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ऐतिहासिक हो गया कुम्भ : पीएम मोदी ने दलितों के पैर छूए  

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प्रयागराज कुम्भ अब सही मायने में ऐतिहासिक हो गया है। यहां की साफ-सफाई, व्यवस्था ने सबका दिल जीता है। मगर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सफाई कर्मचारियों के पैर धोकर इस कुम्भ को वास्तव में पवित्र बना दिया है। पूरे आयोजन को यादगार बना दिया है। हर कुम्भ ऐतिहासिक है, मगर दलितों के पैर जिस कुम्भ में धोए गये हों वह खास तौर से ऐतिहासिक हो जाता है। इस लिहाज से प्रयागराज कुम्भ हमेशा याद किया जाएगा और पीएम मोदी भी याद किए जाते रहेंगे।

इन्दिरा गांधी भी कुम्भ गयी थीं। 1977 की बात है। यहीं उन्होंने घोषणा की थी कि लोकतंत्र में चुनाव जरूरी है। आपातकाल के बाद चुनाव की घोषणा के लिए इन्दिरा ने कुम्भ को चुना था। ये 2019 है। 42 साल बाद कुम्भ में एक बार फिर प्रधानमंत्री हैं। इन्दिरा गांधी नहीं, नरेंद्र मोदी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुम्भ स्नान का ये नज़ारा तो आम है। स्मृति ईरानी ने भी डुबकी लगायी। दूसरे मंत्रियों ने भी। सबका दावा है कि देश के 130 करोड़ लोगों के भले के लिए यह डुबकी लगायी गयी। तीर्थराज की पूजा, गंगा आरती और दान पुण्य भी पीएम मोदी ने किए। इस दौरान दो घटनाएं यादगार रहेंगी।

कुम्भ की डुबकी के दौरान पुलवामा हमले के लिए पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाना और गंगा पंडाल में प्रधानमंत्री का 5 स्वास्थ्यकर्मियों के पैर धोना। एक की चर्चा नकारात्मक कारण से जरूरी है दूसरे की सकारात्मक कारणों से।

कुम्भ में डुबकी को पुण्य की डुबकी कहते हैं। डुबकी लगाने वालों के पाप धुलने की मान्यता है। डुबकी लगाने वाले यहां दूसरों के लिए बर्बादी की कामना नहीं करते। ऐसे में पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाना गलत है। गलत परम्परा की शुरुआत है। दुर्भाग्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुम्भ स्नान के दौरान इस गलत परम्परा की शुरुआत हुई है।

वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने स्वास्थ्यकर्मियों के चरण पखारकर दुनिया के सामने अद्भुत उदाहरण रखा है। स्वच्छता के प्रति और स्वच्छता कर्मचारियों के प्रति सम्मान का यह बड़ा उदाहरण है। इस घटना की तुलना हम उस घटना से कर सकते हैं जब महात्मा गांधी ने हरिजनों को मंदिर में प्रवेश दिलाया था। वह घटना भी युगांतरकारी घटना थी।

पीएम मोदी ने सफाईकर्मचारियों के पैर धोए। यह प्रतीकात्मक घटना है। प्रतीकात्मक घटनाएं तो वह भी होती हैं जब नेता दलितों के घर भोजन करने जाते हैं। मगर, अब उसमें विकृति आ चुकी है। सोच भी बदली है। दलितों के घर जाना, उनसे ही सत्कार कराना और वहां बिसलेरी के बोतल वाले पानी पीना या फिर होटल के खाने मंगाकर पांत में बैठकर खाना- ऐसी घटनाओं ने उस पहल की अहमियत ख़त्म कर दी है जब कभी इसकी शुरुआत की गयी थी।

‘स्वच्छ कुम्भ, आभार कुम्भ’ के नारे के साथ सफाईकर्मचारियों के पैर छूकर एक बार फिर प्रधानमंत्री ने दलितों का सम्मान करने के लिए नया तरीका ईजाद किया है। अब कोई इसमें लावट नहीं कर सकता। दलितों का, उनके काम का सम्मान करके हम उन्हें प्रतिष्ठा दे रहे हैं। दलितों का सम्मान करने के लिए पीएम मोदी का यह इनोवेशन है। पीएम के इस इनोवेशन का जवाब देश में विपक्ष के पास नहीं है। ऐसा करके पीएम मोदी ने अपने विरोधियों को चौंका दिया है।

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