आर्थिक आधार निराधार : Judicial Review Imminent
अनारक्षित वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण पर विधायिका और न्यायपालिका में तकरार होने वाली है, मगर विधायिका को विश्वास है कि इस बार न्यायपालिका उसके फैसले नहीं पलट पाएगी। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने इस विश्वास को आधार देने के लिए कई तर्क गढ़े हैं।
सबसे पहले अरुण जेटली ने कहा है कि पहले अनारक्षित वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण के लिए जो भी प्रयास हुए हैं उन प्रयासों में शक्ति का स्रोत संविधान का अनुच्छेद 15 और 16 था जिसमें आरक्षण का आधार शैक्षिक और सामाजिक था, आर्थिक नहीं। यही कारण है कि सभी कोशिशें विफल रहीं।
नरसिम्हाराव सरकार की कोशिश
- 1991 में गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण
- अधिसूचना के जरिए की थी आरक्षण की व्यवस्था
गुजरात में भी विफल रही कोशिश
- 2016 में गरीब सवर्णों के लिए कानून बनाया
- 10 प्रतिशत आरक्षण पर बनाया कानून
- शर्त थी 6 लाख से कम वार्षिक आय
राजस्थान मे कोशिशें नहीं चढ़ सकी परवान
- 2015 में सवर्ण गरीबों के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण
- पिछड़ों में अति निर्धन के लिए 5 फीसदी आरक्षण
- विधानसभा से पारित कर बनाया था कानून
मगर, सुप्रीम कोर्ट में न तो केंद्र सरकार की अधिसूचना काम आयी और न ही गुजरात व राजस्थान सरकार के बनाए कानून ही अदालत में ठहर सके। अरुण जेटली की मानें तो इसकी वजह ये थी कि इन सबकी शक्ति का स्रोत अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 थी जिसमें आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं हैं। ये अनुच्छेद शैक्षिक और सामाजिक आधार पर आरक्षण को सुनिश्चित करते हैं।
केंद्र सरकार ने जो 124वां संशोधन बिल पेश किया है उसके तहत अनारक्षित वर्ग के लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण का आधार संविधान में निहित है। मगर कैसे, इस बारे में अरुण जेटली के तर्क हैं-
क्या हैं जेटली के तर्क
- नये कानून में जाति आधारित आरक्षण नहीं है लिहाजा इस पर 50 फीसदी की सीमा लागू नहीं होगी
- संविधान की मूल भावना अनारक्षित वर्ग के लिए 50 फीसदी हिस्सा सुरक्षित रखना रहा है
- नये कानून में अनारक्षित वर्ग को इसी सुरक्षित 50 फीसदी से 10 फीसदी का आरक्षण
- आरक्षण जाति को नहीं सभी वर्गों के लिए
- आर्थिक आधार पर आरक्षण में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी शामिल
अरुण जेटली ने अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 के साथ-साथ मंडल जजमेंट को अपने नजरिए से देखने की कोशिश की है। मगर, यह भी साफ है कि नया कानून भी न्यायिक परीक्षा के दौर से गुजरेगा। यह भी तय नहीं है कि अरुण जेटली यानी सरकार के नजरिए को सुप्रीम स्वीकार कर ही लेगा।
अरुण जेटली के तर्क पर जो सवाल उठते हैं अगर उस पर नज़र डालें, तो
जाति आधारित आरक्षण की सोच में खोट
जेटली कहते हैं कि वर्तमान आरक्षण व्यवस्था जाति आधारित है, मगर मंडल जजमेंट इसे जाति आधारित नहीं मानता, बल्कि समूह आधारित मानता है। चूकि पूरी जाति को ही एक समूह के तौर पर देखा और पहचाना गया है इसलिए यह जाति आधारित आरक्षण लगता है।
नये कानून में अनारक्षित वर्ग समूह कैसे
10 फीसदी अनारक्षित वर्ग को समूह साबित कर पाना मुश्किल है। इसमें निश्चित आर्थिक आधार की शर्तें भी व्यक्तिगत हैं। जैसे- आमदनी, मकान, जमीन आदि की सीमाएं।
ऐसे में अरुण जेटली का यह तर्क स्थापित होता नहीं दिखता कि वे वर्तमान जाति आधारित आरक्षण को छेड़े बिना अनारक्षित वर्ग को आरक्षण दे रहे हैं जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी शामिल हैं। वास्तव में कानून की नज़र में वर्तमान आरक्षण व्यवस्था जाति आधारित है ही नहीं। कहने का मतलब ये है कि अरुण जेटली ने अपने तर्क के माध्यम से जो बहस छेड़ी है, वह आम चुनाव तक साफ होने वाला नहीं है और सरकार इसी नाम पर चुनाव मैदान में सबको चित करने के इरादे से उतरने जा रही है।