आम चुनाव 2019 : हार का सेहरा किसके सिर!?
“सफलता के कई दावेदार होते हैं लेकिन विफलता में कोई साथ नहीं होता।“- नितिन गडकरी
यह बात दिसम्बर 2018 में एमपी-छत्तीसगढ़-राजस्थान में बीजेपी की हार के बाद नितिन गडकरी ने कही थी। इशारा बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व पर था।5 महीने बाद बदल गये गडकरी के संदेश के मायने
मगर, 5 महीने बाद इसी संदेश के मायने बदल गये हैं। अब नितिन गडकरी के बोल कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के लिए हो चुके हैं जो हार को स्वीकार कर पा रहे हैं न पचा पा रहे हैं।23 मई को राहुल ने हार स्वीकार की
राहुल गांधी ने 23 मई को नतीजे आने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर अपनी हार स्वीकार कर ली। यह नैतिक दायित्व था। उन्होंने नरेंद्र मोदी और स्मृति ईरानी को बधाई भी दी।25 मई को राहुल ने की इस्तीफे की पेशकश
दो दिन बाद ही उन्होंने कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में अपना इस्तीफा पेश किया। एक सुर से उसे कार्यसमिति ने खारिज कर दिया। मगर, राहुल इस्तीफ़े पर अड़े हैं।बिहार में तेजस्वी से भी मांगा जाने लगा इस्तीफ़ा
बिहार में आरजेडी नेता तेजस्वी यादव से इस्तीफा मांगा जा रहा है जिनके नेतृत्व में चुनाव लड़े गये।तेजस्वी इस्तीफ़ा देने को तैयार नहीं
मगर, तेजस्वी कह रहे हैं यह चुनाव राष्ट्रीय दलों के बीच था। राष्ट्रवाद और हिन्दुत्ववाद के मुद्दे पर लडा गया। इसलिए हार केवल आरजेडी की नहीं हुई है, पूरे विपक्ष की हुई है।
पूरा विपक्ष हारा है- तेजस्वी
अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, मायावती, कांग्रेस और यूपीए के सभी घटक दल सभी चुनाव हारे हैं। तेजस्वी का कहना साफ है कि वे चुनाव में हार की जिम्मेदारी अकेले नहीं लेने जा रहे हैं।SP-BSP में हार पर मंथन तक नहीं
अखिलेश और मायावती की पार्टियों में हार के मुद्दे पर मंथन ही नहीं हुआ है। बीएसपी ने संकेत दिया है कि वह मंथन करने वाली भी नहीं है। ऐसे में हार की जिम्मेदारी कोई नेता स्वीकार करेंगे ऐसा नहीं लगता।टीवी प्रवक्ताओँ पर फोड़ा ठीकरा
चौंकाने वाली बात ये है कि कांग्रेस, एसपी, बीएसपी सभी ने टीवी चैनलों में अपने प्रवक्ताओँ को भेजना बंद कर दिया है। ऐसा लग रहा है मानो हार के लिए यही प्रवक्ता जिम्मेदार थे। दूसरा मतलब ये भी है कि टीवी चैनल ही उनकी हार का कारण बने। यह भी एक तरह से हार की जिम्मेदारी की टोपी ट्रांसफर करने जैसी बात ही है।
अगर विपक्ष को लगता है कि उनकी हार के लिए वे जिम्मेदार नहीं हैं उनके विरोधी बीजेपी या एनडीए ही जिम्मेदार है तो इसे खुलकर कहने में दिक्कत क्या है। जीत के कारणों को समझना आसान होता है, हार की वजह जानना मुश्किल बात है। मगर, एक बार अगर हार की वजह समझ में आ गयी तो आगे के चुनाव के लिए जीत का रास्ता भी साफ हो जाता है।
जरूरी सवाल
कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष को यह महसूस क्यों नहीं हो रहा है कि उनका संगठनात्मक ढांचा कमजोर है, उनकी बात जनता तक नहीं पहुंच पा रही है, उनका संवाद जनता से टूट रहा है? क्यों नहीं संगठन में व्यापक सुधार के लिए नेतृत्व ही इस्तीफे की पहल करे? छह महीने तक राजनीतिक मुद्दों को भूलकर संगठन को ही मजबूत करने में पार्टी जुट जाए? बार-बार हार को अगर टालना है तो एक SXबार हार की वजह को क्यों नहीं स्वीकार कर लेता है विपक्ष?