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बनारस से भागी नहीं प्रियंका

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प्रियंका गांधी से डरा कौन?

(कविता के रूप में इसे चलाएं, प्रियंका गांधी की तस्वीर हो- टेक्स्ट चले)

लड़ने चली थीं जो

डरने लगीं वो क्यों?

आंसू तो गिरने ही थे

खुशी के या गम के गिरे

फ़िजां न हो सकी तैयार

ताकि हो सके चमत्कार

हवा का रुख बदल देती जो आंधी

सुनामी बन गयी प्रियंका गांधी

कार्यकर्ता आह-आह कर रहे हैं

विरोधी वाह-वाह कर रहे हैं

यही फलसफा है ‘बनारस की जंग’ का

नहीं सुना? युद्ध वाला नहीं, ‘लोहे वाली ज़ंग’ कहा

  • प्रेम कुमार

वाराणसी में आंधी की तरह आयी प्रियंका गांधी। अपनी ही पार्टी पर सुनामी बरपा कर चली गयी। पहले कांग्रेस के कार्यकर्ता जोश में होश खो बैठे। अब होश में हैं तो जोश गायब है। प्रियंका लड़तीं तो वाराणसी के आसपास भी इसका असर होता, मगर अब तो उल्टा असर होने का ख़तरा पैदा हो गया है।

नरेंद्र मोदी और उनके समर्थकों में एक भाव जागा है। बनारस में कोई मुकाबला कर ले, हम देख लेंगे। यह भाव प्रियंका के आने की ख़बर से चिंता हट जाने के बाद का है। नरेंद्र मोदी को राहत ही नहीं मिली है, कमजोर उम्मीदवारों पर पहलवानी का मौका भी मिला है।

प्रियंका ने एक मूव बनाया था। गोल करने का शानदार मौका हाथ आया था। वाराणसी में 2014 के आम चुनाव में विपक्ष को कुल मिलाकर मिले वोट से नरेंद्र मोदी को 2 लाख ही तो अधिक वोट मिले थे। अगर प्रियंका एक लाख वोट भी उधर से इधर कर लेती, तो चमत्कार हो जाता। मगर, प्रियंका सिर्फ मूव बना सकती थीं। उन्होंने अपना काम किया। गोल करने के लिए विपक्ष को साथ आना था, वे नहीं आए।

कहते हैं कि प्रियंका से बीजेपी डर गयी। नहीं, नहीं। बीजेपी क्यों डरेगी प्रियंका से? जो जंग के मैदान में होते हैं, उसे तो लड़ना ही पड़ता है। ताल ठोंकना ही पड़ता है। चुनाव की होली में रंग खेल चुका व्यक्ति क्या रंग से डरता है? प्रियंका से डर गयी बीएसपी। समाजवादी पार्टी तो तैयार थी। मगर बहुजन समाज पार्टी के बगैर प्रियंका के साथ आने पर फायदा एक सीट पर होता, घाटा कई सीटों पर हो जाता। उल्टा संदेश चला जाता।

प्रियंका को अगर एसपी-बीएसपी का साथ मिलता। वह साझा प्रत्याशी होतीं, तो वाराणसी में दुनिया वह चमत्कार देख पाती जो प्रियंका गांधी दिखाने की हसरत लिए अपनी उम्मीदवारी टॉस कर रही थीं। प्रियंका के चुनाव मैदान में उतरने की रणनीति का पहला भाग यानी साझा प्रत्याशी की हवा ही नहीं तैयार हो सकी। ऐसे में बैलून उड़ता कैसे। इसलिए नहीं लग पाए प्रियंका गांधी के अरमानों को पंख।

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