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क्या BJP के ‘सेफ्टी वॉल्व’ हैं नितिन गडकरी?

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जो बात कांग्रेस न कह सकी, जो बात समूचा विपक्ष नहीं कह सका, वो बात नितिन गडकरी ने कह डाली। जनता पिटाई करने वाली है। उन लोगों को जिन्होंने सपने दिखाए। सपने दिखाने वालों को जनता पीटती भी है। नितिन गडकरी ने यह भी कहा है कि वे जो बोलते हैं डंके की चोट पर बोलते हैं।

“मैं जो करता हूं, करके दिखाता हूं।”-  नितिन गडकरी, पूर्व बीजेपी अध्यक्ष

बीजेपी नेता जीवीएल नरसिम्हा ने कहा है कि नितिन गडकरी ने एक दार्शनिक बात कही है। वो बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष हैं, जिम्मेदार हैं, मोदी सरकार के महत्वपूर्ण मंत्री हैं। उनकी बातों का कोई और अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए।

कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला ने कहा है कि नितिन गडकरी ने बहुत सही बात कही है। मगर, किनके लिए कही है इसका मतलब लोग खुद लगाएं।

जनता को सपने दिखाने का काम देश में किसने किया है? यह एक सवाल है जिससे नितिन गडकरी के वक्तव्य का मतलब समझा जा सकता है। मतलब समझने के लिए नितिन गडकरी के एक और बयान को हम याद कर लेते हैं जो उन्होंने अक्टूबर 2018 में एक मराठी टीवी चैनल में दिया था। गडकरी ने कहा था

हम कभी भी इसको लेकर आश्वस्त नहीं थे कि जीतकर सत्ता में आएंगे। इसलिए हमारे लोगों ने जनता से बड़े-बड़े वादे करने की सलाह दी। अगर हम सत्ता में नहीं आएंगे, तो हमें इन वादों को पूरा भी नहीं करना पड़ेगा।

अक्टूबर 2018 और जनवरी 2019 में नितिन गडकरी के इन दो बयानों से समझा जा सकता है कि बड़े-बड़े वादे करने वाले कौन हैं। वो कौन हैं जिन्हें जनता सुनहरे सपने दिखाने के लिए सर आंखों पर भी बिठाती है और ज़रूरत पड़ने पर जिनकी पिटाई भी करने वाली है। निश्चित तौर पर यह बीजेपी ही है। अगर अब भी कोई शक शुबहा रह जाता हो, तो अक्टूबर 2018 के बयान का दूसरा हिस्सा भी हम आपको बताते हैं,

अब समस्या यह है कि लोगों ने हमें सत्ता में लाने के लिए मतदान किया। वे हमें हमारे वादे याद दिला रहे हैं वे तारीख के साथ बता रहे हैं कि यह वादा गडकरी ने किया था, यह वादा फडणवीस ने किया था। अब हम हंसते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।”

इसमें संदेह नहीं कि नितिन गडकरी ने ये बातें डंके की चोट पर कही है। गडकरी के ताजा बयान पर भी गौर करें तो उन्होंने डंके की चोट पर अपनी बात कहने का साहस दोहराया है,

सपने दिखाने वाले नेता लोगों को अच्छे लगते हैं, पर दिखाए हुए सपने अगर पूरे नहीं किए तो जनता उनकी पिटाई भी करती है, इसलिए सपने वही दिखाओ जो पूरे हो सकते हैं, मैं सपने दिखाने वालों में से नहीं हूं, जो भी बोलता हूं वह डंके की चोट पर बोलता हूं।”

अगर ये बात साफ हो गयी हो कि बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने जो कुछ कहा है वह बीजेपी और बीजेपी के नेताओं के लिए कहा है, तो हमारी-आपकी दिलचस्पी ये जानने की होगी कि आखिर नितिन गडकरी ऐसा कह क्यों रहे हैं। क्या वे नहीं जानते कि ऐसे बयानों से बीजेपी को ही नुकसान होगा? सवाल ये भी है कि बीजेपी इन बयानों के लिए उन्हें क्यों नहीं फटकार रही है?

क्या BJP  के ‘सेफ्टी वॉल्व’ हैं नितिन गडकरी?

कहीं ऐसा तो नहीं कि बीजेपी अपने लिए एंटी इनकम्बेंसी से बचने के लिए जनता के गुस्से के बीच एक गुस्सा जानबूझकर बीजेपी के भीतर पैदा कर रही है? इसे राजनीति में सेफ्टी वॉल्व थ्योरी के रूप में जाना जाता है। इसका मतलब ये हुआ कि गुस्से के भाप को निकलने का ऐसा सुरक्षित रास्ता बनाया जाए ताकि विस्फोट का ख़तरा ना हो!

नितिन गडकरी के बयानों की सीरीज़ है। यह सिलसिला तब से शुरू हुआ जबसे मीडिया में नितिन गडकरी को नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर आरएसएस की पसंद के रूप में सामने लाया गया। अब नितिन गडकरी वही बयान देते हैं जो नरेंद्र मोदी की लाइन से अलग होता है।  आप गौर कीजिए

  • नरेंद्र मोदी कोई मौका नहीं छोड़ते पंडित जवाहरलाल नेहरू की खिंचाई करने का, मगर गडकरी उन्हीं पंडित नेहरू की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं।
  • नरेंद्र मोदी आए दिन इंदिरा गांधी को कोसते रहते हैं, मगर गडकरी इंदिरा की तारीफ में कसीदे पढ़ते हैं। कहते हैं कि वे किसी महिला आरक्षण से नेता नहीं बनी थीं।
  • पीएम मोदी अनारक्षित वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण की घोषणा करते हैं, मगर उसके दो दिन पहले ही गडकरी इस आरक्षण के ख़िलाफ़ बयान दे चुके होते हैं। खुद को जाति-धर्म की राजनीति के ख़िलाफ़ बताते हैं।
  • बीजेपी सरकार महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण देने की घोषणा करती है मगर गडकरी मूलभूत सवाल उठा देते हैं कि नौकरियां ही नहीं हैं तो आरक्षण देने से क्या होगा।
  • पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार होती है और नितिन गडकरी सलाह देते नज़र आते हैं कि नेतृत्व को हार की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

नितिन गडकरी के इस तेवर को बीजेपी के भीतर लोकतंत्र की आवाज़ के तौर पर भी देखा जा सकता है जिस बारे में कहा जाता है कि मोदी-अमित शाह के जमाने में यह आवाज़ दबा दी गयी। अब लोकतंत्र की यही आवाज़ आम चुनाव से पहले पार्टी के भीतर बुलन्द हो रही है। मगर, सवाल ये है कि क्या लोकतंत्र की आवाज़ पार्टी का अनुशासन नहीं मानती? अगर गडकरी के बयान अनुशासन को तोड़ रहे हैं तो उन्हें पार्टी कैसे सहन कर रही है? गडकरी के बयान पर बीजेपी नेता चुप हैं, आरएसएस चुप है। क्या वाकई गडकरी बीजेपी के लिए सेफ्टी वॉल्व का काम कर रहे हैं?

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