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पाकिस्तान पर बैन की मांग, पाक खेला तो नहीं खेलेगा भारत!

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BCCI की यही भावना है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट कहती है कि चिट्ठी का ड्राफ्ट तैयार है। अमल का इंतज़ार है। अगर बीसीसीआई की कमेटी ऑन एडमिनिस्ट्रेशन को इस बाबत लीगल एडवाइस में उल्टी रिपोर्ट नहीं मिलती है, तो यह चिट्ठी आईसीसी को भेज दी जाएगी। कहा जा रहा है कि इस चिट्ठी में बीसीसीआई ने  मांग की है कि वह पाकिस्तान के विश्वकप खेलने पर प्रतिबंध लगाए। फिलहाल आईसीसी के प्रमुख शशांक मनोहर भारतीय हैं।

शशांक मनोहर के लिए बीसीसीआई की मांग मानना आसान नहीं है। पाकिस्तान कोई युद्ध अपराधी नहीं है। न इंटरनेशनल कोर्ट ने उसके ख़िलाफ़ कोई ऐसा फैसला सुनाया है। यहां तक कि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई घोषित युद्ध भी नहीं है।

मगर, भारत को विश्वकप क्रिकेट का बहिष्कार करने से कोई रोक नहीं सकता। ओलम्पिक जैसे खेल के बड़े अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में ऐसे बहिष्कार पहले भी हो चुके हैं। 1979 में अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ के सैनिक प्रवेश के बाद 1980 के मॉस्को ओलम्पिक का अमेरिका सहित सभी NATO देशों ने बहिष्कार किया था; जिसके जवाब में 1984 के लॉस एंजिलिस ओलम्पिक का बहिष्कार सोवियत संघ और उसके सहयोगी देशों ने किया था।

बीसीसीआई ने धमकी दी है कि अगर आईसीसी विश्वकप से पाकिस्तान को अलग नहीं करती है तो भारत विश्वकप से अलग हो जाएगा। इसका मतलब ये हुआ कि आईसीसी ने बीसीसीआई की मांग नहीं मानी, तो भारत को खुद ही अपना वचन निभाना होगा। विश्वकप क्रिकेट से दूर रहना होगा।

भारत और पाकिस्तान दुनिया के स्तर पर ऐसे जुड़वां बच्चे हैं जिसका जन्म एक ही समय बिलखते हुए हुआ था और जन्म के समय से ही दोनों खुद को एक-दूसरे की वजह से आहत महसूस करते आए हैं। विभाजन का दर्द यानी जन्मते ही अलग होने की पीड़ा के बाद 1947 में ही पाकिस्तानी सेना की शह पर तथाकथित कबायलियों का कश्मीर पर कब्जा करने की नाकाम कोशिश, 1965 का युद्ध। फिर 1971..और बाद में करगिल युद्ध। इसके अलावा भी सीमा पर चिरस्थायी तनातनी, गोलीबारी और दोनों ओर से सैनिकों का मारा जाना कभी नहीं रुका। पुलवामा की घटना ताज़ा है जिसके परिप्रेक्ष्य में बातें हो रही हैं।

मगर, आम भारतीय और आम पाकिस्तानी अगर सीमा से अलग वास्तव में कहीं युद्धरत रहे हैं तो वो है क्रिकेट। क्रिकेट ही वह युद्ध का मैदान होता है जहां भारत और पाकिस्तान एक-दूसरे को मजा चखाते आए हैं। युद्ध के दौरान कहा जाने वाला एक-एक शब्द यहां न सिर्फ क्रिकेटर जीते हैं बल्कि दर्शक भी उसके रोमांच से रोमांचित होते हैं। वीर रस दर्शकों में भरा होता है। हारते हुए भी जीतने की ललक दिखती है।

आज पाकिस्तान में क्रिकेट टीम के कप्तान रहे इमरान ख़ान के हाथों में देश की बागडोर है। कभी कश्मीर का फैसला क्रिकेट के मैदान में करने की बात करते थे इमरान ख़ान। आज वही हैं वजीर-ए-आज़म पाकिस्तान। पुलवामा हमले के बाद उन्होंने भारत को युद्ध की धमकी दी है।

पाकिस्तान के दूसरे क्रिकेटर भी इमरान ख़ान का साथ दे रहे हैं। शाहिद अफ्रीदी ने इमरान ख़ान के ट्वीट को रीट्वीट कर उनका समर्थन जताया है। दूसरे खिलाड़ी भी ऐसी ही स्पर्धा में शामिल हैं। भारत के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया देने की होड़ है।

भारत में भी जवाबी प्रतिक्रिया का दौर है। तेज गेंदबाज शमी ने कहा है कि गेंद से पाकिस्तान पर आक्रमण करने के बजाए ज़रूरत पड़ी तो वे ग्रेनेड थामने के लिए भी तैयार हैं। वहीं हरभजन सिंह ने तो विश्वकप में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ मैच नहीं खेलने की अपील कर डाली है।

हरभजन सिंह ने कहा है,

 “भारत को विश्व कप में पाकिस्तान से नहीं खेलना चाहिए। भारतीय टीम इतनी मजबूत है कि पाकिस्तान से खेले बिना भी विश्व कप जीत सकती है।”

हरभजन ठीक कह रहे हैं। मगर जरा सोचिए भारतीय टीम कमजोर होती तब हमारा क्या स्टैंड होता? अगर पाकिस्तान से नहीं खेलने पर हम विश्वकप की दौड़ से बाहर हो जाते, तो क्या हम बहिष्कार का रुख छोड़ देते? बहिष्कार की यह कैसी भाषा है जो नफ़ा-नुकसान पर पहले सोचती है।

बीसीसीआई की ड्राफ्ट की हुई चिट्ठी हरभजन से कहीं अधिक आक्रामक है। अगर यह चिट्ठी भेजी जाती है तो यह बहस बहस अपने आप ख़त्म हो जाती है कि भारत को विश्वकप में पाकिस्तान के साथ खेलना चाहिए या नहीं। आधिकारिक रूप से यह मान लिया समझा जाएगा कि हमें एक-दूसरे के ख़िलाफ़ नहीं खेलना चाहिए।

बीसीसीआई की आक्रामकता स्टेडियम में भी झलक रही है। भारतीय क्रिकेट स्टेडियम से पाकिस्तानी खिलाड़ियों का नामो निशान मिटाया जा रहा है। एक-एक कर पाकिस्तानी खिलाड़ियों के पोस्टर हटाये जा रहे हैं। मुम्बई के क्रिकेट क्लब ऑफ इंडिया ने इमरान ख़ान की तस्वीर ढंक दी। विदर्भ क्रिकेट एसोसिएशन के स्टेडियम से भी इमरान ख़ान, जावेद मियांदाद समेत पाकिस्तानी खिलाड़ियों की तस्वीरें हटा दी गयीं। वहीं, मोहाली और जयपुर के स्टेडियम से 14 फरवरी को ही पाकिस्तानी खिलाड़ियों के साथ भारतीय क्रिकेट का वेलेन्टाइन ख़त्म हो गया था।

भारत के प्रधानमंत्री, मंत्री और नेताओं का पाकिस्तान जाना, वहां मैच देखना…इसी तरह पाकिस्तान के मंत्री, प्रधानमंत्री और नेताओं का भारत आना और मैच देखना…या फिर दोनों ओर के लोगों का किसी तीसरे वेन्यू जैसे शारजाह जाकर मैच देखना…अब अतीत की बातें जरूर हैं। मगर, ये घटनाएं वर्तमान नेतृत्व को चाहे वह राजनीतिक हो या क्रिकेट का नेतृत्व- उन्हें आईना भी दिखाती हैं। युद्ध के माहौल में क्रिकेट डिप्लोमैसी की अहमियत भी बताती है।

युद्ध लड़े बगैर युद्ध का उन्माद पैदा करना ज़रूरी नहीं है। मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा तो अभी-अभी हमने पाकिस्तान से छीना है। पाकिस्तान से सारे संबंध तोड़ लेने की वकालत की जा रही है। अगर ऐसा होता है तो क्रिकेट खुद ब खुद इसमें शामिल हो जाएगा। मगर, सिर्फ और सिर्फ क्रिकेट को लेकर पाकिस्तान के साथ संबंध को तौलना, क्रिकेट संबंध को तोड़कर इसे युद्ध का बदला समझना और सब कुछ देश की भावना के नाम पर करना…क्या वास्तव में देश के हित में है, इसे जरूर परखने की ज़रूरत है।

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