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राफेल पर संग्राम, राहुल को घेरने में जुटी है बीजेपी

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राफेल पर लड़ाई बड़ी न हो, संसद से बाहर यह मुद्दा नहीं बने, चुनाव के दौरान यह मुद्दा नहीं बने, इसी रणनीति पर काम करती दिख रही है बीजेपी। राहुल गांधी की पिच पर बीजेपी को खेलना न पड़े, इस पर खास ध्यान दिया जा रहा है। वहीं, राहुल अपने दम पर राफेल मुद्दे को सतह पर ला चुके हैं। फिर भी, वे अकेले और अलग-थलग पड़ते दिख रहे हैं।

राफेल पर बीजेपी की रणनीति

राहुल को नासमझ, बच्चा, नादान, कुछ भी बोलने वाला करार दिया जाना बीजेपी की रणनीति का ही हिस्सा है।  इसका मकसद आरोपों की गम्भीरता को कम करना और जनता की नज़र में इसे फिजूल का मुद्दा साबित करना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसे दिखा रहे हैं मानो वे राहुल गांधी को उत्तर देने के योग्य भी नहीं समझते। राहुल गांधी जब राफेल मुद्दे पर संसद में बोल रहे हों तो उस वक्त प्रधानमंत्री का नहीं रहना यही दर्शाता है। यहां तक कि राहुल के राफेल से जुड़े सवालों का जवाब देने के लिए रक्षा मंत्री तक को सामने नहीं किया गया।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राहुल गांधी के सवालों का संसद में भी और संसद से बाहर ट्विटर पर भी जवाब दिया। अपने जवाब में वह यही बताने की कोशिश में लगे रहे कि राहुल गांधी में राफेल का मुद्दा समझने की समझ है ही नहीं।

वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ट्विटर पर राहुल गांधी को मूर्ख बताया है कि वे एक एयरक्राफ्ट की तुलना हथियारों से लैस जेट से कर रहे हैं। वे कहते हैं कि बिल्कुल अलग-अलग चीजों की तुलना कीजिए और इसे ‘घोटाला’ का नाम दे डालिए। राहुल गांधी के लिए वित्तमंत्री अरुण जेटली ने ट्वीट में लिखा है, “कितना वे जानते हैं? कब वे जानेंगे?”

अब तक राफेल मुद्दे पर बीजेपी बनाम कांग्रेस लड़ाई चल रही थी। मगर, अब एआईएडीएमके खुलकर बीजेपी के साथ संसद में दिखी। अगर यह मुद्दा एनडीए बनाम यूपीए होता है तो राहुल को भी इसकी तैयारी करनी होगी। अन्यथा कांग्रेस के लिए राफेल का मुद्दा बैक फायर भी हो सकता है।

बीजेपी की रणनीति यह भी है कि राफेल मुद्दे पर यूपीए में मतभेदों का इस्तेमाल राहुल के ख़िलाफ़ किया जाए। कांग्रेस के सम्भावित सहयोगी समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राफेल मुद्दा ख़त्म हो चुका है।

बीएसपी ने कभी कुछ कहा ही नहीं और शायद ही वह इस मुद्दे पर आगे कुछ बोले। ऐसे में कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती यही होने वाली है कि वे अपने सहयोगियों से इस मुद्दे पर कितना ज्यादा बोलवा बाते हैं। क्योंकि, इसी बात पर यह निर्भर करने वाला है कि राफेल का मुद्दा जनता के बीच वास्तव में पहुंच पाएगा या नहीं।

राहुल को नकारने की है BJP की रणनीति

राहुल गांधी जिस तरीके से प्रधानमंत्री को 20 मिनट बहस की चुनौती दे रहे हैं उसे शायद ही प्रधानमंत्री स्वीकार करेंगे। इसके लिए बीजेपी की रणनीति ये है कि वे राहुल गांधी को अरविन्द केजरीवाल के नक्शेकदम पर चलने वाला नेता बताएं। {GFX OUT} आपको याद होगा कि केजरीवाल हर बात में प्रधानमंत्री को बहस के लिए चुनौती दिया करते थे। तब बीजेपी केजरीवाल को गली का नेता बताया करती थी और उन्हें प्रधानमंत्री के लिए बहस के लायक नहीं समझा करती थी। मगर, राहुल के मामले में ऐसा कह पाना थोड़ा मुश्किल है। लिहाजा राहुल को केजरीवाल सरीखा बताकर बहस के लायक नहीं बताना ही बीजेपी की रणनीति है।

बीजेपी की रणनीति एक और है। वह है ऐसे आरोपों के जवाब में बोफोर्स, अगस्ता वेस्टलैंड, राहुल व सोनिया का ज़मानत पर बाहर रहना, क्वात्रोकी, इटली, विदेश जैसे शब्दों का इस्तेमाल करना।  ऐसा करने से राहुल गांधी के हमले की धार को कुन्द किया जा सकता है।

मगर, राहुल गांधी मानने को तैयार नहीं हैं। न सिर्फ वे नरेंद्र मोदी को अकेले में 20 मिनट बहस की चुनौती दे रहे हैं, बल्कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की परीक्षा लेने की भी ठान ली है। राहुल गांधी ने ट्विटर पर पीएम मोदी के लिए जो सवालों की फेहरिश्त डालकर उसे ‘पेपर लीक’ बताया है, उससे भी ऐसा लगता है कि राहुल पूरी तैयारी से लड़ाई में जुटे हैं। राहुल ने तीन सवाल उठाए हैं और सम्भवत: वे इन्हीं सवालों पर आगे भी अड़े रह सकते हैं

राहुल ले रहे हैं PM मोदी की परीक्षा

  1. इंडियन एयरफोर्स के लिए जरूरी थी 126 एयरक्राफ्ट, केवल 36 एयरक्राफ्ट ही क्यों खरीदे गये?
  2. प्रति एयरक्राफ्ट कीमत 560 करोड़ रुपये के बजाए 1600 करोड़ क्यों?
  3. एचएएल की जगह अनिल अम्बानी (एए) क्यों?

राहुल के हाथ में राफेल पर ऑडियो टेप का बम भी है जिसे वे संसद में फोड़ने को आमादा दिख रहे थे लेकिन स्पीकर ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया। सवाल जिम्मेदारी का था। जाहिर है किसी टेप का सही और गलत होना राहुल गांधी तय नहीं कर सकते, इसलिए वह जिम्मेदारी लेने की बात पर चुप रह गये। मगर, यह मुद्दा यहीं पर थमने वाला नहीं है।

राहुल इसी बहाने मनोहर पर्रिकर की बीमारी, बीमार रहकर भी मुख्यमंत्री बने रहने और बीजेपी नेतृत्व के उनके आगे झुकने को भी राफेल मुद्दे से जोड़ेंगे। इसका जवाब देने से भी बीजेपी बचना चाहेगी। लेकिन, चूकि गोवा बहुत छोटा राज्य है इस वजह से इसका राजनीतिक प्रभाव कितना पड़ेगा यह देखने की बात होगी।

राहुल को नकारने की बीजेपी की रणनीति

बीजेपी की रणनीति सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपने बचाव में पेश करने की भी है। यह काम वह बहुत जोर-शोर से कर रही है। मगर, अरुण शौरी और यशवन्त सिन्हा के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट में जो पुनर्विचार याचिका डाली गयी है, उसके भविष्य पर बीजेपी का यह बचाव निर्भर करेगा। अगर सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया तो गेंद फिर कांग्रेस के पाले में आ सकती है।

राफेल अब भारतीय राजनीति में पक्ष और विपक्ष की रणनीति का आधार बन गयी है। 2019 में यह राफेल मुद्दा बने, इसके लिए हमला और बचाव का खेल जारी है। चुनाव से चार महीने पहले बड़ा सवाल यही है कि कि क्या राफेल 2019 का मुद्दा बन पाएगा?

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