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नीतीश THE BIG BOSS

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नीतीश कुमार ने साबित कर दिखाया है कि वे कभी दबाव में नहीं आते, दबाव में वे दूसरों को ला देते हैं। राजनीति को Dictate करने का माद्दा रखते हैं नीतीश कुमार। ऐसा वे करते रहे हैं बारम्बार। एक बार फिर नीतीश ने उस बीजेपी को आईना दिखाया है जिसका अश्वमेघ घोड़ा देश भर में घूमकर दिल्ली लौट चुका है।
संसद में 303 सीटों के साथ बीजेपी अपने दम पर सत्ता में है। एनडीए की 353 सीटों का दमखम तो है ही। मंत्रिपरिषद के गठन से पहले नीतीश कुमार को दिल्ली बुलाया गया। उन्हें मोदी मंत्रिपरिषद में कैबिनेट की एक सीट ऑफर की गयी। नीतीश कुमार को ऐसी उम्मीद नहीं थी। उन्हें धक्का लगा। कई सवाल उनके मन में उमड़ने लगे-
6 सीटों वाली लोकजनशक्ति पार्टी और 16 सीटों वाला जेडीयू बराबर कैसे हो?

JDU के लिए BJP ने 5 सिटिंग सीट छोड़ दी थी, आज बदल गयी BJP?
JDU उन 9 सीटों पर जीत दर्ज की जहां BJP पिछले मोदी लहर मे हार गयी थी!
बिहार में 17 सांसद वाली BJP के 5 नेता मंत्री बने, JDU के साथ नाइंसाफी होगी?

नीतीश कुमार ने ये सवाल दागे नहीं, बल्कि वे चुप रह गये। यह उनकी खासियत है। नीतीश ने बस ये कहा कि सरकार में प्रतीकात्मक भागीदारी वे नहीं चाहते। आनुपातिक हिस्सेदारी होती तो बात अलग थी।
नीतीश ने यह भी साफ कर दिया कि आगे भी अब वे इस विषय पर बात नहीं करेंगे क्योंकि उसका मतलब ये निकलेगा कि हम मोलभाव कर रहे थे। मतलब साफ दिखा कि रूठ गये हैं नीतीश कुमार। बहरहाल एनडीए सरकार को बाहर से समर्थन देता रहेगा जेडीयू।
जो बात नहीं छेड़ रहे हैं नीतीश
बिहार में भी एनडीए सरकार
नीतीश हैं CM, BJP भी भागीदार
केंद्र में जेडीयू नहीं है हिस्सेदार
बिहार में किस मुंह से है हिस्सेदारी?
बिहार में भी एनडीए की सरकार है। नीतीश मुख्यमंत्री हैं, बीजेपी भी भागीदार है। अब बीजेपी की नैतिकता कसौटी पर है। जब जेडीयू केद्र सरकार में भागीदार नहीं, तो बिहार में नीतीश सरकार में बीजेपी कैसे ले रही है हिस्सेदारी! {gfx 2 out}
मगर, यह सवाल नीतीश उठाने नहीं जा रहे हैं क्योंकि ऐसा करने से खुद उनकी सरकार को खतरा हो सकता है। नीतीश ने अलग पैंतरा आजमाया है। बिहार लौटते ही अपने मंत्रिपरिषद का विस्तार किया। 8 मंत्री जेडीयू से बनाए गये। बीजेपी को पूछा तक नहीं। अगले दिन एक मंत्री का ऑफर दे डाला। अब बीजेपी इस ऑफर को न स्वीकार कर सकती है न अस्वीकार। मतलब ये कि जैसे को तैसा वाला जवाब नीतीश ने दे डाला।
बीजेपी के साथ नीतीश कुमार के रिश्ते को समझने के लिए कुछेक बातों को याद करना जरूरी है-
JDU-BJP सबंध : कभी आग, कभी शीतल
2009 में मोदी के साथ तस्वीर छपने मात्र से नीतीश ने बीजेपी नेताओं के लिए भोज रद्द कर डाला
2013 में जब नरेंद्र मोदी बीजेपी के पीएम उम्मीदवार बने, नीतीश NDA से बाहर हो गये
2014 में जब मोदी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो नीतीश ने मुख्यमंत्री पद छोड़ दी
2015 में बिहार विधानसभा का चुनाव महागठबंधन के साथ एनडीए के खिलाफ लड़ा
2015 में नीतीश फिर मुख्यमंत्री बने, बड़ी पार्टी होकर भी आरजेडी सहयोगी रही
2017 में नीतीश ने महागठबंधन छोड़कर बीजेपी के साथ एनडीए सरकार बनायी

नीतीश कुमार ने लोकसभा चुनाव नतीजे का मतलब समझाते हुए साफ कहा है कि भीषण गर्मी में लम्बी-लम्बी लाइनों में गरीब-गुरबे वोट देते नज़र आए, महिलाएं नज़र आयीं, मुसलमानों ने समर्थन किया और इसलिए बिहार में एनडीए की भारी भरकम जीत के पीछे जेडीयू की मेहनत है। एक तरह से नीतीश कह रहे हैं कि उनकी बदौलत बिहार में एनडीए को जीत मिली और उन्हें ही सरकार में उचित हिस्सेदारी से मना कर दिया गया।
शिकायत नीतीश ने रख दी है, गुस्सा न दिखाया है न छिपाया है और एक्शन के विकल्प खोल रखे हैं। फिलहाल नीतीश ने तय किया है कि वह बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने की मांग बुलन्द करेंगे। इसके मायने भी साफ हैं कि एक बार फिर नीतीश महागठबंधन में लौटने का विकल्प बनाने जा रहे हैं। या तो बीजेपी नीतीश को सम्मान दे या फिर नीतीश अपने लिए सम्मान खोज लेंगे जहां उन्हें मिलेगा। नीतीश इसी सियासत के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने बारम्बार यही साबित किया है कि बिहार की राजनीति में वही हैं THE BOSS.

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