलने का खुलकर उन्होंने मौका नहीं दिया है। मगर, जिस तरीके से उन्होंने तीन तलाक का ज़िक्र किया है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही उस पर अध्यादेश लाया गया, उसके निहितार्थ को समझें तो ये साफ है कि
PM मोदी के बयान के निहितार्थ
- मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार करेगी
- फैसला अनुकूल रहा तो सरकार को कुछ करने की जरूरत नहीं
नरेंद्र मोदी ने यह नहीं कहा है कि तीन तलाक के मामले में जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी रास्ता अख्तियार करने की सलाह दी थी, अगर वैसी ही सलाह मंदिर निर्माण में नहीं दी तो मोदी सरकार क्या करेगी? क्या तब भी अध्यादेश लाएगी मोदी सरकार? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध जाएगी मोदी सरकार?
इन सवालों का जवाब नहीं देना प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की विवशता है। यही वजह है कि जवाब आरएसएस ने दिया है। संघ ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की सराहना की है। उनके बयान को मंदिर निर्माण की दिशा में सकारात्मक कदम बताया है। इस बयान को 1989 में बीजेपी के पालमपुर प्रस्ताव के अनुरूप करार दिया है। एक नज़र डालते हैं संघ के ट्वीट पर,
संघ ने पालमपुर प्रस्ताव की याद दिलायी
“इस प्रस्ताव में भाजपा ने कहा था कि अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य राममंदिर बनाने के लिए परस्पर संवाद से अथवा सुयोग्य क़ानून बनाने (enabling legislation) का प्रयास करेंगे।”
जाहिर है आरएसएस कहीं भी सुप्रीम कोर्ट का ज़िक्र नहीं कर रहा है। इसकी वजह साफ है कि पहले भी आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत यह राय रख चुके हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट निर्णय लेने में देरी करता है तो सरकार को अध्यादेश के जरिए राम मंदिर का निर्माण करना चाहिए।
2019 की शुरुआत राम मंदिर मुद्दे के साथ हो चुकी है। प्रधानमंत्री और आरएसएस दोनों के बयान को मिलाकर इस मसले को समझने की जरूरत है। प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर चुनाव लड़ने से बचना चाहते दिख रहे हैं, लेकिन आरएसएस इसी मुद्दे पर उन्हें लौटाने का दबाव बनाता दिख रहा है। इसका मतलब ये है कि राम मंदिर का मुद्दा फुटबॉल बना रहेगा और देखते-देखते 2019 का लोकसभा चुनाव बीत जाएगा। देखना ये है कि कहीं पास-पास खेलते हुए टाइम पास हो जाता है या कि यह फुटबॉल अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कामयाब रहता है। ऐसे में बीजेपी समर्थकों को आशंका होगी कि बीजेपी और आरएसएस के बीच इस पास-पास से कहीं आत्मघाती गोल न हो जाए।